
— रामप्रकाश कुशवाहा —
रामायण-प्रसंगों पर हलधर नाग के काव्य एवं युगीन विमर्श” पुस्तक पद्मश्री सम्मान प्राप्त प्रसिद्ध ओड़िया कवि हलधर नाग के सम्बलपुरी भाषा में लिखे चार प्रबंध काव्यों का हिन्दी भाषा में किया गया अनुसर्जन है। किसी कृति के काव्यात्मक अनुवाद के लिए अनुसर्जन एक अच्छा शब्द है। इसके हिन्दी अनुसर्जक दिनेश कुमार माली ने शब्दानुवाद की जगह हलधर नाग के काव्य के आस्वाद की जिस मनोयोग से रचना की है, उसने उनके ओड़िया काव्यों के आस्वाद के मूल तक उनके अनुसृजन को पहुंचा दिया है। अनुसर्जक-अनुवादक दिनेश कुमार माली ने इन काव्यों का हिन्दी नाम- ”रसिया कवि तुलसीदास” ,”अछूत”, ”तारा- मंदोदरी” और ‘महासती उर्मिला’ नाम से किया है ।
”रसिया कवि तुलसीदास” में जिस प्रकार संवेदनाधर्मी कल्पना के साथ तुलसीदास की मर्मस्पर्शी जीवन-गाथा को सहानूभूति और करुणाशीलता के साथ रचा है वह हलधर नाग के एक बड़ा यानी महान कवि होने का रहस्य खोलती है। नाग को सिर्फ तुलसी के जीवन और मर्म की चिन्ता है। वे आधुनिक विचारधाराओं के चश्मे से देखकर अपना काव्य-वृत्तान्त नहीं रचते । उनकी चिन्ता लोक और जीवन के लिये आवश्यक सत्य के शोध की रहती है ।

‘रसिया कवि तुलसीदास’ में रामबोला से तुलसीदास बनने तक कवि के जीवन के सफर पर कवि हलधर की नजर है। तुलसीदास की निजी जीवनी को दस सर्गों में बांधा है। ज्योतिषीय अन्धविश्वास के आधार पर बालक तुलसी का उनके अपने ही निर्धन पिता द्वारा परित्याग निरीहता और धार्मिक क्रूरता का एक नया रुप पाठकों के सामने लाता है। इस घटना को राम के नहीं बल्कि तुलसी के ही अपने बनवास के रूप में देखा जा सकता है –
”पुकारते-पुकारते रुंध गया गला
आधा दिन देखते-देखते बीता
चारों तरफ दिखने लगा ॲंधेरा
कहाँ चले गए मेरे पिता?
‘अछिया यानी अछूत ‘ हलधर नाग का दूसरा मार्मिक महाकाव्य है। यह एक पौराणिक आख्यान को एक झकझोर देनेवाली मार्मिक टिप्पणी द्वारा पूरे कथानक को विद्रोही और क्रान्तिकारी पुन:पाठ में बदल देता है। कृति का सन्देश यह है कि शबरी को अछूत बनाना परमात्मा को ही अछूत बना देना होगा। शबरी की पीड़ा का अत्यंत मार्मिक और प्रामाणिक वर्णन किया है नाग कवि ने –
”नाम की मैं मनुष्य योनि में पैदा हुई/असल कुत्ते से भी हीन ”
कवि के पास अस्पृश्यता के विरुद्ध अत्यंत भावुक किन्तु निर्णायक तर्क है –
”अगर दुनिया कहती है तुम हो/ अछूत शबरी/ फिर क्यों खिलाई मुझे/ अपनी जूठी बेरी ।/ तुम्हारे चाटने से/ क्या राम नहीं हुए अपवित्र/ फिर भी तुम कहती हो,अछूत शबरी/ है शबरी अछूत ।/ अछूत शबरी का खाना खाकर/ हर अछूत राम / नाम पड़ा उस दिन से/ पतित पावन राम ।’
तीसरा काव्य ”तारा-मंदोदरी’ अखंडित और समग्र प्रेम और समर्पण का महिमा-मंडन करती है। कवि के अनुसार विभाजित मनस्कता ही उनके पतियों की मृत्यु का कारण बनी। राम कथा के बालि और रावण जैसे दो महाबली चरित्र अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो मन से न लड़ने के कारण दोनों ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
चौथा काव्य ”महसती उर्मिला” लक्ष्मण की सुरक्षा के लिए उर्मिला की चारित्रिक विशेषताओं को पाँच मानपत्र के माध्यम से प्रस्तुत करता है।
सुच्य है कि हलधर नाग ओड़िया की सम्बलपुरी भाषा में कविताएं लिखते हैं। दलित, अनपढ़ और निर्धन होते हुए भी उनकी आंखें मानवीय मुक्ति के सारे अदेखे रास्तों को देखने और दिखाने में सक्षम हैं।
रामायण-प्रसंगों पे हलधर नाग के काव्य एवं युगीन विमर्श
अनुसर्जक- दिनेश कुमार माली
प्रकाशक- पाण्डुलिपि प्रकाशन
77/1,ईस्ट आजाद नगर,
दिल्ली-110051
संस्करण -2022
मूल्य- ₹ 995/00
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