शांतिनिकेतन की विरासत को खत्म करने की साजिश!

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— डॉ सुरेश खैरनार —

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई है भारतीय जनता पार्टी, और यह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संघ का औजार है. दो साल बाद 1925 में संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होंगे. संघ की स्थापना नागपुर के मोहीते वाडा में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी. मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए वह 1910 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज गए थे. छह साल बाद, वहां से 1917 में वापस लौटने के पहले, वह बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास ‘आनंदमठ’ से बहुत प्रभावित हुए थे ! इसी तरह विनायक दामोदर सावरकर की ‘हिंदुत्व’ की संकल्पना, और मराठी संत समर्थ रामदास का प्रभाव, यह सभी डॉ. हेडगेवार को हिंदुत्ववादी बनने के लिए काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है. हालांकि लोकमान्य तिलक के जीवन काल में, उन्हें (हेडगेवार को) कांग्रेस ही हिंदू राष्ट्र के लिए उपयुक्त लग रही थी. लेकिन 1 अगस्त 1920 को तिलक की मृत्यु और 1920 के दिसंबर में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में अस्पृश्यता के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने के बाद और कांग्रेस में महात्मा गांधी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, हेडगेवार और उनके सहयोगियों को लगने लगा कि “अब कांग्रेस में रहकर हिंदुत्ववादी राजनीतिक कार्य करना कठिन है !”

गांधीजी से पहले चंद पढे़-लिखे और ऊंची जातियों के लोगों की ही कांग्रेस में चलती थी लेकिन गांधीजी के आने के बाद, बहुजन समाज से लेकर दलित, महिला और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की भी शिरकत होने लगी!हेडगेवार को लगने लगा कि हमारी और कांग्रेस की यात्रा साथ-साथ आगे चलना संभव नहीं है ! तो 1925 के दशहरे के दिन 27 सितंबर को नागपुर में विधिवत ‘हिंदुओं का हिंदू राष्ट्र’ बनाने के लिए संघ की स्थापना की गई.

बंगाल में नवजागरण के प्रभाव तथा टैगोर परिवार के सभी सदस्यों के मानवतावादी होने के कारण, बचपन से ही रवींद्रनाथ टैगोर भी ब्रह्म समाज और निराकार ईश्वर की कल्पना से प्रभावित रहे. इसलिए उन्होंने कभी भी किसी भी प्रकार की मूर्ति पूजा नहीं की !

1863 में देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने, 20 एकड़ जमीन रायपुर के जमींदार भुवन मोहन सिन्हा से, साल के पांच रुपये के किराये पर लेकर, पहले एक गेस्टहाउस बनाया, और उसका नाम रखा गया शांतिनिकेतन ! रवीन्द्रनाथ टैगोर पहली बार, शांतिनिकेतन 27 जनवरी 1878 को, 17 साल की उम्र में गए ! देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने 1888 में संपूर्ण संपत्ति के साथ ब्रह्मविद्यालय की स्थापना के लिए एक न्यास बनाया ! बाद में 1901 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उसी जगह पर ब्रह्मचर्याश्रम की शुरुआत की, जिसे बाद में 1925 से पाठाभवन के नाम से जाना जाता है !

रवीन्द्रनाथ टैगौर को 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया. उसके आठ साल के बाद 23 दिसंबर 1921 को उन्होंने विश्वभारती की शुरुआत की.1951 में विश्वभारती को प्रथम बार केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया और प्रथम वाइसचांलर रवीन्द्रनाथ टैगोर के बेटे रथीन्द्रनाथ को बनाया गया था.

आज इस विश्वविद्यालय में 473 शिक्षक तथा 7,967 विद्यार्थी, हैं, जिनमें से 3,591 ग्रेजुएशन के और अन्य पोस्ट ग्रेजुएशन के हैं. रथीन्द्रनाथ टैगोर 14-5-1951 से 22 – 8-1953 तक विश्वभारती के वाइसचांलर के पद पर कार्यरत थे. रथीन्द्रनाथ पाठाभवन के पहले विद्यार्थियों में से एक थे और वह केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद पहले वाइसचांलर लगभग एक साल और तीन महीने रहे. उनके बाद वाइसचांलरों की लिस्ट देखने से पता चलेगा कि कौन-कौन लोग उस पद पर थे ! जिसमें क्षितिमोहन सेन, (अमर्त्य सेन के नानाजी) और सत्येंद्रनाथ बोस से लेकर अम्लान दत्त, सव्यसाची भट्टाचार्य और स्थापना के बाद अब तक के विद्युत चक्रवर्ती पच्चीसवें नंबर के हैं !

