15 सितंबर। मानवाधिकार संगठन ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट में सामने आया है, कि भारत में महिलाएं श्रम क्षेत्र का हिस्सा इसलिए नहीं बन पा रही हैं, क्योंकि उन्हें पैसा बहुत कम मिलता है, साथ ही लैंगिक भेदभाव भी झेलना पड़ता है। रिपोर्ट कहती है, कि भारत अगर महिलाओं की श्रम क्षेत्र में हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है, तो सरकार को बेहतर वेतन, प्रशिक्षण और नौकरियों में आरक्षण जैसी सुविधाएँ उपलब्ध करानी होंगी।
‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022’ शीर्षक से जारी की गई यह रिपोर्ट सुझाव देती है कि नियोक्ताओं को भी महिलाओं को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। भारत सरकार के आँकड़ों के मुताबिक 2021 में भारतीय श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ 25 प्रतिशत थी। दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं यह सबसे कम है। 2020-21 के भारत सरकार के आँकड़ों के मुताबिक सिर्फ 25.1 प्रतिशत महिलाएं श्रम शक्ति का हिस्सा हैं। यह 2004-05 से भी कम हो गया है, जबकि 42.7 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही थीं। रिपोर्ट कहती है, कि इन वर्षों में महिलाओं का काम छोड़ जाना एक चिंता का विषय है, जबकि इस दौरान भारत में तेज आर्थिक वृद्धि हुई है।
बीते दो साल में कोरोना वायरस महामारी ने भी महिलाओं को बड़े पैमाने पर श्रम बाजार से बाहर कर दिया है, क्योंकि नौकरियां कम हो गईं और जिन लोगों की नौकरियां इस दौरान गईं, उनमें महिलाएं ज्यादा थीं। ऑक्सफैम इंडिया के प्रमुख अमिताभ बेहर कहते हैं, कि महिलाओं के प्रति भेदभाव एक बड़ी समस्या है। एक बयान में उन्होंने कहा, “रिपोर्ट दिखाती है, कि अगर पुरुष और महिलाएं समान स्तर पर शुरुआत करते हैं, तो महिलाओं को आर्थिक क्षेत्र में भेदभाव झेलना होगा। वे वेतन में पीछे छूट जाएंगी और अस्थायी काम या फिर स्वरोजगार में भी आर्थिक रूप से पीछे छूट जाएंगी।” रिपोर्ट के मुताबिक 98 प्रतिशत गैरबराबरी की वजह लैंगिक भेदभाव होता है। बाकी दो प्रतिशत शिक्षा और अनुभव आदि के कारण हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया, कि समाज के अन्य तबकों को भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
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