— विमल कुमार —
हिंदी की दुनिया में हर साल नई लेखिकाओं का साहित्य में पदार्पण हो रहा है और वे अपने नए नए अनुभवों से रचनाशीलता के नये आयाम विकसित कर रही हैं। अगर यह कहा जाए कि 21वीं सदी एक तरह से स्त्री लेखन की सदी बनती जा रही है, चाहे कविता हो या कहानी या उपन्यास, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि स्त्री लेखकों की उपस्थिति हर विधा में नजर आ रही है। पहले तो आमतौर पर दसेक साल में एक नई पीढ़ी उभर कर आती थी लेकिन अब तो सोशल मीडिया और डिजिटल संसार में चार-पांच साल के भीतर ही साहित्य की नई पीढ़ी दिखाई देने लगती है और यह पीढ़ी धीरे-धीरे अपनी पहचान भी बनाने लगती है।
बीता साल पुरानी पीढ़ी से अधिक नई पीढ़ी का साल रहा जिसमें कई युवा लेखिकाओं ने हर विधा में कई नई कृतियां देकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया और उसकी संवेदना का विस्तार किया। इस विस्तार में केवल महानगरों की लेखिकाएं नहीं बल्कि छोटे-छोटे कस्बों और सुदूर इलाकों की लेखिकाएं भी शामिल हैं। 2022 में हिंदी की कई नई कवयित्रियों ने दस्तक दी है और उनकी कविताओं ने सबका ध्यान खींचा है। इनमें से कुछ के संग्रह भी सामने आए हैं तो कुछ की कविताओं ने ध्यान खींचा है।
यूँ तो इस साल वरिष्ठ कवयित्री अनामिका का फिर एक नया संग्रह आया है पर कविता की दुनिया में इस साल जसिंता केरकेट्टा और सपना भट्ट, रेखा चमोली, सुलोचना, रंजना मिश्र, अनुराधा ओस और अनुपम सिंह का संग्रह उल्लेखनीय घटना है।
अनामिका का नवीनतम कविता संग्रह ‘बन्द रास्तों का सफर उनकी रचनाशीलता का नया पड़ाव है। लेकिन ‘ईश्वर और बाजार’ जसिंता केरकेट्टा का तीसरा कविता संग्रह है। जसिंता की कविताओं की एक बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने आदिवासी जीवन को काव्यात्मक शिल्प और भाषा में पेश किया है।
सपना भट्ट का संग्रह “चुप्पी में आलाप” हिंदी कविता में एक नए रंग, आस्वाद और नई संवेदना का संग्रह है जिसकी इस साल काफी चर्चा हुई। सपना भट्ट की कविताओं में जो गहरी वेदना और प्रेम की तड़प है वह इस समय हिंदी कविता में अन्यत्र दुर्लभ है। ज्योति रीता का कविता संग्रह ”मैं थिगली में लिपटी शेर” भी उल्लेखनीय कविता पुस्तकों में शुमार हुआ।
इसी तरह बांग्लाभाषी सुलोचना का कविता संग्रह “बचे रहने का अनुभव” एक परिपक्व कवि का संग्रह है और उसने हिंदी की दुनिया में नए विषय और अनुभव जोड़े हैं।सुलोचना की दृष्टि बहुत व्यापक है वह जीवन जगत को परत दर परत समझती हैं।
रेखा चमोली का संग्रह “उसकी आवाज़ भी एक उत्सव है” पहाड़ में स्त्री के संघर्ष और दर्द को उकेरता है। ‘मुझे पतंग हो जाना है’ ऋतु त्यागी का नया कविता संग्रह इसी साल आया है। उसमें भी स्त्री का एक नया संसार है।
इस साल हिंदी की कविता की दुनिया में दो बहनों का अपने प्रथम कविता संग्रह से प्रवेश हुआ है। ‘राबिया का ख़त’ मेधा का पहला ही कविता संग्रह है जिसमें स्त्री-जीवन के कई रूप हमारे सामने हैं। इस साल एक और नई कवयित्री शेफाली का आगमन उनके पहले संग्रह ‘मेरे गर्भ में चांद’ के साथ हुआ है जो प्रकृति के सौंदर्य से एक नया रिश्ता बनाती हैं नया अर्थ भी देती हैं।
