पिछले तीन वर्षों में देश में 554.3 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए बदल दिया गया है। लोकसभा में प्रस्तुत सरकारी आंकड़ों में इसकी जानकारी दी गई है। आंकड़ों के अनुसार, वन भूमि का सर्वाधिक 112.78 वर्ग किमी का डायवर्जन खनन कार्यों के चलते किया गया है।
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे द्वारा सोमवार को सदन में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, सरकार ने सड़क निर्माण के लिए 100.07 वर्ग किलोमीटर और सिंचाई सुविधाओं के लिए 97.27 वर्ग किलोमीटर वन भूमि के डायवर्जन को मंजूरी दे दी है। केंद्र ने बीते तीन वर्षों में रक्षा परियोजनाओं के लिए 69.47 वर्ग किमी वन भूमि, पनबिजली परियोजनाओं के लिए 53.44 वर्ग किमी, ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए 47.40 वर्ग किमी और रेलवे के लिए 18.99 वर्ग किमी वन भूमि के डायवर्जन को मंजूरी दी है।
वर्ष-वार बात करें तो सरकार ने 2019 में 195.87 वर्ग किमी. वन भूमि के डायवर्जन की अनुमति दी। जबकि 2020 में 175.28 वर्ग किमी और 2021 में 183.18 वर्ग किमी वन भूमि के गैर वानिकी उपयोग को मंजूरी दी गई है।
हालांकि दूसरी ओर देंखे तो भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले सात वर्षों में देश के वन क्षेत्र में 12,294 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। नवीनतम इंडिया स्टेट ऑफ़ फ़ॉरेस्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 और 2021 के बीच देश के वन क्षेत्र में 1,540 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। पिछले दो वर्षों में 1,540 वर्ग किलोमीटर के अतिरिक्त कवर के साथ देश में वन और वृक्षों के आवरण में वृद्धि जारी है। खास है कि वन भूमि अपवर्तन के बदले प्रतिपूरक वनरोपण किया जाता है।
वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार भारत का वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, यह देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है जो वर्ष 2019 में 21.67% से अधिक है। वृक्षों के आवरण में 721 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है। वनावरण में सबसे अधिक वृद्धि दर्शाने वाले राज्यों में तेलंगाना (3.07%), आंध्र प्रदेश (2.22%) और ओडिशा (1.04%) हैं। जबकि सबसे अधिक कमी पूर्वोत्तर के 5 राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड में हुई है।
उच्चतम वन क्षेत्र/आच्छादन वाले राज्य
क्षेत्रफल की दृष्टि से देंखे तो मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं। हालांकि कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में शीर्ष 5 राज्य मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर और नगालैंड हैं। खास है कि ‘वन क्षेत्र’ ‘(Forest Area) सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार भूमि की कानूनी स्थिति को दर्शाता है, जबकि ‘वन आवरण’ (Forest Cover) शब्द किसी भी भूमि पर पेड़ों की उपस्थिति को दर्शाता है।
इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से दृष्टि द विजन पत्रिका में 2020 में छपी रिपोर्ट और वन एवं पर्यावरण के लिये कानूनी पहल’ नामक पर्यावरणीय कानूनी फर्म द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, 24 राज्य जिन्होंने वर्ष 2019 में गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये वन भूमि के परिवर्तन की अनुशंसा की थी, उनमें 10 राज्यों की भागीदारी 82.49% है। 2019 में गैर-वानिकी उपयोग के सबसे ज्यादा प्रस्ताव ओडिशा (1698 हेक्टेयर), झारखंड (1647 हेक्टेयर) और मध्य प्रदेश (1627 हेक्टेयर) से आए हैं। 2019 में मेघालय में सबसे कम (6 हेक्टेयर) वन भूमि का गैर-वानिकी में परिर्वतन देखने को मिला है।
दूसरा दुखद पहलू यह है कि सबसे ज्यादा डायवर्जन सघन वन क्षेत्रों में हुआ है। दरअसल, प्राय: अत्यधिक सघन वनों में मानव अधिवास न के बराबर होते हैं। इससे मानव पुनर्वास तथा भूमि अधिग्रहण की लागत न के बराबर होती है। लगभग 58% वन भूमि जिसे गैर वानिकी उपयोग के लिये अनुशंसित किया गया है, ‘सघन वन श्रेणी’ के अंतर्गत है। गैर-वानिकी उपयोग के लिये अनुशंसित वन भूमि का लगभग 45% वन्य जीव संरक्षण प्रोजेक्टों के अंतर्गत आता है। जबकि 51.73% रैखिक परियोजनाओं जैसे सड़क, रेलवे, पारगमन लाइनों, पाइपलाइन आदि के अधीन है। इसके बाद खनन एवं उत्खनन और सिंचाई का नंबर है।
खास यह भी कि रैखिक सड़क, रेल व पारगमन लाइनों आदि परियोजनाओं के अधिक वन भूमि के परिवर्तन से क्षेत्रों में वनों की सघनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा वनों का विखंडन बढ़ता है। इससे वनों में अतिक्रमण बढ़ता है तथा ‘मानव-वन्यजीव संघर्ष’ में वृद्धि होती है।
– नवनीश कुमार