जब ये शब्द भी भोथरे हो जाएंगे
चोर को कहा चोर
वह डरा
थोड़े दिन
डरा क्योंकि उस को पहचान लिया गया था
चोर को कहा चोर
वह खुश हुआ
बहुत दिनों तक रहा खुश
क्योंकि उसे पहचान लिया गया था
फिर छा गया डर
क्योंकि चोर आखिर चोर था
बोलने वालों के हाथ सिर्फ हाथ थे
हाथ भी नहीं केवल मुंह थे
मुंह भी नहीं केवल शब्द थे
शब्द भी नहीं
केवल शोर…
चोर! चोर!!
इस्लाह
हमें भी एक दिन
एक दिन हमें भी
देना होगा जवाब
इसलिए
लिखें अगर डायरी
सही-सही लिखें
और अगर याचिका लिखनी है
लिखें समझ-बूझ कर
लेकिन अगर चैन न हो हमारा आराध्य
और हम रह सकें बिना अनुताप के
तब न करें स्याह ये
धौले-उजले पन्ने!
मेरे आका!
मेरे आका!
(तुम एक हो, तो; अनेक हो, तो;
हो, तो; न हो, तो।)
मैं थक गया हूं अपना
चेहरा बदलते-बदलते
मारुति में बैठें, तो
जनपथ पर चलूं, तो
मकई खाऊं, तो
कहीं न जाऊं, तो
कहीं नहीं अँटता यह चेहरा
मेरे आका!
मैं थक गया हूं जीभ ऐंठते-ऐंठते
थक गया हूं कपड़े की काट से
ग़लीचे फ़र्श खिड़की की ठाठ से
मेरे आका!
फूल में बची रहने दो थोड़ी-सी खुशबू
जीभ में रहने दो कुछ स्वाद
जी में रहने दो कुछ लगाव
जेब में रहने दो कुछ सिक्के
मेरे आका!
बदलता नहीं मेरी चमड़ी का रंग
तुम्हारे व्याख्यानों से
या कारख़ानों से