— श्रवण गर्ग —
एक ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण कालखंड जिसमें प्रजातांत्रिक संसार के बचे थोड़े से मुल्क भी एक-एक करके तानाशाही व्यवस्थाओं में बदलते जा रहे हैं, ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ (3 मई) के अवसर पर हमारे आसपास के ही दो मुल्कों के जाँबाज़ पत्रकार-फोटोग्राफरों की कहानी से रूबरू होना जरूरी है। एक मुल्क भारत की पूर्वी सीमा से लगा म्यांमार(बर्मा) है और दूसरा पूर्व एशिया में स्थित ‘उगते सूर्य का देश’ जापान है। म्यांमार इस समय सैन्य तानाशाही की गिरफ्त में है। जापान में भरपूर प्रजातंत्र है।
कहानी की शुरुआत पंद्रह साल पहले से होती है। जापान की एक छोटी सी वीडियो-फोटो एजेंसी एपीएफ न्यूज के लिए काम करने वाले तब पचास वर्षीय केनजी नागाई 27 सितंबर 2007 के दिन म्यांमार की पुरानी राजधानी यंगून (रंगून) में एक महत्त्वपूर्ण जगह पर पहुँचे हुए थे। वे वहाँ के एक ख्यात पैगोडा के नजदीक की सड़क पर बौद्ध भिक्षुओं द्वारा सैन्य ज्यादतियों के खिलाफ किए जानेवाले शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की वीडियोग्राफी के लिए वहाँ गए थे। यंगून के स्थानीय पत्रकार और फोटोग्राफर्स भी वहाँ जमा थे।
बौद्ध भिक्षुओं का ‘सैफरॉन रिवोल्यूशन’ नामक शांतिपूर्ण प्रदर्शन अभी प्रारंभ ही हुआ था कि पहले पुलिस ने रास्ता बंद कर दिया और फिर सैन्य शासन के बंदूकधारी जवान ट्रकों में भर कर वहाँ पहुँच गए और उन्होंने भीड़ पर गोलियाँ बरसाना शुरू कर दिया। एक सैनिक ने वीडियोग्राफी कर रहे नागाई को भी नजदीक पहुँचकर गोली मार दी। नागाई की वहीं मृत्यु हो गई। उस दिन के सैन्य गोलीचालन में नागाई सहित दस लोगों की जानें गयी थीं। म्यांमार के पत्रकारों की गिनती के अनुसार, आँग सू ची की चुनी गई सरकार का 2021 में तख्ता पलट दिए जाने के बाद कायम हुए सैन्य शासन में अब तक उनके तीन साथियों की जानें जा चुकी हैं और डेढ़ सौ से ज्यादा हिरासत में हैं। इस समय हालात 2007 से ज्यादा खराब हैं।
सितंबर 2007 की घटना के अगले पंद्रह सालों तक इस बात का कोई पता नहीं चल पाया कि नागाई के उस वीडियो कैमरे का क्या हुआ जिसमें वे भिक्षुओं पर हुई सैन्य कार्रवाई को कैद कर रहे थे ! हुआ यह था कि सैन्य शासन की सख्त निगरानी के बावजूद वह कैमरा म्यांमार के पत्रकारों की हिफाजत में सुरक्षित रहा फिर उसे एक हाथ से दूसरे हाथ देते हुए बैंकॉक पहुँचा दिया गया।
जापान में निवासरत नागाई की बहन को म्यांमार के एक मीडिया संगठन की ओर से जब कैमरे के बारे में सूचित किया गया तो वे यकीन नहीं कर पायीं। मीडिया संगठन द्वारा बहन से निवेदन किया गया कि नागाई का छोटा सा सोनी हेंडीकेम पत्रकार उन्हें समारोहपूर्वक सौंपना चाहते हैं। बहन ने बैंकॉक पहुँचने की स्वीकृति दे दी। छब्बीस अप्रैल को बैंकॉक में हुए एक समारोह में जब डेमोक्रेटिक वॉइस ऑफ बर्मा के प्रमुख आय चान नेंग ने नागाई का वीडियो कैमरा उनकी बहन नोरोकी ओगावा को सौंपा तो वे यकीन ही नहीं कर पायीं।
कैमरे के सभी टेप्स और नागाई द्वारा कैद किए दृश्य ज्यों के त्यों सुरक्षित थे। बैंकॉक के समारोह में उन दृश्यों का प्रदर्शन किया गया। स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि यंगून के प्राचीन सुले पैगोडा के नजदीक की सड़क पर मंत्रोच्चार करते हुए बौद्ध भिक्षुओं पर सैनिकों द्वारा कैसे गोलियाँ चलाई गईं ! कैसे नागाई ने कैमरे का लेंस अपनी ओर कर लिया जिसमें भीड़ का तितर-बितर होना नजर आ रहा था। कैसे नागाई को गोली लगी और उनके नीचे गिरते ही उनका कैमरा बंद हो गया !
कहानी का क्लायमैक्स यह है कि जैसे ही एक सैनिक ने नागाई को नजदीक पहुँचकर गोली मारी और वे सड़क पर गिरे डेमोक्रेटिक वॉइस ऑफ बर्मा संगठन से संबद्ध और फोटो एजेंसी रायटर के फोटोग्राफर अदरिस लतीफ़ ने उस मार्मिक क्षण को कहीं दूर से अपने कैमरे में कैद कर लिया। लतीफ़ को उस चित्र के लिए 2008 का प्रतिष्ठित पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ के मौके पर क्या हम सैन्य तानाशाही के बीच भी बहादुरी के साथ अपना फर्ज अदा कर रहे म्यांमार के बहादुर पत्रकारों और फोटोग्राफरों के बुलंद हौसलों को सलाम नहीं करेंगे?
उपसंहार : ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा जारी ‘2023 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ में दुनिया के 180 मुल्कों के बीच भारत और नीचे खिसककर 161वें क्रम पर पहुँच गया है। पिछले साल हम 150वें और 2016 में 133वें क्रम पर थे। पाकिस्तान 2022 के 157वें क्रम से 150वें पर आ गया है। उत्तरी कोरिया 180वें क्रम पर है।