11 मई। मंगलवार को सोसायटी फॉर कम्युनल हार्मनी (सद्भावना समाज) की ओर से ‘भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की भूमिका ‘ पर बहुत सार्थक संवाद आयोजित हुआ। मौका था 10 मई का। यह वह तारीख है जिस दिन 1857 में पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ था। हालांकि 1857 से पहले भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई छिटपुट लड़ाइयां चली थीं लेकिन 1857 में पहली बार ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने की लड़ाई देशव्यापी पैमाने पर हुई। इसकी दूसरी बड़ी विशेषता यह थी इस लड़ाई ने हिन्दू मुस्लिम एकता की शानदार मिसाल पेश की। 1857 की इस विरासत को आनलाइन गोष्ठी में प्रायः सभी वक्ताओं ने रेखांकित किया।
इतिहासकार और विधिवेत्ता अनिल नौरिया की अध्यक्षता में हुए इस संवाद में प्रो. एवं लेखक-एक्टिविस्ट शम्सुल इस्लाम, दिल्ली विवि के हिंदी के पूर्व प्रोफेसर एवं समाजवादी चिंतक प्रेम सिंह, वरिष्ठ पत्रकार-लेखक अरुण कुमार त्रिपाठी, इतिहास के प्रोफेसर एवं एक्टिविस्ट अजीत झा, राजनीति विज्ञानी प्रो शशि शेखर प्रसाद सिंह, राष्ट्र सेवा दल के नेता शाहिद कमाल आदि ने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के आरंभ में डॉ रणधीर गौतम ने सोसायटी फॉर कम्युनल हार्मनी (सद्भावना समाज) की पृष्ठभूमि और गतिविधियों के बारे में बताया। उन्होंने गोष्ठी का संचालन भी किया।