— डॉ राम पुनियानी —
युद्ध किसी भी समस्या के समाधान नहीं होते हैं ! युद्ध में अपार जन-धन की हानि होने के बाद अन्त में आमने-सामने मेज पर बैठकर ही उसका समाधान होता है ! ये बातें यथार्थ और कटुसत्य हैं। तब भी युद्ध होते क्यों हैं? अभी हाल ही में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है। इस युद्ध में भी यूक्रेन और रूस दोनों ही तरफ के सैनिकों सहित आमलोग भी दर्दनाक तरीके से अपने अमूल्य जीवन खो रहे हैं ! यह बहुत ही दुखद और गंभीर मानवीय चिंता की बात है। इस युद्ध के लिए दुनिया भर में तरह-तरह के तर्क-वितर्क सहित सम्पादकीय लेख लिखे जा रहे हैं, अमरीका सहित उसके नाटो सैन्य गठबंधन में शामिल देशों के मीडिया में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को एक तानाशाह, युद्धपिपासु, खलनायक और मानवहंता की छवि गढ़ने के साथ लेखों की भरमार है ! लेकिन क्या इस दुनिया के निष्पक्ष और न्यायपरक लोगों और मीडिया संस्थानों की नजरों में भी यूक्रेन और रूस के युद्ध के लिए रूस और उसके राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ही इकलौते जिम्मेदार हैं ?
आइए एक न्यायोचित, निष्पक्ष समीक्षा करने की कोशिश करते हैं। वर्ष 1991 से पूर्व यह दुनिया सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमरीका नामक दो ताकतवर देशों के रूप में शक्ति के दो केन्द्रों में विभाजित थी, दोनों ही महाशक्तियाँ अपने-अपने वारसा और नाटो सैन्य गठबंधन के तहत अपनी शक्ति की जोर आजमाइश करती रहती थीं, लेकिन 26 दिसम्बर 1991को सोवियत संघ नामक महाशक्ति का विघटन हो गया। सोवियत संघ में सम्मिलित सारे देश स्वतंत्र हो गए। सोवियत संघ निर्मित वारसा सैन्य संगठन भी बिखर गया ! अब पूरी दुनिया अमरीका रूपी महाशक्ति के रूप में एकध्रुवीय हो गयी, क्योंकि सोवियत संघ के विघटन के बाद उसका सबसे बड़ा विखंडित भाग रूस भी अब आर्थिक और सैन्य तौर पर भी संयुक्त राज्य अमरीका के सामने बिल्कुल कमतर, कमजोर और बौना हो गया ! इसलिए कम्युनिस्ट ब्लॉक के वारसा सैन्य संगठन के बिखरने के बाद अमरीका नीत नाटो सैन्य संगठन का भी कोई खास प्रयोजन नहीं रह गया ! इस दुनिया के अमन-चैन और इसके हित के लिए अमेरिका नीत इस नाटो सैन्य संगठन को भी खतम कर देना चाहिए था, लेकिन अमरीका जैसा देश अपने नाटो सैन्य संगठन का अधिकाधिक विस्तार करता गया।
सोवियत संघ के समय में अमरीका नीत नाटो सैन्य संगठन में मात्र 15 देश थे लेकिन महाशक्ति सोवियत संघ के पतन के बाद रूस जैसे आर्थिक व सैन्य तौर पर एक बिल्कुल कमजोर हो चुके देश के सामने अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने अपने सैन्य संगठन नाटो को भंग करने के विपरीत उसमें भूतपूर्व वारसा सैन्य संगठन के देशों तथा रूस की सीमा से सटे हुए देशों यथा लिथुआनिया, एस्टोनिया और लाटविया तक को सम्मिलित करते हुए आज नाटो में शामिल देशों की कुल संख्या 30 तक पहुँचा दिया है !
अब विस्तारवादी सोच और अपने कथित अपराजेय सैन्यशक्ति के गर्व में मदांध अमरीका रूस के सांस्कृतिक, नस्ल, भाषा, धर्म, पहनावे, रहन-सहन आदि में बिल्कुल समान प्रदेश जो सोवियत संघ के पतन के बाद एक स्वतंत्र देश के रूप में परिभाषित यूक्रेन के सत्ता के कुछ कर्णधारों को तोड़कर, बरगलाकर यूक्रेन को भी नाटो के सैन्य संगठन में शामिल करने को उद्यत है ! जबकि रूसी सीमा से बिल्कुल सटे पोलैंड, एस्टोनिया, लिथुआनिया और लाटविया तक को भी वह पहले ही नाटो में सम्मिलित कर चुका है ! रूस की सीमा से लगे इन सभी देशों से रूस की राजधानी मास्को की दूरी बहुत कम है, यूक्रेन से तो और भी कम है ! इसलिए रूस अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखकर यूक्रेन को नाटो सैन्य संगठन में शामिल करने का हर हाल में पुरजोर तरीकों से सशक्त विरोध कर रहा है, क्योंकि यूक्रेन के नाटो में शामिल होने से अमरीका अपने आधुनिकतम हथियारों को यूक्रेन में भी तैनात करेगा, जिससे रूस की राजधानी मास्को तक उसकी मारक क्षमता की ज़द में आ जाएगी, क्योंकि उसकी दूरी बहुत कम हो जाएगी !
दूसरी तरफ यही अमेरिकी साम्राज्यवादी वर्ष 1962 में अपने पड़ोसी देश क्यूबा में तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात करने पर बहुत बेचैन और परेशान और व्यग्र हो उठे थे ! बाद में बहुत ही आपाधापी के बाद सोवियत संघ ने क्यूबा में लगाए अपने उन इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों को हटा दिया !
अब यक्षप्रश्न है कि यही अमरीका अपनी देश की सीमा के पास किसी घातक सैन्य साजोसामान को लगने नहीं देना चाहता! लेकिन रूस सहित दुनिया भर के तमाम देशों में अपने सैन्यसंगठन के माध्यम से उन्हें धमकाने के कुकृत्यों को किए जा रहा है ! आखिर इस दुनिया में न्याय, मानवीयता, सहिष्णुता, दया आदि इंसानियत की भावनाएं बिल्कुल खतम क्यों हो गयी हैं? सच को सच कहने को ही लोग राजी नहीं हैं। कल्पना कीजिए आज अगर अमरीका के पड़ोसी देशों यथा मैक्सिको, कनाडा और क्यूबा में रूस अपने सैन्य उपकरणों को लगाने लगे तो उस स्थिति में यही अमेरिका और उसके पिछलग्गू देश के कथित नेता और वहाँ के मीडिया का नजरिया क्या होगा? इसलिए पश्चिमी देश, उनके कर्णधार और पश्चिमी मीडिया यूक्रेन-रूस युद्ध के लिए केवल रूस के वर्तमान राष्ट्रपति व्लादिमीर व्लादीमीरोविच पुतिन को इकतरफा दोषी ठहराकर उन्हें गालीगलौज देना और चरित्र हनन करना बिल्कुल बंद करें और इस युद्ध के समाधान के लिए विश्वजनमत न्यायोचित समाधान की तरफ आगे बढ़े, नाटो सहित सभी नापाक सैन्य संगठन भी दुनिया के गरीब और जर्जर देशों को धमकाना बिल्कुल बंद करें, नाटो जैसे नापाक और ह़िंसक सैन्यसंगठन को भी तुरंत भंग किया जाय। तभी इस दुनिया से युद्धों पर लगाम लगाई जा सकती है और दुनिया भर में वास्तविक शांति और भाईचारा स्थापित हो सकता है।
(फेसबुक से)