— डॉ सुनीलम —
नौ अगस्त 2022 को अगस्त क्रांति दिवस की 80वीं वर्षगांठ है। समाजवादी चिंतक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ राममनोहर लोहिया चाहते थे कि 9 अगस्त देश में इतने जोरदार तरीके से मनाया जाए कि 15 अगस्त का कार्यक्रम उसके सामने फीका पड़ जाए। लेकिन शासकों ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने 9 अगस्त की महत्ता कभी देशवासियों के सामने नहीं रखी। जनक्रांति की जगह उन्होंने राजसत्ता के हस्तांतरण को ही अत्यधिक महत्त्व दिया।
अगस्त क्रांति देश के ढाई सौ साल के स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा जन आंदोलन था। इस आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी थे जिन्होंने मुंबई के तत्कालीन मेयर, सोशलिस्ट नेता यूसुफ मेहर अली के सुझाव पर ‘क्विट इंडिया’, अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा देश को दिया था। गांधीजी ने कांग्रेस कार्यसमिति को संबोधित करते हुए कहा था कि आज से हर व्यक्ति खुद को आजाद समझे। उन्होंने अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन करने पर जोर दिया था। गांधीजी ने भाषण में जिस आजाद भारत की कल्पना की थी, उसमें हर किसी के पास समान आजादी और अधिकार होने की बात कही थी। जिसे बाद में भारत के संविधान में मूलभूत अधिकारों में जोड़ा गया, परन्तु आज के सत्ताधीशों ने उसपर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
अगस्त क्रांति के आंदोलन की खासियत यह थी कि इस आंदोलन के गांधीजी सहित लगभग सभी जाने-माने कांग्रेस के नेता जेल में थे। यह सर्वविदित है कि इसी गिरफ्तारी के दौरान ही गांधीजी की पत्नी और महादेव देसाई की जेल में ही मृत्यु हो गई थी।
सभी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद चर्चिल को लगा था कि अब आजादी का आंदोलन धीमा पड़ जाएगा। लेकिन एकदम उल्टा हुआ। देश भर में आजादी की चाहत रखनेवाली जनता विशेषकर युवाओं ने खुद इसका नेतृत्व किया था और इसे चलाया था। भूमिगत रहकर इस आंदोलन का नेतृत्व डॉ राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, उषा मेहता, एसएम जोशी आदि नेताओं ने किया था। उस समय जेपी जेल में थे लेकिन जेपी ने भी हजारीबाग जेल से भागकर इस आंदोलन का भूमिगत रहकर नेतृत्व किया था।
ढाई सौ साल के आजादी के आंदोलन के इतिहास में कोई दूसरा ऐसा जन आंदोलन नहीं है जिसमें पचास हजार आंदोलनकारियों की शहादत हुई हो तथा एक लाख से अधिक क्रांतिकारियों को जेल जाना पड़ा हो।
इस आंदोलन की यह भी खासियत रही कि आंदोलनकारियों द्वारा रेल की पटरियां उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने, प्रशासनिक कार्यालयों और पुलिस थानों पर झंडे फहराने के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर किये गए थे। इनमें हजारों आंदोलनकारी पुलिस की गोलियों से मारे गए लेकिन आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ उनकी जान लेने की दृष्टि से हिंसा नहीं की थी। यह अहिंसा के प्रति गांधीजी के आग्रह का प्रभाव था। यदि भूमिगत क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की हत्या का इरादा बनाया होता तो यह आंदोलन जन आंदोलन नहीं हो सकता था। यह भी याद रखना जरूरी है कि इस आंदोलन को गांधीजी ने चौरीचौरा आंदोलन की तरह वापस नहीं लिया था। 1942 का आंदोलन आजादी मिलने तक जारी रहा, सभी कांग्रेस नेताओं को 1946 में छोड़ दिया गया लेकिन अंग्रेज जेपी और लोहिया को छोड़ने को तैयार नहीं थे। गांधीजी के सार्वजनिक बयान देने के बाद उन्हें छोड़ा गया।
इस आंदोलन की यह भी खासियत थी कि हिंदुओं और मुसलमानों ने एकसाथ आकर बड़े पैमाने पर आंदोलन में हिस्सा लिया था। आंदोलन का एक केंद्र बम्बई था। बम्बई जैसे शहर का मेयर यूसुफ मेहर अली का चुना जाना, सरदार पटेल द्वारा यूसुफ मेहर अली को कांग्रेस का टिकट दिलाया जाना बतलाता है कि तब बम्बई में हिन्दू मुस्लिम एकजुटता का माहौल था। सतारा, बलिया, मिदनापुर आदि जगहों पर तो समानांतर सरकारें गठित की गई थीं।
