“राजनारायण एक नाम नहीं इतिहास है” – भाग-13

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— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

(विशेष : शाहनवाज अहमद कादरी द्वारा संपादित और प्रकाशित पुस्तक ‘राजनारायण एक नाम नहीं इतिहास है’ में यह लेख संपूर्णता में प्रकाशित हुआ है। पाठकों की सुविधा की दृष्टि से इसे भागों में विभक्त करके प्रस्तुत किया जा रहा है। मैंने राजनारायण जी पर जितना साहित्य पढ़ा है उसमें यह पुस्तक बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी मेरी आशा है। इससे पूर्व हिंदुस्तान के प्रमुख समाचारपत्रों के संपादक रह चुके प्रखर विद्वान श्री धीरेंद्रनाथ श्रीवास्तव द्वारा (“लोकबंधु राजनारायण विचार पथ- एक”) नाम से पुस्तक संपादित प्रकाशित की जा चुकी है। मेरा विश्वास है कि कोई भी पाठक इन पुस्तकों के माध्यम से राजनारायण जी के जीवन, राजनीति, विचारों की प्रखरता, तथा संघर्षों के इतिहास की काफी जानकारी प्राप्त कर सकता है। मैं साथी शाहनवाज कादरी का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरे इस लंबे लेख को अपनी किताब में शामिल करके प्रकाशित किया)

अंग्रेज़ी भद्र समाज और उसके समाचारपत्रों ने राजनारायण जी की तस्वीर एक गंवार, अशिक्षित, हुल्लड़बाज़, असभ्य नेता के रूप में गढ़ी थी, क्योंकि यह वर्ग सरकारी पदों, सत्ता द्वारा मिले साधनों को भोग रहा था। पूंजीपति घराने भला कैसे राजनारायण जैसे सोशलिस्ट को बख्श देते।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए., एल.एल.बी. की उपाधि लेना राजनारायण जी के व्यक्तित्व के लिए एक छोटी बात थी। राजनारायण जी का अध्ययन कितना व्यापक था, इसकी एक मिसाल आपातकाल में जब वे हिसार जेल में बंदी थे, तो उन्होंने श्रीमती इन्दिरा गांधी को एक पत्र उस समय भेजा, जब वह रूस के दौरे पर जा रही थीं। इस लंबे खत में अन्य बातों के अलावा, उन्होंने रूस और हथियारों के बारे में जो लिखा था, आज रूस और यूक्रेन के युद्ध में उसकी प्रतिध्वनि सुनाई दे रही है। राजनारायण जी जेल में थे कोई लायब्रेरी या सहायक सामग्री उनको उपलब्ध नहीं थी। मात्र अपने अनुभव, ज्ञान, स्मृतियों, अध्ययन के आधार पर उन्होंने लिखा था।

जिला जेल हिसार
दिनांक 14.5.1976
श्रीमती इन्दिरा गांधी जी,
प्रधानमंत्री
नई दिल्ली

माननीया
….. मैं चाहता हूं कि आप रूसी नेताओं से सन् 1945 के पूर्व और सन् 1945 के बाद के हथियारी जगत पर ज़रूर बात करें। सन् 1945 के पूर्व भले लोगों की नज़र में हथियार बुरे थे। अब बेमतलब हो गए हैं दोनों में फ़र्क है। गांधी, ईसा मसीह, गौतम बुद्ध की दृष्टि में हथियार खराब थे। सुकरात हथियारों को खराब मानते थे। उनसे नफ़रत करना सिखाते थे। हिरोशिमा-नागासाकी की यादें अभी ताज़ा हैं। एक बम में सब साफ़। ड्रेसडेन शहर में एक दिन में इतने गोले गिरे कि साठ-सत्तर हज़ार आदमी एक दिन में मर गये। वास्तव में आज के पूर्व की लड़ाई होती थी हार-जीत की, मगर अब जो विश्व युद्ध होगा वह होगा नरसंहार का। इस समय पचीसों अरब रुपया दुनिया हथियार बनाने में लगा रही है। अब युद्ध का अर्थ है सर्वनाश। …. हथियारों की होड़ क्यों? यदि इसे रोका नहीं गया तो दुनिया खत्म होगी। रूसी नेताओं को यह बात बताना जोर के साथ ज़रूरी है। भारत इसमें अगुवाई करे, क्योंकि भारत नहीं करेगा तो कौन करेगा?

