9 जनवरी। उत्तराखंड के जोशीमठ में धंसाव का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इन सबके बीच विशेषज्ञों ने दावा किया है कि जोशीमठ को तब तक नहीं बचाया जा सकता है जब तक कि एनटीपीसी की टनल और हेलंग बाइपास का काम पूरी तरह न रोका जाए।
भू वैज्ञानिक नवीन जुयाल ने जोशीमठ धंसाव के कारणों पर विस्तार से बताया। उन्होंने कहा, कि औली से लगभग एक किलोमीटर नीचे से यह टनल निकाली जा रही है। यह एक दुस्साहस है। तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना के लिए दो टनल बिछाई जा रही हैं। एक तपोवन से और दूसरी सेलंग से बिछाई जा रही है। इसके लिए एक ओर से विस्फोट से किए गए और दूसरा सेलंग से टनल बोरिंग मशीन(टीबीएम) से टनलिंग का काम किया जा रहा है। सेलंग में तो अभी भी टीबीएम फंसी हुई है। यह काम प्राइवेट कंपनी से कराया जा रहा है। जिस वजह से हालात बिगड़े हैं।
जुयाल कहते हैं, एनटीपीसी का तर्क है कि टनल का काम अभी तपोवन से चार किलोमीटर दूर तक ही हुआ है, लेकिन जब इसके अध्ययन की बात होती है, तो स्वतंत्र वैज्ञानिकों को अध्ययन से दूर रखा जाता है। जुयाल के मुताबिक, जोशीमठ में जो पानी जमीन से बाहर निकल रहा है, वह कहाँ से निकल रहा है। उसके लिए बहुत हद तक टनल जिम्मेवार हो सकती है। विशेषज्ञों ने कहा कि अकेला जोशीमठ ऐसा शहर नहीं है, जो धंसाव का सामना कर रहा है, कई ऐसे शहर मुहाने पर खड़े हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि सरकारें और प्रशासन स्वतंत्र वैज्ञानिकों की बात नहीं सुन ही नहीं रहे हैं।
40 सालों से इस इलाके में अलग-अलग अध्ययन कर चुके नवीन जुयाल ने कहा, कि तीखे ढाल में बसे जोशीमठ के नीचे से बाइपास बनाने का काम चल रहा है, जिसकी वजह से यह क्षेत्र कमजोर हो गया। जबकि 1976 में ही मिश्रा कमेटी ने यह कह दिया था, कि इस इलाके में एक बोल्डर तक नहीं हिलना चाहिए। लेकिन इस तरह की सिफारिशों को माना ही नहीं गया। उन्होंने आशंका जताई कि इस मामले में जो भी सरकारी जाँच कमेटियां बनेंगी, वे एनटीपीसी और हेलंग बाइपास प्रोजेक्ट को क्लीन चिट दे देंगी और इस आपदा के लिए स्थानीय लोगों द्वारा किए गए निर्माणों को दोषी ठहरा दिया जाएगा।
(Down to earth से साभार)
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