6 मई। ग्लोबल वार्मिंग की वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकट में प्रवेश कर चुका है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने बढ़ते तापमान के बीच खेती के नए तरीकों की खोज के लिए 8 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद रिपोर्ट तैयार की थी, जो बीते 3 वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़ी है। चालू वर्ष में रबी की मुख्य फसल गेहूं के उत्पादन में 20 प्रतिशत से अधिक की कमी का अनुमान है, जो आनेवाले समय में खाद्यान्न संकट का कारण बन सकता है। बढ़ते तापमान से बचने के लिए फसलों का चक्र बदलने और कम समय में पैदा होनेवाली फसलों की खेती शुरू की जानी चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार मुख्य खाद्यान्न गेहूं की बुआई से लेकर कटाई तक का पूरा कालखंड कुछ हफ्तों के लिए एडवांस किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में 271 जिलों में न्यूनतम तापमान बढ़ने से कृषि उपज का जोखिम बढ़ा है। सर्वाधिक जोखिम वाले 201 जिलों में महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, राजस्थान, बिहार व ओड़िशा जैसे राज्य शामिल हैं। इन्हें जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए विशेष प्राथमिकता देने की सिफारिश की गयी है।
ग्लोबल वार्मिंग का असर
बीते कई वर्षों से तापमान में वृद्धि हो रही है, लेकिन इस वर्ष मार्च-अप्रैल से ही लू चलने लगी जिसके कारण रबी फसलों का उत्पादन घटा है। आईसीएआर ने 2011 में ही जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर दो चरणों में अध्ययन परियोजना शुरू की थी। पहले चरण के तहत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन क्लाइमेट रेसिलियट एग्रीकल्चर 2017 और फिर दूसरे चरण में नेशनल इन्नोवेशन इन क्लाइमेट रेसिलियंट एग्रीकल्चर 2019 में अध्ययन किया गया था।
(‘नवभारत’ से साभार)