7 दिसंबर। हाल के बरसों में दुनिया के हर हिस्से में वायु प्रदूषण बढ़ा है। भारत के महानगरों में नवजात और बड़े होते बच्चे भी दमघोंटू हवा के घेरे में कई स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार बन रहे हैं। डब्ल्यूएचओ द्वारा वर्ष 2021 में किए गए एक शोध के अनुसार दुनिया भर में हर साल 8.30 लाख नवजात बच्चों की अकाल मौत का कारण दूषित वायु है। गौरतलब है, कि भारत में वायु प्रदूषण से हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवा देते हैं। हवा में घुले विषाक्त तत्त्वों के चलते आज एक बड़ी आबादी दमा, हृदय रोग, कैंसर, चर्म रोग आदि से ग्रस्त है।
दुनिया में पहली बार किए गए एक शोध में मानव जीवन के लिए खतरा बने प्रदूषण से जुड़ी डरावनी स्थितियां सामने आई हैं। ‘जर्नल नेचर कम्युनिकेशन’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि इसके लिए बढ़ता वायु प्रदूषण भी जिम्मेवार है। 137 देशों में स्टिलबर्थ से जुड़े आँकड़ों के विश्लेषण से पता चला है, कि 8.3 लाख अजन्मों की मौत के लिए बढ़ता प्रदूषण विशेषरूप से पीएम 2.5 जिम्मेवार है। इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है, कि इसका सबसे ज्यादा बोझ कमजोर और विकासशील देशों पर पड़ रहा है। अनुमान है कि इन देशों में स्टिलबर्थ के 39.7 फीसद मामलों के पीछे की वजह यह बढ़ता प्रदूषण ही है।
शोध से पता चला है कि पीएम 2.5 से जुड़े स्टिलबर्थ के मामलों में भारत अव्वल है। जहाँ हर साल यह प्रदूषण गर्भ में ही जीवन खोने वाले 217,000 अजन्मों की मौत की वजह है। इसके बाद पाकिस्तान में स्टिलबर्थ यह आँकड़ा 110,000, नाइजीरिया में 93,000, चीन में 64,000 और बांग्लादेश में 49,000 दर्ज किया गया है। वहीं यदि पीएम 2.5 के कारण मृत जन्म लेने वाले बच्चों के अंश की बात करें, तो इस मामले में कतर सबसे ऊपर है। जहां स्टिलबर्थ के 71.2 फीसदी मामलों के लिए यह प्रदूषण जिम्मेवार है। इसके बाद सऊदी अरब में 68.4, कुवैत में 66 फीसदी, नाइजर में 65.7 फीसदी और संयुक्त अरब अमीरात में 64.6 फीसदी स्टिलबर्थ के लिए पीएम 2.5 जिम्मेवार है। वहीं उच्च जोखिम और बड़ी मात्रा में सामने आने वाले स्टिलबर्थ के मामलों के चलते दक्षिण एशिया, उप सहारा अफ्रीका इसके हॉटस्पॉट बने हुए हैं।
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