1951 से आज 2023 तक 72 सालों में पहली बार कोई वाइसचांलर इतना विवादास्पद हुआ है.

यह महाशय विश्वभारती का वाइसचांलर बनने के पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के अध्यापक थे. वर्तमान सरकार हिंदुत्ववादी विचारों की है यह देखकर, विद्युत चक्रवर्ती ने पदभार संभालने के तुरंत बाद , रवीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा शुरू किये गए पौष मेला को, जिसमें शांतिनिकेतन के अगल-बगल के गांवों के लोग, मुखतः संथाली और बाऊल संप्रदाय के लोग, अपनी बनाई वस्तुओं तथा लोक कला का प्रदर्शन करते थे, बंद कर दिया ! इसी प्रकार जनसंघ के संस्थापक श्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी का विश्वभारती विश्वविद्यालय के साथ किसी भी प्रकार का संबंध न होते हुए भी, उनके फोटो शांतिनिकेतन के हर लैम्पपोस्ट पर लगवा दिए. इसका औचित्य? वर्तमान सत्ताधारी दल को खुश करने के सिवाय इसका और कोई कारण नहीं दिखाई देता है !

इसी तरह प्रोफेसर अमर्त्य सेन के पुश्तैनी मकान को लेकर अजीबोगरीब विवाद पैदा करने के कृत्य को क्या कहेंगे? अभी सप्ताह भर पहले ही बीरभूम जिला प्रशासन ने कहा कि अमर्त्य सेन के पूर्वजों की वसीयत के अनुसार अमर्त्य सेन के शांतिनिकेतन के पुश्तैनी मकान को उनके नाम पर किया गया है ! लेकिन विद्युत चक्रवर्ती ने देखा कि वर्तमान सरकार की गलत नीतियों के अमर्त्य सेन आलोचक हैं तो उन्हें परेशान करके, वर्तमान सरकार को खुश करने के सस्ते हथकंडे के रूप में, अमर्त्य सेन के पुश्तैनी मकान, जो उनके नाना क्षितिमोहन सेन ने खुद के पैसों से बनवाया था, उसके चारों ओर की जमीन को लेकर, काफी विवाद पैदा करने की ओछी हरकत की.

इसी तरह किसी समस्या को लेकर विद्यार्थियों का धरना- प्रदर्शन चल रहा था. उसपर खुद विद्युत चक्रवर्ती ने पत्थर फेंके, ऐसे समाचार और फोटो मीडिया में छपे हैं. शायद भारत के शैक्षणिक इतिहास में यह पहली घटना होगी, जब किसी वाइसचांलर ने खुद विद्यार्थियों पर हमला किया होगा !

और सबसे हैरानी की बात, अमित शाह या राजनाथ सिंह जो न ही शिक्षामंत्री हैं और न ही उनका विश्वभारती के साथ कोई संबंध है, उन्हें बुलाकर मां तारा की तस्वीर देना, सांस्कृतिक दरिद्रता का प्रदर्शन करने का कृत्य ही माना जाएगा.

महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने 1863 में यानी डेढ़ सौ साल पहले निर्गुण निराकार परमेश्वर की आराधना की शुरुआत की थी, विशेष रूप से तब, जब रायपुर के जमींदार भुवनेश्वर सिन्हा से जमीन लेकर प्रार्थनाघर बनाकर विश्वभारती की नींव डाली गई ! अब जो हो रहा है वह टैगोर परिवार की सांस्कृतिक परंपरा का घोर अपमान है.अव्वल तो, इस तरह के राजनेताओं की पृष्ठभूमि को देखते हुए उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय के प्रांगण में आमंत्रित ही नहीं किया जाना चाहिए ! लेकिन आरएसएस के हिंदुत्ववादी एजेंडे में विश्वभारती के संस्थापकों के मूल उद्देश्य को खत्म करने की साजिश निहित है. इस तरह के धार्मिक आडंबर के कार्यक्रम करना जारी है. विद्युत चक्रवर्ती को गलतफहमी है कि जीवन भर भारतीय जनता पार्टी का राज रहेगा ! इसलिए वह उन्हें खुश करने के लिए यह सब आडंबर कर रहे हैं. लेकिन उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय से एक न एक दिन जाना ही होगा. वह पांच साल में विश्वभारती विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने के लिए विशेष रूप से याद किए जाएंगे !


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