8 फरवरी. झारखंड जनाधिकार महासभा ने एक सार्वजनिक अपील जारी कर सभी पक्षों से पश्चिमी सिंहभूम के जंगलों में आदिवासियों पर हो रही हिंसा को रोकने की मांग की है. पिछले कुछ महीनों से पश्चिमी सिंहभूम के सारंडा के वनक्षेत्रों, खासकर चाईबासा सदर, गोईलकेरा व टोंटो प्रखंडों, के आदिवासी-मूलवासियों का जीवन उथलपुथल हो गया है. एक तरफ सुरक्षा बलों के अभियान के दौरान हिंसा और दूसरी ओर माओवादियों द्वारा हिंसा. इसके बीच निर्दोष आदिवासी-मूलवासी फंसे हुए हैं. बिना ग्रामसभा की सहमति के सुरक्षा बलों के कैंप बैठाए जा रहे हैं जो पांचवीं अनुसूची प्रावधानों व पेसा का खुला उल्लंघन है. गाँवों में डर और दमन का माहौल है. सुरक्षा बलों एवं माओवादियों की आपसी लड़ाई के डर से आदिवासी अपने जंगल भी नहीं जा पा रहे हैं, जो उनके लिए जीवनरेखा समान है. हाल के दिनों में, शाम होते ही सुरक्षा बलों द्वारा गाँवों की दिशा में गोलीबारी एवं मोर्टार दागे जा रहे हैं. दूसरी ओर माओवादियों द्वारा जवाबी कार्रवाई का डर है. गाँव के युवा, बच्चे, बुज़ुर्ग व महिलाएं, सब दहशत में हैं. अभियान के दौरान यौनशोषण के डर से महिलाएं अपने घर में ही असुरक्षित महसूस कर रही हैं.
कई गाँवों में बिना सहमति के कैंप स्थापित होने के बाद गाँव-समाज में फूट पड़ रही है एवं गाँव का माहौल बिगड़ रहा है. कैंप के आसपास विदेशी शराब गैर-कानूनी तरीके से बिकने लगी है. आदिवासी अपनी परंपरा अनुसार न पूजा कर पा रहे हैं और न जी पा रहे हैं. गैर-आदिवासी व बाहरी सुरक्षा बलों की उपस्थिति से गाँव में तनाव का माहौल है. इसके और शोषण-अत्याचार के विरोध में अपनी प्रतिक्रिया देने वाले आम ग्रामीणों को माओवादियों के समर्थक के रूप में देखा जा रहा है. सुरक्षा बलों के डर से ग्रामीण अपनी ग्राम सभा तक नहीं कर पा रहे हैं.
यह परिस्थिति अत्यंत दुखद और चिंतनीय है. हो आदिवासी सदियों से अपने स्वाभिमान और जल, जंगल, जमीन व प्रकृति के साथ खुले मन से जीते आए हैं. लेकिन आज वे अपने ही क्षेत्र में कैदी जैसा जी रहे हैं. माओवादियों द्वारा की गयी हिंसा की घटना में निर्दोष आदिवासी युवाओं पर पुलिस द्वारा फर्जी मामले डाले जा रहे हैं. उन्हें पकड़कर बिना वारंट के कई दिनों तक थाना व कैंप में रखा जा रहा है. ग्रामीण स्थानीय अधिकारियों व विधायकों से इस बारे में कई बार गुहार लगा चुके हैं.
माओवादियों और सुरक्षा बलों की हिंसा के बीच आम ग्रामीण–आदिवासी–पिस रहे हैं. झारखंड जनाधिकार महासभा ने दोनों पक्षों से अपील की है कि उनकी लड़ाई में आम ग्रामीणों पर हिंसा न हो एवं आम ग्रामीणों के जीवन को बर्बाद न किया जाए. प्रशासन व पुलिस से मांग की गयी है कि बिना ग्राम सभा की सहमति के सुरक्षा बलों के कैंप न लगाए जाएं एवं मात्र संदेह के आधार पर या माओवादियों को खाना खिलाने के कारण आदिवासी युवाओं को माओवादी हिंसा मामले में फर्जी रूप से न जोड़ा जाए. पुलिस व प्रशासन संवैधानिक व कानूनी दायरे में अपनी कार्रवाई करें. राज्य सरकार से भी मांग की गयी है कि तुरंत जिला व अन्य आदिवासी क्षेत्रों में पांचवीं अनुसूची प्रावधानों व पेसा को कड़ाई से लागू किया जाय. इतिहास गवाह है कि दोनों पक्षों की ऐसी कार्रवाई के बाद धीरे-धीरे आदिवासियों से उनकी जमीन और जंगल छीन लिया जाता है और आदिवासी अपने ही क्षेत्र में जिन्दा लाश की तरह जीते हैं.
स्थानीय विधायकों व सांसद से अपील की गयी है कि स्थिति को सामान्य बनाने एवं इन क्षेत्रों के आदिवासियों के लिए लोकतंत्र को पूर्ण बहाल करने के लिए उचित मार्गदर्शन दें. वे इन गाँवों में जाकर, ग्रामीणों से बात कर स्थिति को स्वयं देखने समझने और उन्हें बेबसी और आतंक की स्थिति से उबारने का दायित्व निभायें. मुख्यमंत्री से इन गाँवों के ग्रामीणों से सीधे संवाद कर उन्हें इस स्थिति से मुक्ति दिलाने की विशेष अपेक्षा रखी गयी है. आशा है कि सरकार मामले की गंभीरता को समझते हुए उचित पहल करेगी एवं क्षेत्र के ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी जल्द पहले की तरह खुले मन से अपने जल, जंगल, ज़मीन के साथ खुली हवा में जी पाएंगे.
इस सार्वजनिक अपील में अलोका कुजुर , अम्बिका यादव , अफजल अनीस, भारत भूषण चौधरी , दिनेश मुर्मु, धरम वाल्मिकी, एलिना होरो, कमल पूर्ति, मंथन, मेरी निशा हांसदा, नारायण कांडेयांग, पीएम टोनी, प्रवीर पीटर, रमेश जेराई, रेयांश समड, रोज खाखा और सिराज दत्ता के नाम हैं।