स्वतंत्रता सेनानी डॉ जी जी परीख आज देश को लेकर इतने चिंतित क्यों हैं

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— डॉ सुनीलम —

नए मनुष्य के निर्माण से ही नए समाज का निर्माण संभव है

लोगों के बीच जाना होगा, संघर्ष तो करना ही होगा लेकिन केवल संघर्षों से काम नहीं चलेगा, रचनात्मक कार्य हाथ में लेने होंगे, जरूरतमंदों की सेवा करनी होगी, खुद को खपाना होगा

– डॉ जी जी परीख

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं देश के वरिष्ठतम समाजवादी डॉ जी जी परीख कल 99वें वर्ष में प्रवेश किया। हर वर्ष जी जी के जन्मदिन पर मुंबई के समाजवादी, उनके साथ बैठते हैं। समाजवादी विचार को आगे बढ़ाने की कुछ योजनाएं बनाते हैं।

इस बार जी जी ने आर्थिक विकल्पों पर बात की, वैकल्पिक अर्थव्यवस्था पर अपने विचार साझा किए। वे यूसुफ मेहर अली सेंटर के माध्यम से वैकल्पिक अर्थव्यवस्था का ग्रामीण विकास मॉडल विकसित करने के लिए 1961 से सतत रूप से प्रयासरत हैं। सेंटर का औपचारिक उदघाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन ने 1966 में किया था।

जी जी कहते हैं कि केवल राजनीतिक परिवर्तन से बात नहीं बनेगी। वे इसे संपूर्ण विपक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानते हैं। जी जी के अनुसार गांधीजी ने चरखा-खादी का विचार, आत्मनिर्भर गांव का विचार तथा केवल जरूरतें पूरी करने के लिए ही न्यूनतम प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के विचार के माध्यम से देश के समक्ष वैकल्पिक आर्थिक दर्शन रखा था। यदि उसे स्वीकार किया गया होता तो आज देश में विषमता, बेरोजगारी, शहरीकरण, पर्यावरण संकट जैसी समस्याएं इतना विकराल रूप धारण किए दिखलाई नहीं पड़तीं।

डॉ.जी जी परीख से जब मैंने समाजवादी मधु लिमये, मधु दंडवते के जन्म शताब्दी समारोह के बारे में बातचीत की, तब उनका कहना था कि –

किसी भी व्यक्ति को याद करने का तरीका केवल भाषण तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। उस व्यक्ति के विचार के अनुसार कोई ठोस कार्यक्रम हाथ में लेना चाहिए ताकि सगुण तौर पर यह बताया जा सके कि वह व्यक्ति वास्तव में क्या चाहता था। उसकी समाज की कल्पना क्या थी?

जी जी की यह दृष्टि नए तरीके से जन्मदिन और निर्वाण दिवस मनाने के लिए प्रेरित करती है।

जी जी परीख गत कई वर्षों से समाज में बढ़ती सांप्रदायिकता के परिणामस्वरूप नफरत और हिंसा के वातावरण को खत्म करने के लिए कुछ ठोस करने का लगातार सुझाव दे रहे थे। उसी का परिणाम है कि इस वर्ष 9 अगस्त को अगस्त क्रांति मैदान, मुंबई से ‘नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान’ की शुरुआत की गई। जिसके तहत देश भर में 300 से अधिक पदयात्राएं हुईं। 26 से 30 जनवरी 2023 तक पलवल से दिल्ली तक पदयात्रा की जा रही है।

इस अभियान का दूसरा चरण पूरा होने के बाद क्या? जैसे प्रश्न के जवाब में –

डॉ जी जी परीख कहते हैं कि लोगों के बीच जाना होगा, संघर्ष तो करना ही होगा लेकिन केवल संघर्षों से काम नहीं चलेगा, रचनात्मक कार्य हाथ में लेने होंगे, जरूरतमंदों की सेवा करनी होगी, खुद को खपाना होगा।

समाजवादियों से वे बार-बार कहते हैं कि उन्हें गांधीजी से सीखना चाहिए कि कैसे समाज को अपने कार्यक्रमों के जरिए बदलाव के लिए तैयार किया जा सकता है।

