कंबोडिया के ये भग्नावशेष!

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— रमाशंकर सिंह —

कंबोडिया में विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर (किसी भी हिंदू देवता का मंदिर) था कई किमी में फैला हुआ और वियतनाम में भी शिवमंदिरों के कई समूह थे। कभी भारत के पूर्वी तट के राजाओं ने वियतनाम तक अपना राज स्थापित कर लिया था और बहुतेक स्थानों पर विशाल मंदिर बने। कालांतर में यहॉं जाति व्यवस्था के विरोध में बुद्ध धर्म अपनाया गया।

पचास-साठ साल पहले बरसों तक अमरीकी बमबारी में अकारण ही इन देशों के सभी मंदिर समूह नष्ट कर दिये गये थे। शहरों गाँवों को भारी नुकसान हुआ था। कोई मुग़ल, मंगोल, ख़िलजी सिकंदर चंगेज़ यहॉं नहीं आया था !

स्थानीय बहादुर जनता लड़ी मरी पर सरेंडर नहीं किया। असंख्य हत्याएं बलात्कार यातना सब कुछ हुआ पर अमरीकियों को वहॉं से भागना ही पड़ा ! ये बहादुर कौम है।

कंबोडिया के विशालतम विष्णुमंदिर के एक छोटे-से हिस्से का जीर्णोद्धार तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने करवाया था ! आज भी वहॉं भग्नावशेष बचे हैं जिनकी पृष्ठभूमि में विदेशी फिल्में शूट होती हैं। दुनिया में 125 करोड़ हिंदू हैं। वे उसे पर्यटक रूप में देखने जाते हैं और अपनी भावनाएं सहेज कर वापिस ले आते हैं। एक बार भी दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों का संयुक्त मंच बनाकर विश्वगुरु भारत ने यह कोशिश भी नहीं की कि अमेरिका उन मंदिरों का पुनरुद्धार कराने के लिए अपने साधन दे जिसके ध्वंस के लिए वह नैतिक रूप से जिम्मेदार है।

उसी अमरीका के पक्ष में हिंदूहृदय सम्राट अपनी नीतियों को घोषित करते रहे और भावनाएं कभी भी आहत नहीं कीं। भावनाएं आहत करने के लिए भी एक ऐसा कमजोर लक्ष्य बनाया जाता है जो विरोध के काबिल ही नहीं हो। कभी कहीं अमरीका में जाकर अपनी भावनाएं आहत करिए ना, जहॉं की जेलों मे कैदियों की पोशाक भी भगवा रंग की है।

ये चित्र 2017 की मेरी यात्रा के दौरान लिये गये थे। उस समय बमबारी के बाद यह सब देखकर हिंदुओं की भावनाएं कितनी आहत हुई थीं यह तो मुझे नहीं पता पर यह ज़रूर मालूम है कि अमेरिका आज की हिंदू पीढ़ी के लिए तीर्थ समान है। जो वहॉं नौकरी करते हुए बसा नहीं उसकी ज़िंदगी भी कोई जिंदगी है, चाहे यहॉं भारत में उनके मॉं-बाप वृद्धाश्रमों में सड़ते रहें!

देश के लिए लड़ना मरना जीतना और कभी न झुकना सीखना है तो इस वीर वियतनामी कौम से सीखो।

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