— सुज्ञान मोदी —
शिरडी साईं बाबा आधुनिक युग के सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकवंदनीय संत हैं। उनका दिव्य जीवन एक अनोखी घटना है। बाबा ने लगभग साठ वर्ष धरती पर (शिरडी गांव में) व्यतीत किये लेकिन यह कोई नहीं जान पाया कि वे हिन्दू हैं या मुसलमान। उन्होंने राम-रहीम की एकता को साक्षात जीकर दिखाया।
वस्तुतः बाबा सभी धर्म-सम्प्रदायों से ऊपर थे। उन्होंने धर्म की कट्टरता को ध्वस्त करते हुए एक सर्वधर्म समावेशी पथ की रचना की और धर्म को अध्यात्म में तथा अध्यात्म को श्रद्धा, सबुरी और भक्ति में परिवर्तित करने का संदेश दिया। बाबा जैसे फकीर संत जो सुख-दुख, हर्ष-विषाद, आशा-निराशा आदि सभी जीवन-भावों से मुक्त होते हैं, उन पर क्या प्रामाणिक और सृजनात्मक लेखन संभव है? निश्चित रूप से यह कार्य बहुत कठिन और चुनौतीपूर्ण है लेकिन इस पुनीत कार्य को कर दिखाया है युवा लेखक ओमप्रकाश टाक ने। उनकी लिखी साईं बाबा की सर्जनात्मक जीवनी मस्जिद में ब्राह्मण शीर्षक से इसी वर्ष प्रकाशित हुई है। किताब का शीर्षक कुछ लोगों को थोड़ा विस्फोटक प्रतीत हो सकता है लेकिन बाबा के संदर्भ में यह पूर्णतः सत्य है। वे एक खंडहरनुमा जगह पर रहते थे जिसे उन्होंने द्वारका माई मस्जिद नाम दिया था और खुद को वे ब्राह्मण कहते थे। उनका ब्राह्मण जाति या वर्णवाची नहीं बल्कि सत्य व ज्ञानवाची था। जो ब्रह्म को जानता है वह ब्राह्मण है, संस्कृत साहित्य में इस शब्द का एक अर्थ यह भी है।
‘मस्जिद में ब्राह्मण’ किताब के माध्यम से लेखक ने लगभग एक दशक के सघन अध्ययन एवं शोध के बाद बाबा के फकीर चरित का पुनर्पाठ एवं पुनराविष्कार प्रस्तुत किया है। इस कृति को पढ़ना एक अकल्पनीय और अद्भुत आनंद से गुजरना है। लेखक ने निजभक्ति को हृदय में संजोए रखकर और भक्ति के अतिरेक में न बहते हुए बहुत सजग सचेत दृष्टि से बाबा के लोकोत्तर चरित का उदघाटन किया है और उनके देवचरित और मानवचरित को जीवंतता के साथ उजागर किया है।
हृदयस्पर्शी भाषा में रचित बाबा की यह जीवनी पाठक को अंत तक बांधे रखती है और बाबा जैसे फकीर को समझने की नई दृष्टि देती है। पुस्तक का प्रत्येक अध्याय कबीर की कविता से शुरू होता है और सुखद अनुभव यह है कि उन काव्य पंक्तियों में बाबा के जीवन-चरित की एक झलक भी मिल जाती है। प्रत्येक अध्याय के अंत में संदर्भ सूत्र भी दिए हैं जिनसे किताब प्रामाणिक बन गई है। यों साईं बाबा के बारे में विपुल साहित्य उपलब्ध है लेकिन वह ज्यादातर भक्तों के अनुभवों से भरा है लेकिन इस एक किताब में बाबा की चरित कथा, उनका भक्त-मंडल, उत्सव-शैली, संदेश आदि के साथ शिरडी गांव का पुराना परिवेश भी सजीव हो उठा है इसलिए इस किताब का महत्त्व भी बढ़ जाता है।
‘मस्जिद में ब्राह्मण’ किताब को प्रलेक प्रकाशन ने बहुत रुचिपूर्ण एवं आकर्षक ढंग से छापा है। इसके प्रकाशन के कुछ दिनों बाद ही संस्कृत और हिन्दी के विख्यात मनीषी एवं पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने इस पर एक व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि ‘मस्जिद में ब्राह्मण’ किताब रोचक, सुपाठ्य एवं अच्छी हिन्दी में लिखी गई है और बाबा के सत्य को समझने के लिए बहुत उपयोगी है। यह पुस्तक एक तरह से बाबा की प्रामाणिक जीवनी है, इससे बाबा के जीवन के अनेक अध्याय खुलते हैं। लेखक ने बहुत परिश्रम और ईमानदारी से बाबा के जीवन से तथ्य निकाले हैं जो उनके अद्भुत-अलौकिक व्यक्तित्व को उजागर करते हैं। प्रो. त्रिपाठी ने यह भी कहा कि आज टीवी सीरियल्स पर जो बाबा दिखाए जा रहे हैं वह मनगढ़ंत हैं। यह पुस्तक उनके बारे में प्रामाणिक स्रोतों से जानकारी प्रदान करती है।
आज के दौर में जब सारे धर्म असहिष्णु हो रहे हैं और आस्था जहरीली हो रही है तब साईं बाबा जैसे संत फकीर का यह संदेश और अधिक प्रासंगिक हो जाता है कि आस्था अपने धर्म में रखो लेकिन आदर सभी धर्मों का करो…..। मैं सभी से ‘मस्जिद में ब्राह्मण’ किताब को पढ़ लेने का आग्रह करता हूँ। आपसी सद्भावना व भाईचारे के लिए भी पूज्य साईं बाबा का यह अनुपम नवचरित पढ़ना अत्यंत सामयिक और महत्त्वपूर्ण है।
मस्जिद में ब्राह्मण; लेखक : ओमप्रकाश टाक; प्रलेक प्रकाशन प्रा.लि. मुंबई; मूल्य : 249 रु. (पेपरबैक); 495 रु. (सजिल्द)
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