रंजना मिश्र ने बहुत देर से अपना पहला कविता संग्रह इस साल निकाला है। उन्होंने अपने पहले कविता संग्रह ‘पत्थर समय की सीढ़ियां’ में नया सौंदर्यबोध प्रस्तुत किया है। युवा कवयित्री अनुपम सिंह अपने पहले कविता संग्रह ‘मैंने गढ़ा है अपना पुरुष’ में स्त्री के प्रेम और देह के नए रिश्ते को परिभाषित किया है। अनुराधा ओस के पहले कविता संग्रह ‘वर्जित इच्छाओं की सड़क’ की कविताएं स्त्री मन की मुखर और बेबाक अभिव्यक्ति हैं ।
प्रिया वर्मा, पूनम वासम, नाज़िश अंसारी, ज्योति शर्मा नेहल शाह, रूपम मिश्र की कविताओं ने भी इस साल ध्यान खींचा है। रूपम मिश्र का भी नया संग्रह दिसम्बर में आया पर प्रकाशन वर्ष 2023 है, इस नाते उसकी चर्चा अगले वर्ष होगी। इसी तरह कल्पना पंत का संग्रह “मिट्टी का दुख” 2021 के अंत में आया था पर चर्चा इस वर्ष हुई।
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कविता के बाद उपन्यास विधा में इस साल लेखिकाओं ने खूब कलम चलाई है।
वैसे भी पिछले कुछ साल से हिंदी की दुनिया में लेखिकाओं ने कई महत्त्वपूर्ण उपन्यास लिखे हैं। इनमें अलका सरावगी, अनामिका से लेकर रजनी गुप्त, नीलाक्षी सिंह और वन्दना राग तक शामिल हैं। यह साल हिंदी की लेखिकाओं के उपन्यासों से भी जाना जाएगा। इस वर्ष कुछ लेखिकाओं के पहले उपन्यास आए तो कुछ बुजुर्ग लेखिकाओं के उपन्यास भी आए।
इस साल वयोवृद्ध कथाकार कृष्णा अग्निहोत्री का अठारहवाँ उपन्यास आया है। ‘पंचम की फेल’ इस बात का सबूत है कि 88 साल की उम्र में भी वह लिख रही हैं लेकिन उनके लेखन पर एक चुप्पी दिखाई देती है हिन्दी समाज में।
चंद्रकांता का उपन्यास ‘समय अश्व बेलगाम’ कश्मीरी पंडितों की समस्याओं पर है। अभी हिंदी की मुख्यधारा के लेखकों, आलोचकों ने कश्मीरी पंडितों की समस्याओं पर विचार नहीं किया है। चित्रा मुदगल का ‘नकटौरा’ पांचवां उपन्यास है जो इस साल आया है और चर्चा में है।
वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा भी कई उपन्यास लिख चुकी हैं और उनके विषय भी अलग होते हैं। ‘अल्फा बीटा गामा’ उनका ऐसा ही उपन्यास है जो कोरोना जैसी महामारी के दौरान उपजी समस्याओं और संघर्षों पर विचार करता है।
इस साल उर्मिला शिरीष, प्रत्यक्षा, नीला प्रसाद, जयश्री राय, इंदिरा दांगी, हुस्न तबस्सुम निहां आदि के भी उपन्यास आए। युवा कथाकार ममता सिंह भी इस साल अपना नया उपन्यास लेकर आई हैं।
वीणा वत्सल सिंह का बेगम हज़रत महल पर लिखा गया ऐतिहासिक उपन्यास भी इसी साल आया। अधिकतर पुरुषों ने ही ऐतिहासिक उपन्यास लिखे है। पहली बार एक स्त्री लेखक का ध्यान हज़रत बेगम पर गया।
अगर सबसे ज्यादा चर्चा किसी उपन्यास की हुई तो वह मधु कांकरिया का उपन्यास “ढलती सांझ का सूरज है” जो भूमंडलीकरण, बाजार और किसान संकट पर लिखा गया है। मधु कांकरिया की रचनाओं में सामाजिक बोध अक्सर दिखाई पड़ता है। यह उपन्यास भी उनके तीखे यथार्थ बोध को दर्शाता है।
‘चांद गवाह’ सुपरिचित कथाकार उर्मिला शिरीष का पहला उपन्यास है। उन्होंने पहले उपन्यास से काफी उम्मीद जगाई है। सुपरिचित लेखिका जयश्री राय का नया उपन्यास ‘थोड़ी सी जमीन थोड़ा आसमान’ आया है। वह अपनी भाषा और शिल्प के लिए जानी जाती हैं।
बहुचर्चित कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने भी कहानी के साथ उपन्यास विधा में अपनी पुख्ता पहचान बना ली है। उन्होंने अपने नए उपन्यास ‘सोफिया’ में अपनी प्रतिभा का एक बार फिर परिचय दिया है। इंदिरा दांगी का पहला उपन्यास ‘विपश्यना’ जीवन के मूलभूत प्रश्नों को उठाता है।
युवा कथाकार शर्मिला जालान का भी पहला उपन्यास ‘उन्नीसवीं बारिश’ इसी साल आया है जिसमें चारुलता नामक पात्र के जरिये एक स्त्री मन को खोलने की काव्यात्मक कथा है।
