28 अप्रैल। कर्नाटक में नागरिक समाज के व्यापक समूह का प्रतिनिधित्व करनेवाले ‘बहुत्व कर्नाटक’ और उससे संबंधित कई नागरिकों ने विगत रविवार को एक आभासी राष्ट्रीय विचार-विमर्श का आयोजन किया, ताकि लक्षित हिंसा, घृणा और भेदभाव के खिलाफ कार्रवाई की योजना बनाई जा सके।
विचार-विमर्श के प्रारंभिक नोट में कहा गया –
वर्ष 2022 में हिंदुत्व समूहों द्वारा विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ संगठित हिंसा में तेज वृद्धि देखी गयी है, जैसे धर्म संसद में नरसंहार का आह्वान, कर्नाटक में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की गलत व्याख्या, मुस्लिम महिलाओं का अपमान तथा रामनवमी पर हुई हिंसा के बाद सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार की माँग आदि। ‘सुल्ली डील्स’ और ‘बुल्ली बाई डील्स’ के जरिए मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और स्वतंत्रता पर हमला किया।
पुलिस की मौजूदगी में मुस्लिम महिलाओं के सामूहिक बलात्कार के लिए खुलेआम आह्वान किया गया। इससे पहले भी कई राज्यों में ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंसा हुई थी, और विभिन्न राज्यों में असंवैधानिक धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित किए जा चुके हैं। दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार भी लगातार बढ़ रहे हैं, जबकि दोषसिद्धि की दर बेहद कम बनी हुई है।
चिंता की बात यह भी है, कि संघ परिवार हाशिए पर खड़े और पीड़ित समुदायों के युवाओं को अपनी नफरत की परियोजना में पैदल सैनिकों के की भाँति इस्तेमाल कर रहा है, जैसा कि इस बात से पता चलता है, कि कैसे हिजाब मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने सरकारी स्कूलों के छात्रों को नफरत के लिए उकसाया। ‘कर्नाटक बहुत्व’ द्वारा आयोजित विचार-विमर्श का उद्देश्य नफरत को खत्म करने के लिए एक राष्ट्रीय आह्वान करना था, जिसने आज देश को अपनी चपेट में ले लिया है। दुखद बात यह है, कि यह भयावह नियमितता के साथ हो रहा है। पिछले हफ्तों में यह और भी खतरनाक ढंग से हुआ है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज के लोकतांत्रिक ताने-बाने को नष्ट करना है।
नफरत जो दूसरे को नीचा दिखाने, बदनाम करने, भेदभाव करने, अमानवीय बनाने के लिए फैलाई गई है। इस सबके लिए हमें उन लोगों को तत्काल जवाब देने की जरूरत है जो ‘नफरत को खत्म करो’ सिर्फ भाषणों में कहते हैं।
हाल ही में बुलडोजर के द्वारा किये गए जहांगीरपुरी विध्वंस की असंवेदनशीलता जोकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद रुकी। कोई भी नागरिक थोड़ी सी समझदारी के साथ आसानी से यह निष्कर्ष निकाल सकता है, कि यह अवैध निर्माण का मामला नहीं था (दिल्ली और अन्य जगहों पर लाखों अवैध निर्माण हुए हैं।)। बल्कि एक अल्पसंख्यक समुदाय को ध्वस्त करने के लिए अतिक्रमण विरोधी नीति का दुरुपयोग किया जा रहा है।
नफरत फैलानेवाले लोग बेखौफ होकर ऐसा करते हैं और खुद को दंडमुक्ति की छत्रछाया में रखते हैं। वे अच्छी तरह से जानते हैं, कि वे सत्तासीनों के लिए वही कर रहे हैं, जो वे वास्तव में चाहते हैं। उनका मानना है, कि कानून व्यवस्था में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो उन्हें कभी छू सके।
स्पष्ट है, कि देश में फैले नफरत के एजेंडे को रोकने की कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति ही नहीं है। इसके विपरीत सत्ता के ऊँचे-ऊँचे आसनों पर विराजमान महानुभावों की ओर से हर स्तर पर घृणा, विभाजन को भड़काने का हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। वे जानते हैं, कि यह चुनाव के समय प्रचुर राजनीतिक लाभ का स्रोत है। ध्रुवीकरण से बहुसंख्यकवाद स्वाभाविक रूप से बढ़ता है।
भारत में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना 2024 के आम चुनावों (और उससे ठीक पहले के कुछ राज्य चुनावों) के मद्देनजर एक सुनियोजित राजनीतिक एजेंडा है। वर्ष 2025 की एक भव्य योजना है, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपने अस्तित्व के सौ साल पूरे करेगा और उनके सपनों का ‘हिंदू राष्ट्र’ आकार लेगा। संकेत अशुभ हैं! क्या भारत के लोग उठेंगे, और राष्ट्र के समृद्ध बहुलवादी और लोकतांत्रिक ताने-बाने को बनाए रखने की चुनौती स्वीकार करेंगे?
नागरिक समाज को एक राष्ट्रव्यापी, समन्वित प्रतिक्रिया की बहुत आवश्यकता है, इससे पहले कि नफरत हमारे देश को पूरी तरह से अपनी चपेट में ले ले। हमें यह माँग करने की आवश्यकता है, कि सरकार संविधान के अनुसार कार्य करे। हम सभी को एकसाथ आने और संविधान की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरने की जरूरत है।
भारत के लोगों के लिए अच्छा होगा, कि वे नागरिक अधिकारों के नेता मार्टिन लूथर किंग से प्रेरणा लें। जिनके अनुसार, “अंधेरा, अंधेरे को नहीं चला सकता; प्रकाश ही ऐसा कर सकता है। नफरत, नफरत को दूर नहीं कर सकती; प्यार ऐसा कर सकता है।”
एक अन्य दिग्गज नेल्सन मंडेला के अनुसार, “कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से उसकी त्वचा के रंग, उसकी पृष्ठभूमि या उसके धर्म के कारण घृणा करने के लिए पैदा नहीं होता है। अगर वे नफरत करना सीख सकते हैं, तो उन्हें प्यार करना भी सिखाया जा सकता है, क्योंकि प्यार इंसान के दिल में स्वाभाविक रूप से आता है। नफरत कभी सफल नहीं हुई; हमेशा प्रेम की जीत होती है।”
(Counterview से साभार)
अनुवाद : अंकित कुमार निगम