गांधीजी ने विश्वयुद्ध के दौरान ही आंदोलन का समय चुना था। वे दोनों ही पक्षों की हार या जीत के पेंच में भारत की आजादी को नहीं फॅंसाना चाहते थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होते हुए भी वे बार-बार यह कहते थे कि मैं अंग्रेजों से नफरत नहीं करता तथा किसी को भी नहीं करनी चाहिए और ना ही जापान और जर्मनी को प्यार से देखना चाहिए क्योंकि गांधीजी गुलामी की अदला-बदली नहीं चाहते थे यानी कहीं ऐसा न हो कि देश अंग्रेजों से तो आजाद हो जाए पर जापान और जर्मनी का गुलाम बन जाए।
गांधीजी ने 73 वर्ष की उम्र में अपने 2 घंटे के भाषण में अधिकतर समय हिंदू-मुस्लिम एकजुटता की जरूरत समझाने में लगाया था। गांधीजी की वह अपील ही देश को बचा सकती है।
अंग्रेजों भारत छोड़ो नारा देते समय गांधीजी का जो सपना था, वही सपना अगस्त क्रांति दिवस के 80 वर्ष बाद डॉ.जी जी परीख जी आज भी देख रहे हैं।
1942 के आंदोलन में विद्यार्थी के तौर पर शामिल रहे 10 माह अंग्रेजों की जेल काटने वाले डॉ परीख आजादी के बाद से आज तक हर वर्ष मुंबई के चौपाटी से तब के गवालिया टैंक तथा अब के अगस्त क्रांति मैदान तक पैदल मार्च करते हैं। डॉ परीख कहते हैं कि आज का समय तब के समय से भी ज्यादा कठिन समय है क्योंकि आज जो लोग सत्ता में बैठे हैं वे धर्म के आधार पर भेदभाव कर अंग्रेजों से भी ज्यादा जुल्म कर रहे हैं। वे हिटलर से प्रेरणा लेकर देश में राज चलाने की कोशिश कर रहे हैं ।
डॉ. जी जी परीख चाहते हैं कि देश में फिर अगस्त क्रांति जैसा माहौल बने। 1942 में देश का हर दूसरा, तीसरा नौजवान देश को बचाने के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो गया था। वैसी ही तैयारी की आज जरूरत है। जी जी कहते हैं अब देश को बचाने और बनाने के लिए बड़े पैमाने पर समाजवादियों को जेल जाने की तैयारी करनी होगी। डॉ जी जी परीख की आज यह सबसे बड़ी चिंता है। अन्य देशवासियों की भी यही चिंता होनी चाहिए ।
इस बार का 9 अगस्त गत 80 वर्षों में सबसे महत्त्व का है। इस अवसर पर मुंबई की गिरगांव चौपाटी से अगस्त क्रांति मैदान तक ‘नफरतों भारत छोड़ो’ मार्च निकाला जा रहा है, जिसका नेतृत्व 1942 के आंदोलन के एक नायक रहे डॉ जी जी परीख, दत्ता गांधी जी के साथ साथ महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और गांधीवादी हिमांशु कुमार, राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष नितिन वैद्य और सर्वोदय मंडल के फिरोज मीठी बोरवाला द्वारा किया जा रहा है।
उदयपुर में हिम्मत सेठ और दिल्ली में समाजवादी समागम के प्रो. राजकुमार जैन, हिंद मजदूर सभा के महामंत्री हरभजन सिंह सिद्धू , गोरखपुर में समाजवादी समागम के महामंत्री अरुण श्रीवास्तव के नेतृत्व में जनक्रांति दिवस पर मार्च निकाले जा रहे हैं।
एक बार फिर देश के किसान और युवा बेरोजगार मैदान में है। 550 किसान संगठनों के मंच संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा देश में 500 जय जवान जय किसान सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। अग्निवीर योजना की मुखालफत युवाओं द्वारा की जा रही है। युवा संगठनों की यात्राएं बिहार और उत्तर प्रदेश में निकाली जा रही हैं। उत्तर प्रदेश में सपाइयों द्वारा ‘देश बचाओ, देश बनाओ’ पदयात्राएं निकाली जा रही हैं।
महाराष्ट्र में ‘हर घर में झंडा, हर हाथ में संविधान’ अभियान चलाया जा रहा है। देश के केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा श्रम कानूनों की बहाली, 4 लेबर कोड निरस्त करने, निजीकरण पर रोक जैसी मांगों को लेकर आंदोलन जारी है। अगस्त क्रांति का लक्ष्य किसानों और मजदूरों की मुक्ति हासिल करना था।
आजादी मिलने के 75 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, परंतु अगस्त क्रांति के शहीदों का सपना साकार नहीं हो सका है। जिन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था या आजादी के आंदोलन के साथ गद्दारी की थी, उनसे कोई भी उम्मीद करना बेकार है।
आज बिखरे हुए विपक्षी दलों की न्यूनतम कार्यक्रमों के आधार पर एकजुटता के बाद देश के जनसंगठनों के सड़कों पर आने के बाद ही कोई बदलाव संभव हो सकता है ।
आइए हम अगस्त क्रांति के शहीदों को याद करते हुए उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लें। तन,मन धन से मैदान में उतरें। आज फिर अगस्त क्रांति की भावना को आत्मसात करने की जरूरत है।