12 अक्टूबर। झारखंड में एनीमिया (खून की कमी) ने यहाँ बड़ी आबादी को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में 67 फीसदी बच्चे एनीमिक पाये गये हैं, वहीं महिलाओं में यह बीमारी 65.3 फीसदी, जबकि पुरुषों में 30 फीसदी के आसपास पायी गयी है। हालांकि NFHS-5 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पाँच वर्षों में एनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या में तीन प्रतिशत की कमी आयी है। इससे पहले NFHS-4 में यह आँकड़ा 70 प्रतिशत था।
ग्रामीण और आदिवासी बहुल इलाकों में ऐसी महिलाओं की तादाद सबसे ज्यादा पायी गयी है। NFHS-4 में राज्य में एनीमिया पीड़ित महिलाओं की तादाद 65.2 फीसदी थी, वहीं एनएफएचएस-5 में यह आँकड़ा 65.3 फीसदी है। विशेषज्ञों के अनुसार, झारखंड के शिशुओं में कुपोषण की सबसे बड़ी वजह उन्हें पूरक आहार नहीं मिलना है। जन्म के बाद छह महीने की आयु पूरी करने पर यह बच्चों को मिलना चाहिए, लेकिन राज्य में केवल सात प्रतिशत बच्चों को आयु के अनुपात में समुचित आहार मिल पाता है। आसान भाषा में कहा जाए तो 10 में लगभग 1 बच्चे को समुचित आहार मिल पा रहा है।
राज्य में कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ राज्य सरकार ने पिछले साल से एक हजार दिनों का महाअभियान शुरू किया था। झारखंड सरकार का कहना है कि केंद्र से मिलनेवाली मदद में कटौती के चलते इस अभियान में बाधा आ रही है। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने मीडिया के हवाले से बताया, कि राज्य सरकार ने कुपोषण से निपटने के लिए वृहद पैमाने पर कार्य योजना बनाई है। हम लोग कुपोषण को रोकने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। हमने राज्य के प्रत्येक जिले को निर्देशित किया है कि कुपोषित बच्चों का आँकड़ा तैयार कर उनके बेहतर इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित करें, साथ ही कुपोषण रोकने के लिए हरसंभव तैयारी करने का निर्देश दिया है।
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