वन अधिकार और पेसा कानून पर जागरूकता के लिए आदिवासी संगठनों की बड़ी पहल

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25 अगस्त। पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा के भूमिज आदिवासी समुदाय के तपन कुमार सरदार ने पिछले सप्ताह अपने इलाके के आदिवासी गाँवों में एक रैली का आयोजन किया। यह रैली बेहद खास और आमतौर पर होनेवाली रैलियों से बिलकुल अलग थी। इस रैली का मकसद आदिवासियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना था। इस रैली के सिलसिले में बात करते हुए उन्होने कहा, “जैसा देश भर में देखा गया है, कि आदिवासियों की जमीन विकास के नाम पर लूटी गई है। वैसे ही हमारे बांकुड़ा इलाके में भी आदिवासी की जमीन और जंगल पर कब्जा किया जा रहा है। यहाँ पर ग्राम सभा की अनुमति के बिना ही जंगल की जमीन ले ली जाती है।”

तपन कुमार कहते हैं कि आदिवासी के हकों की रक्षा के लिए बने कानून तो हैं, लेकिन उसके बारे सही जानकारी और इस्तेमाल भी जरूरी है। इसलिए उन्होंने अपने समुदाय के आदिवासियों को स्थानीय भाषा में इन कानूनों की जानकारी देने की जिम्मेदारी ली है। वो पिछले एक दशक से ज्यादा समय से इस काम में जुटे हैं। वो कहते हैं, “आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन पर अधिकार के लिए फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 मौजूद है, इसके अलावा पेसा कानून 1996 भी मौजूद है। लेकिन इन कानूनों के प्रति आदिवासी समुदाय में पर्याप्त जागरूकता नहीं है।”

हालांकि तपन कुमार सरदार कहते हैं कि अब आदिवासी समुदायों में पढ़े लिखे लोग बढ़ रहे हैं। इसलिए अपने हकों को भी समझ रहे हैं। पश्चिम बंगाल में आदिवासियों में उनके कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए एक नए संगठन का गठन किया गया है। इस संगठन का नाम वनाधिकार और प्रकृति बचाओ महासभा रखा गया है।


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