आरएसएस के बारे में देवानूर महादेव की किताब ने मचाई धूम

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8 जुलाई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना करती एक नई कन्नड़ पुस्तक औपचारिक लॉन्च से पहले ही बेंगलुरु में धड़ल्ले से बिक रही है। बीते शनिवार को 72-पेज की ‘आरएसएस : आला मट्टू अगला’ (द डेप्थ एंड ब्रेड्थ ऑफ आरएसएस) ने किताबों की दुकानों पर धूम मचा दी है। एक दुकान ने रविवार तक 500 प्रतियों का अपना पूरा स्टॉक बेच दिया। अन्य लोग इस किताब के अपने हाथ में आने का इंतजार कर रहे हैं। प्रकाशकों का स्टॉक लगभग समाप्त हो गया है।

कर्नाटक के अग्रणी लेखकों में से एक देवानूर महादेव द्वारा लिखित इस किताब में गोलवलकर, सावरकर और हेगडेवार के काफी सारे उद्धरण हैं। ये सभी उद्धरण यह दिखाते हैं कि हिंदू दक्षिणपंथी संगठन कैसे जाति व्यवस्था को सही ठहराते हैं और संविधान और संघवाद (संघीय ढांचे) का विरोध करते हैं।

कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार शिवसुंदर कहते हैं, कि देवानूर महादेव बहुसंख्यकवाद की लहर से चिंतित हैं और यह किताब दिखाती है कि बहुसंख्यकवाद कैसे समानता और स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ जाता है? उनका कहना है कि यह देखना मुश्किल नहीं है कि देवानूर की किताब क्यों धड़ल्ले से बिक रही है।” उन्होंने इसे सांप्रदायिकता और हिंदुत्व के उभार से चिंतित होकर लिखा है, और इस राजनीतिक विचारधारा का स्रोत आरएसएस है।”

राजाजीनगर में ‘आकृति बुक्स’ से एक दिन में सभी 500 प्रतियाँ बिकीं। मालिक गुरुप्रसाद डी.एन का कहना है, कि उन्होंने कथा-उपन्यास से इतर किसी कन्नड़ किताब के लिए इतनी उत्साहजनक प्रतिक्रिया कभी नहीं देखी। उन्होंने कहा, हमने कोई पूर्व आर्डर भी नहीं लिया था, न ही इसकी पूर्व घोषणा की थी। बिक्री अचानक हुई। एक इंजीनियर ने 10 प्रतियाँ खरीदीं, ताकि वह उन्हें अपने दोस्तों और परिवारों को वितरित कर सकें। व्याख्याताओं ने अपने छात्रों के लिए कई प्रतियाँ लीं।

गुरुप्रसाद कहते हैं, ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि कन्नड़ में आरएसएस का विश्लेषण करनेवाली बहुत कम किताबें हैं, इसका एक उल्लेखनीय अपवाद कर्नाटक में भाजपा के प्रथम अध्यक्ष ए.के.सुब्बैया द्वारा ‘आरएसएस अंतरंगा’ है, या शायद देवानूर की किताब का धूम मचाना वर्तमान राजनीति के खिलाफ जनता के गुस्से को दर्शाता है। उन्होंने पुस्तक में उद्धृत भाजपा शासित कर्नाटक में पाठ्यपुस्तक संशोधन का जिक्र करते हुए टिप्पणी की।

‘आरएसएस: आला मट्टू अगला’ के छह प्रकाशक हैं, जिन्होंने एकसाथ मिलकर देवानूर महादेव द्वारा साझा किये गए एक पीडीएफ की 9,000 प्रतियाँ मुद्रित कीं। बेंगलुरु स्थित ‘गौरी मीडिया ट्रस्ट’ जोकि शहीद पत्रकार गौरी लंकेश के नाम पर है, उनमें से एक है, जहाँ पर इसकी सभी प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इसके सहयोगी संपादक मुत्तुराजू कहते हैं, “हमें पता था, कि यह किताब अच्छा प्रदर्शन करेगी, क्योंकि यह ऐसे समय में आ रही है जब कर्नाटक में सांप्रदायिक तनाव अधिक है, और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने आरएसएस को एक आर्य संगठन कहा।” यहाँ तक ​​कि पूरे कर्नाटक में सक्रिय एक गैरसरकारी संगठन ‘मानव बंधुत्व वेदिके’ और मैसूर के ‘अभिरुचि प्रकाशन’ के पास क्रमशः 1,000 और 2,000 प्रतियों का पहला प्रिंट खत्म हो गया है।

गांधीनगर में किताबों की दुकान चलानेवाले ‘नव कर्नाटक प्रकाशन’ ने शुरुआती 1,000 के स्टॉक में से लगभग 850 प्रतियाँ बेची हैं। हाल ही में एक बेस्टसेलर किताब ‘मिसालती भ्रम मट्टू वास्तव’ है, जोकि उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एच.एन.नागमोहन दास द्वारा आरक्षण पर लिखी गयी है। एक ऑनलाइन स्टोर ‘जीरुंडे पुस्तक’ ने तीन दिनों में 600 प्रतियाँ बेचीं। अधिकांश ऑर्डर उत्तरी कर्नाटक के जिलों, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से आए। मालिक धनंजय एन, इस धुआंधार बिक्री का श्रेय महादेव की लेखन शैली को देते हैं, जो रूपक अलंकारों और लोक मुहावरों से समृद्ध है।

शिवसुंदर कहते हैं, कि देवानूर महादेव को ‘एकता की मूर्ति’ के रूप में भी देखा जाता है, और यह पुस्तक भाजपा की नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध के लिए एकजुटता का बिंदु हो सकती है। 2015 में, महादेव उन कई लेखकों में से थे, जिन्होंने अपने पद्म और केंद्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटा दिए। किताब की कीमत सिर्फ ₹40 है।

(Deccanherold.com से साभार)

अनुवाद : अंकित निगम

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  1. एक पुस्तक याराना पूंजीवाद के माध्यम से संघी के एजेंडे को लागू करने के कुत्सित प्रयास पर भी आनी चाहिए। याराना पूंजीवाद निजीकरण के माध्यम से आरक्षण समाप्त कर तथाकथित शूद्र जातियों के सदस्यों को शासन-प्रशासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से वंचित करने के उद्देश्य से चल रहा है। यह समस्त प्राकृतिक संसाधन दो-चार पूंजीपतियों को देकर अन्य राजनीतिक पार्टियों को समाप्त करना और जनता को धर्मांधता में फंसाकर उन्हें गुलाम बनाना की नीयत से संचालित है। जनता का गिरता आईक्यू इसका प्रमाण है। इस विषय पर भी एक सरल और संक्षिप्त पुस्तक की आवश्यकता है।

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