9 नवम्बर। भारत की आबादी आज 130 करोड़ से अधिक है, जिसमें अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या बहुत बड़ी है। लेकिन इन दिनों दिहाड़ी मजदूरों को रोजगार की तलाश में दर-दर भटकना पड़ रहा है। हाल ही में आई आजीविका ब्यूरो की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है, कि देश में दिहाड़ी मजदूर कम से कम 15 दिनों का रोजगार तलाश कर रहे हैं। राजस्थान की एक एनजीओ आजीविका ब्यूरो के सेंटर फॉर माइग्रेशन एंड लेबर सॉल्यूशंस की प्रोग्राम मैनेजर दिव्या वर्मा ने कहा, कि देश में आर्थिक मंदी की वजह से मजदूरों को आधे महीने से भी कम समय के लिए नौकरी मिल पाई है। रिपोर्ट में कहा गया है, कि इन दिहाड़ी मजदूरों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रोजगार की अनिश्चितता है। किसी भी दिन इस बात की गारंटी नहीं होती, कि उन्हें काम मिल जाएगा।
विदित हो, कि आजीविका ब्यूरो एक विशेष सार्वजनिक सेवा पहल है, जो भारत के अनौपचारिक और प्रवासी मजदूरों के लिए सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करती है। रिपोर्ट में कहा गया है, कि पुणे में रोजाना करीब 2000 दिहाड़ी मजदूर सड़क और फ्लाईओवर्स के किनारे काम की तलाश में इकट्ठा होते हैं। सिर्फ पुणे में 30 नाके (लेबर चौक) हैं। ऐसे नाकों पर प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में दिहाड़ी मजदूर इकट्ठा होते हैं, जो ठेकेदारों, लेबर सप्लायर्स और बिचौलियों की प्रतीक्षा करते हैं। इन मजदूरों और ठेकेदारों के बीच बिना किसी लिखित दस्तावेज के मजदूरी दर, काम के घंटे और कार्य की प्रकृति पर बात होती है। यही कारण है कि भगुतान के अंतिम दिन नियमों का उल्लंघन होता है। इन दिहाड़ी मजदूरों की दैनिक मजदूरी मात्र 500 से 600 रुपये है, जोकि देश में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम है।
(‘वर्कर्स यूनिटी’ से साभार)
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