पच्चीस अरब रुपया जो हथियारों, एटम, हाइड्रोजन बमों, प्रक्षेपास्त्रों को बनाने में लग रहे हैं, उसको नया मानव समाज बनाने में क्यों न लगावें? इस प्रश्न को उजागर करना भारत का काम है।

आज सबसे बड़ा भयंकर खतरा हथियारों की ग़ैरबराबरी को मिटाना है। और इस ग़ैरबराबरी को मिटाने के लिए हथियारों को ही समाप्त करना होगा। जब हथियार रहेंगे तो उनका इस्तेमाल होगा, आज हो या कल।

विकसित और अविकसित मुल्कों की ग़ैरबराबरी मिटानी होगी। टेक्नालॉजिकल हिसाब से भारत जितना उत्पादन करता था। 60 मिनट में, रूस 6 मिनट में और अमेरिका 3 मिनट में, इनमें बराबरी लानी होगी। ….. जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समीप्यता का सिद्धांत (theory of approximation) लगेगा। आज रूस और अमेरिका अधिकतम कौशलता (maximum efficiem) के सिद्धांत पर चल रहे हैं, मगर उस अधिकतम कौशलता के सिद्धांत को संपूर्ण कौशलता (Total Efficiency) में बदलना होगा। जो संपूर्ण मानव समाज और सभी व्यक्तियों के लिए समानरूप से मान्य होगा। मैं चाहूंगा कि आप रूस को अभी और जब कभी अमेरिका में जायें या अपना प्रतिनिधि भेजें तो उसको स्पष्ट ढंग पर बोल दें कि यदि आपकी बात इस समय नहीं मानेंगे तो उनकी हालत डायनासोर (dinosaur) की होगी, जो अपने ही बोझ से मर जाएगा और विश्व के लिए खतरा पैदा करेगा। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समानता का सिद्धांत लागू करना होगा। चाहे उत्पादन हो, वितरण हो, विनिमय हो, टेकनोलॉजी हो, मानव-मानव का सम्बन्ध हो। व्यक्ति के द्वारा व्यक्ति का, राष्ट्र के द्वारा राष्ट्र का, कम्यून के द्वारा कम्यून का शोषण सभी प्रकार का बंद होना चाहिए। एक अंतरराष्ट्रीय श्रम का बंटवारा होगा, सभी को काम होगा और वैज्ञानिक ढंग से समुचित आवश्यक उत्पादन होगा।

अंत में राजनारायण जी लिखते हैं –
अब ढलान (जीवन) पर जा रहा है, अल्हड़पन नहीं है। आपकी बात सुनेगा। फ्रांसीसी अनातोले के सिद्धांतानुसार आप उनको कुछ स्पिरिट और मैटर, आत्मावाद और भौतिकवाद का पारस्परिक मेल बनाइए। चेतन-जड़ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह अस्तित्व, जलन कलंक के साथ ज़्यादा कारगर नहीं होता। सहअस्तित्व अच्छी चीज़ है।

भारतीय संस्कृति, गांधी परम्परा और मानवीय ज्ञान-विज्ञान भूत की अनुभूतियां, वर्तमान का सम्यक् ज्ञान और भविष्य का सपना हमारी पूंजी है, जो एक नया सत्य समाज बना सकता है।

आपातकाल में बंदी, बहुत से नेता और कार्यकर्ता जहां माफ़ीनामा लिखकर सरकार से रिहा होने की गुज़ारिश कर रहे थे, वहीं हिसार जेल में बंदी जीवन काट रहे राजनारायण बेखौफ़, बेबाकी के साथ प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को लिखते हैं- आप हमारी बात को नोट कर लीजिएगा कि आपका इस्तीफा 12 जून 1975 को हो गया होता तो आप विश्व में एक नई आदर्शवादी जननेता के रूप में निखर कर आतीं। अद्वितीय बेजोड़ हो जातीं, जो लोग बराबर आपसे लाभान्वित होते हैं उन्होंने आपको ग़लत सलाह दी। आज सारा शासन, प्रशासन उसी खराबी को दूर करने में व्यस्त है।’’

यह इमरजेंसी काल आज-कल सत्ताधारी दल के चुनाव अभियान तेज करने की मशीनरी की तरह इस्तेमाल हो रहा है। कुर्सी कांग्रेस (इन्दिरा गांधी पार्टी) अपनी लोकप्रियता से नहीं, सरकारी साधनों से चुनाव जीतने की कलाबाजी कर रही है। सभी जगह विरोधी दलों को तोड़ने, लोगों को धमकाने, भ्रम फैलाने का व्यापक प्रचार हो रहा है। हम अपने दूरर्दशन, समाचारपत्रों में एक पार्टी का प्रचार करते है।

आपको पढ़ने में या हमारी किसी बात से कष्ट हुआ हो तो क्षमा कीजिएगा। आशा है आप स्वस्थ तथा प्रसन्न हैं।

आपका
राजनारायण

(जारी है)

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