सब काम सरकार करेगी, इस सोच को बदलने की जरूरत है। सब काम सत्ता में आकर ही होगा, इस सोच से भी काम चलने वाला नहीं है। कोई भी सरकार हो, समाज, देश और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? यह सोचने के साथ-साथ करना भी होगा।

जी जी कहते हैं कि ‘नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान शुरू करने के पीछे समाजवादियों और गांधीवादियों की सोच यह है कि जिस तरह हिंदुओं के मन में नफरत फैलाई जा रही है, उस जहर को फैलने से कैसे रोका जाए? इसके बारे में सोच कर कुछ कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि जो लोग या संस्थाएं नफरत फैलाने वालों के खिलाफ हैं उनको कैसे एकजुट किया जाए, मोटिवेट किया जाए, इस दिशा में काम किया जाना चाहिए। इसका पहला प्रयोग हमने तमाम समाजवादियों को इकट्ठा करके उनका एक फ्रंट बनाकर यूसुफ मेहर अली सेंटर से किया। दूसरा प्रयोग तमाम समाजवादियों और संस्थाओं को इकट्ठा करके उनको कैसे मजबूत किया जाए, इस पर काम किया। इसके परिणामस्वरूप कुछ समाजवादियों, गांधीवादियों, एक्टिविस्टों, पर्यावरणविदों ने नफरत छोड़ो संविधान बचाओ अभियान शुरू किया।

हमारी सोच है कि हम जो करते हैं वह काफी नहीं है। वे मानते हैं कि इतने भर से काम नहीं चलेगा। नफरत छोड़ो संविधान बचाओ यात्रा के जरिए कुछ नए लोगों तक पहुंचे भी हैं लेकिन इतने भर से संतोष नहीं किया जा सकता।

हमें उनके बीच जाना है, जिनके अंदर नफरत का जहर फैल रहा है। हमारे सामने यह सवाल खड़ा होता है कि हम उनके सामने कैसे जाएं ? उनसे संवाद कैसे करें? उनका हृदय परिवर्तन कैसे करें?

जी जी का मानना है कि समाजवादी और गांधीवादी यदि आदिवासियों, दलितों, गरीबों, अल्पसंख्यकों के घरों और मोहल्लों में जाकर सेवाभाव से कार्य करेंगे तो उनके मन में जो नफरत भरी है उसे मिटाने में सफलता मिलेगी। वे कहते हैं कि हम संविधान के मूल्यों की बात तो करते हैं लेकिन हम भूल जाते हैं कि राजनीति के साथ राजनीतिक अर्थव्यवस्था भी होती है। सरकार रोजगार तो दे नहीं पाएगी क्योंकि सभी जगह कारपोरेटीकरण किया जा रहा है। हमें रोजगार लोक आधारित व्यवस्था के माध्यम से पैदा करना पड़ेगा।

जी जी का सर्वाधिक जोर चरित्र निर्माण पर होता है, उनका कहना है कि –

नए मनुष्य के निर्माण से ही नए समाज का निर्माण संभव है, इसके लिए मनुष्य की सोच को बदलना होगा। कथनी और करनी में सामंजस्य बिठाना होगा। उद्देश्य हासिल करने के लिए साधनों की शुचिता पर ध्यान देना होगा।

यदि विचार यह हो कि कैसे भी सत्ता हासिल की जाए। शराब, पैसा बांटकर या हिंसा फैलाकर या कोई और तिकड़म कर, तब कोई बदलाव संभव नहीं है।

समाजवादियों की बार बार टूट को लेकर वे कहते हैं कि –

हमें सही मायने में लोकतांत्रिक होना पड़ेगा। संगठन में या चुनाव में हार स्वीकारने की आदत डालनी होगी। हार गए तो संगठन तोड़ देंगे। लोकतांत्रिक फैसले का सम्मान नहीं करेंगे यह ठीक नहीं है। वैचारिक बहस टूट में नहीं बदलनी चाहिए। पार्टी पर व्यक्तिवाद हावी नहीं होना चाहिए।

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