16 जनवरी। प्रसिद्ध इतिहासकार और फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट उमा चक्रवर्ती ने कहा है कि भारत पाक विभाजन के समय जिस तरह देश में नफरत का माहौल बनाया गया था वैसी ही स्थिति अब देश में फिर से उत्पन्न हो गई है और लगता ही नहीं है कि यह वही मुल्क है जिसके बारे में हम लोगों ने आजादी का सपना देखा था। 82 वर्षीय श्री चक्रवर्ती ने कल शाम हिंदी के प्रख्यात कवि एवं संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी के 82वें जन्मदिन पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए यह चिंता व्यक्त की।
इस संगोष्ठी में स्त्रीवादी लेखिका और देश की पहली महिला प्रकाशक उर्वशी बुटालिया, सुप्रीम कोर्ट के वकील शाहरुख आलम और असम के वकील उबेद भी शामिल थे।
श्रीमती चक्रवर्ती ने कहा कि वह जब 6 या 7 वर्ष की थीं तो देश को आजादी मिली थी और वह अपने पिता के साथ महात्मा गांधी की शवयात्रा में भी शामिल हुई थीं। यह उनके बचपन की पहली धुंधली सी स्मृति है लेकिन उन्हें याद है कि उस समय देश में एक अजीब सा भयावह माहौल बन गया था, हिन्दू मुस्लिम एक दूसरे को मार रहे थे. तब मैं उसे समझ नहीं पाई थी. लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई उस नफरत के माहौल को अच्छी तरह समझने लगी.
उन्होंने कहा कि अब देश में फिर नफरत का माहौल बनाया जा रहा है और देश का मीडिया भी पूरी तरह से कारपोरेट की गिरफ्त में आ चुका है। आज हम सच कह नहीं सकते और आपातकाल से भी बुरी हालत इस समय देश में पैदा हो गई है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले एनआईए के लोग उन्हें अर्बन नक्सल बताते हुए उनसे पूछताछ करने उनके घर आए थे। जब वे पूछताछ कर जाने लगे तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उनको खरी खोटी सुनाते हुए कहा कि वह कोई राष्ट्रविरोधी नहीं हैं बल्कि वह भी इस देश की सच्ची नागरिक हैं और इस देश की आजादी का सपना उन्होंने भी देखा था तथा वह भी उतनी ही देशभक्त नागरिक हैं लेकिन आज उन्हें अर्बन नक्सल बताया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश शाहरुख आलम ने न्यायपालिका की गिरती साख पर चिंता जताते हुए कहा कि न्यायपालिका की भाषा भी बदलती जा रही है और उसमें एक समुदाय के खिलाफ पूर्वग्रह साफ दिख रहा है। उन्होंने कहा कि कई बार तो जज जमानत देते हुए एक सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां भी कर रहे हैं।जो न्यायधीश अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए सत्ता प्रशासन की अनियमितताओं पर सवाल उठाते हैं उन्हें हटा दिया जाता है। दिल्ली दंगे की सुनवाई के दौरान एक जज को इसीलिए हटा दिया गया।
उन्होंने कहा कि शाहीन बाग आंदोलनको इसलिए खत्म कर दिया गया क्योंकि इससे जनता को सड़क यातायात में मुश्किल हो रही थी जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद रोड शो कर ट्रैफिक जाम कर रहे हैं और पुलिस एडवाइजरी जारी कर रही है कि लोग आज घरों से न निकलें।
असम से आये वकील अमन वदूद ने एनआरसी के मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि सरकार अपने राजनीतिक फायदे और साम्प्रदायिक राजनीति के कारण अब असम को भी कश्मीर बना देगी और एनआरसी फिर लागू करेगी ताकि यह कश्मीर की तरह समस्या बनी रहे।
उन्होंने कहा कि कई निर्दोष लोगों को डिटेंशन कैम्प में वर्षों रखा गया जबकि बाद में अदालत ने उन्हें वास्तविक नागरिक घोषित किया। अब तो सुप्रीम कोर्ट को यह आदेश जारी करना पड़ा कि किसी को तीन साल से अधिक समय तक नहीं रखा जा सकता।
उन्होंने कहा कि 1951 की जनगणना के अनुसार असम की 24 प्रतिशत आबादी मुस्लिम थी लेकिन यह गलत प्रचारित किया गया कि वे सब घुसपैठिए हैं।
उन्होंने तीन मुस्लिम नागरिकों का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने किस तरह वास्तविक नागरिकों को भी बांग्लादेशी नागरिक घोषित कर दिया जबकि उनका परिवार 5 दशकों से असम में रह रहा है।
समारोह में अशोक वाजपेयी ने कोरस श्रृंखला की तीन कविताएं सुनाकर देश की बदतर हालत पर चिंता जताई लेकिन उन्होंने यह उम्मीद भी जाहिर की कि जो लोग आज सत्ता के नशे में हैं उनका भी एक दिन खात्मा होगा।
समारोह में मृदुला गर्ग, मृणाल पांडेय, सुधीर चन्द्र, ओम थानवी, हरीश त्रिवेदी, रश्मि वाजपेयी, उदयन वाजपेयी आदि मौजूद थे।