नीलेश रघुवंशी ने दसेक साल पहले “एक कस्बे के नोट्स” उपन्यास लिखकर सबका ध्यान खींचा था। अब वह एक और उपन्यास “शहर से दस किलोमीटर” लेकर आई हैं। यह भी किसान समस्या पर केंद्रित है।
प्रत्यक्षा का “पारा पारा” एक नए किस्म का उपन्यास है जो स्त्री के मन को चित्रित करता है जो प्रेम की तलाश में स्वतंत्रता की खोज करता है। नीला प्रसाद का “अंत से शुरू” स्त्री कथा का उल्लेखनीय उपन्यास है। रश्मि भारद्वाज का “वह सन बयालीस था” भी इस साल काफी चर्चा में रहा।
कोरोना काल के बाद जब स्थितियां सामान्य हुईं तो हिंदी के साहित्यकारों ने अपनी रचनात्मक गतिविधियों को तेज किया जिसका नतीजा हुआ कि कई कृतियां सामने आयीं। इनमें स्त्री रचनाकारों ने उपन्यास, कविता, कहानी, नाटक, आलोचना, अनुवाद आदि विधा में इस वर्ष कई महत्त्वपूर्ण कृतियां सामने आयीं। इनमें कृष्णा अग्निहोत्री, मृणाल पांडेय, नासिरा शर्मा, चित्रा मुदगल जैसी कुछ वरिष्ठ लेखिकाएं हैं तो बाद की पीढ़ी की अनामिका, नीला प्रसाद, नीलेश रघुवंशी, प्रत्यक्षा, जसिंता केरकेट्टा और अद्यतन पीढ़ी की शर्मिला जालान, रश्मि शर्मा, अनुपम सिंह, रीता दास राम और अनुराधा ओस जैसी लेखिकाएं भी शामिल हैं जिन्होंने अपनी नई पहचान बनाई है।
इस साल स्त्री रचनाशीलता को लेकर हिंदी की दुनिया में दो बड़ी घटनाएं घटीं। पहला “हंस महोत्सव” और दूसरा ‘हंस’ के स्त्री विमर्श अंकों का 9 खंडों में पुस्तकाकार प्रकाशन।इन दो घटनाओं के बगैर स्त्री विमर्श पर अब साहित्य की दुनिया में बात नहीं की जा सकती।
परिन्दे पत्रिका ने 21वीं सदी की स्त्री कहानीकारों पर एक विशेष अंक निकाला। नीलाक्षी सिंह और अंजू शर्मा के उपन्यासों की पांडुलिपियों पर सेतु प्रकाशन की ओर से पुरस्कृत किया जाना भी स्त्री लेखन की महत्त्वपूर्ण घटना है।
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कहानी की दुनिया में भी कई नई कहानीकार सामने आईं जिनके पहले कहानी संग्रह सामने आए जिनमें रश्मि शर्मा, सविता पाठक, रीता दास राम, डॉक्टर सुनीता, हुस्न तबस्सुम निहां भी शामिल हैं।
कहानी की दुनिया में इस वर्ष की खोज रश्मि शर्मा हैं। उनके पहले कहानी संग्रह “बन्द कोठरी का दरवाजा” ने उन्हें एक महत्त्वपूर्ण कथाकार के रूप में पेश किया है।
हंस का कथा सम्मान विजयश्री तनवीर को मिलना भी एक उल्लेखनीय घटना है। तनवीर लगातार अच्छा लिख रही हैं। हंस कथा सम्मान से ट्विंकल रक्षित जैसी युवा कथाकार हिंदी में इस साल आई हैं। प्रज्ञा का चौथा कहानी संग्रह ‘मालूशाही मेरा छलिया बुरांश’ भी इस साल आया है।
रीतादास राम का कहानी संग्रह ‘समय जो रुकता नहीं’ और डा सुनीता का कहानी संग्रह ‘सियोल से सरयू’ भी इस वर्ष के उल्लेखनीय संग्रह हैं। दोनों लेखिकाएं अपने पहले संग्रह से पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं।
सविता पाठक ने अपने पहले कहानी संग्रह ‘हिस्टीरिया’ से रूढ़ियों और मिथकों पर कठोर प्रहार किया है। हुस्न तबस्सुम का “गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता” बेबाक और ईमानदार कहानियां लिये हुए है।
वरिष्ठ कथाकार-पत्रकार मृणाल पाण्डे के कहानी संग्रह ‘माया ने घुमायो’ में कल्पनाओं, अतिरंजनाओं और पात्रों के सुदूर अतीत का एक सुंदर चित्रण दिखाई देता है।
