18 अगस्त। देश के विभाजन के समय दिल्ली के शाहदरा में आकर बसे लोगों के सामने अब एक गंभीर संकट उठ खड़ा हुआ है। यह संकट डीडीए की देन है। असल में डीडीए ने यह फैसला 60 फीट चौड़ी रोड बनाने के लिए लिया है। कस्तूरबा बस्ती में सैकड़ों घरों को ढहाने के नोटिस के बाद निवासियों ने जंतर मंतर पर मंगलवार को डीडीए के इस फैसले के खिलाफ धरना दिया। डीडीए ने बीते दो अगस्त को नोटिस चस्पां किया था और 18 अगस्त को बुलडोजर लेकर आने की बात कही है। गौरतलब है कि यहाँ करीब 200 लोग 70 साल से रहते आए हैं। ये लोग पाकिस्तान से आकर यहाँ बसे थे। बस्ती में रहनेवाले गरीब व मजदूर वर्ग के लोग हैं।
कस्तूरबा नगर के लोगों द्वारा बनाई गई स्थानीय समिति ने जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया। इस प्रदर्शन में AICCTU, AISA, bsCEM, कलेक्टिव, DISHA, DSU और PACHAS के सदस्य भी शामिल थे।प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि “डीडीए की इस तानाशाही की वजह से यहाँ के लोग खौफ में हैं। डीडीए यह सब प्रॉपर्टी डीलरों और पास की कॉलोनी के लोगों के दबाव में करना चाहती है। अब इसके जवाब में लोगों ने फैसला लिया है, डीडीए के बुलडोजर के नीचे दबकर मर जाएंगे, लेकिन घर नहीं छोड़ेंगे।” प्रदर्शन में शामिल दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जितेंद्र मीणा ने कहा, कि देश भर में दलितों और आदिवासियों पर उनकी जमीन और संपत्ति को छीनने की कोशिशें लगातार जारी हैं।
संगठनों का कहना है, कि कस्तूरबा बस्ती शाहदरा में गरीब, दलित और मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं। ये लोग यहाँ 70 साल से रह रहे हैं। सरकार एक तरफ घर घर तिरंगा का नारा लगा रही है, वहीं दूसरी तरफ जिनके घर बने हुए हैं, उन्हें तोड़ने का फरमान जारी करती है। गौरतलब है कि 2 अगस्त को डीडीए की तरफ से यहाँ जगह-जगह बस्ती खाली करने और 18 अगस्त को बुलडोजर के जरिए बस्ती तोड़ने का फरमान जारी किया गया है। निवासियों का कहना है कि मुआवजा तो दूर, डीडीए द्वारा पुनर्वास तक का कोई इंतजाम नहीं किया गया है। डीडीए के इस रुख के बाद से यहाँ के लोग एक खौफ में जी रहे हैं।
प्रदर्शन में शामिल हुए मजदूर संगठनों का आरोप है कि सरकार ने केवल तिरंगा लगाने तक ही घरों में रहने की अनुमति दी थी, उसके बाद अब सभी को इस बात के लिए धमकाया जा रहा है कि जल्दी घरों को खाली करो। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने राजस्थान के इंद्र मेघवाल की हत्या की निंदा की है। उनका कहना है कि “यह भी देश में दलितों की दयनीय स्थिति का सूचक है। दलितों के खिलाफ अत्याचार कोविड के बाद से बढ़ रहे हैं और कस्तूरबा नगर बढ़ते अत्याचारों का एक प्रमुख उदाहरण है।”
(‘वर्कर्स यूनिटी’ से साभार)