वरिष्ठ कथाकार सारा राय और प्रज्ञा के संग्रह इस वर्ष आये। प्रेमचन्द की प्रपौत्री सारा राय ने अपने कहानी संग्रह ‘नबीला और अन्य कहानियां’ से फिर उम्मीद जगाई है।
स्त्री लेखन की दुनिया में उपन्यास, कविता, कहानी की चर्चा तो हो जाती है लेकिन नाटकों की चर्चा बिल्कुल नहीं होती है। हिंदी में नाट्य लेखन को वर्षों से मुख्यधारा के लेखन से बहिष्कृत कर दिया गया है लेकिन इस वर्ष सुमन केसरी ने “गांधारी” नाटक लिखकर “अंधा युग” की याद दिला दी है। उनकी एक और किताब इस साल कविता के विमर्श पर भी आई है जो उनकी आलोचकीय प्रतिभा को बताती है। इस साल ‘दुनिया में औरत’ युवा लेखिका सुजाता की किताब आयी है जिसमें स्त्री विमर्श का एक नया पाठ किया किया गया है।
आलोचना और शोध के क्षेत्र में रूपा गुप्ता ने इस साल बड़ा महत्त्वपूर्ण काम किया। नवजागरण और जाति प्रश्न पर उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण किताब लिखी है। सुदीप्ति की ‘हिंदी की पहली आधुनिक कविता’ पुस्तक महेश नारायण और उनकी कविता ‘स्वप्न’ पर केन्द्रित है, यह उनका महत्त्वपूर्ण शोध कार्य है। ‘स्वप्न’ को हिंदी की पहली मुक्तछंद कविता कहा जाता है। अब तक जुही की कली को पहली मुक्तछंद माना जाता था। वंदना मिश्रा के समीक्षात्मक लेखों का संग्रह ‘समकालीन लेखन और हिन्दी आलोचना’ भी इस साल आया है।
इस वर्ष सुधा अरोड़ा ने मन्नू भंडारी पर ‘संघर्षों का अलाव : आखरों की आंच’ एक पुस्तक सम्पादित कर एक नेक कार्य किया है। मन्नू जी की स्मृति में हंस ने एक अंक केन्द्रित किया था जो अब पुस्तक रूप में हमारे सामने है।
सुधा सिंह ने बिहार की आशा सहाय के दुर्लभ उपन्यास को खोज निकाला जो लेस्बियनवाद पर हिंदी का पहला उपन्यास है और इसकी भूमिका शिवपूजन सहाय ने लिखी थी।
‘शाहीनबाग : लोकतंत्र की नई करवट’ पत्रकार भाषा सिंह की पुस्तक शाहीनबाग आंदोलन पर केन्द्रित है। भाषा सिंह ने बहुत मेहनत से इस आंदोलन का दस्तावेजीकरण किया है।
बांग्ला के जाने-माने लेखक रंजन बंद्योपाध्याय की दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का अनुवाद हिंदी में करके शुभ्रा उपाध्याय ने टैगोर की पत्नी और भाभी के जीवन के रहस्यों से पर्दा उठा दिया है। पहली पुस्तक है मूल बांग्ला कृति ‘आमि रवि ठाकुरेर बोउ : मृणालिनीर लुकानो आत्मकथा’ जिसका हिन्दी अनुवाद है ‘मैं रवीन्द्रनाथ की पत्नी : मृणालिनी की गोपन आत्मकथा’ इसमें गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की पत्नी मृणालिनी देवी की कहानी है ।
दूसरी पुस्तक मूल बांग्ला कृति ‘कादम्बरी देवीर सुसाइड नोट : रवीन्द्रनाथेर नोतुन बोउठाकेर शेष चिठि’, है जिसका हिन्दी अनुवाद है ‘कादम्बरी देवी का सुसाइड नोट : रवीन्द्रनाथ की भाभी का अंतिम पत्र’। इसमें विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की भाभी के त्रासद जीवन की मार्मिक कथा है।
जयपुर घराने की प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली की पुस्तक ‘तत्कार’ भी इस साल की महत्त्वपूर्ण कृति है।नासिरा शर्मा द्वारा ईरान के लेखक सादिक हिदायत के उपन्यास का अनुवाद ‘अंधा उल्लू’ भी इस साल आया। सादिक ने मुंबई में रहकर यह उपन्यास लिखा था जो ईरान में बैन कर दिया गया था। सादिक ने 48 साल की उम्र में 1951 में आत्महत्या कर ली थी। ईरान में कुछ लोगों ने इस उपन्यास को पढ़कर आत्महत्या की या करने की कोशिश की।
इस तरह बीता साल स्त्री लेखन के विविध आयामों के लिए जाना जाएगा।