2 जून। हाल ही में हुए ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन 2020-21 के मुताबिक, उच्चशिक्षा में मुस्लिम छात्रों का नामांकन एससी एवं एसटी वर्ग के छात्रों से भी कम हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च शिक्षा में एससी/एसटी और ओबीसी के नामांकन में क्रमश: 4.2 फीसदी, 11.9 फीसदी और 4 फीसदी का सुधार हुआ है, जबकि मुस्लिम समुदाय के नामांकन में 8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। 18 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले उत्तर प्रदेश ने 36 फीसदी की गिरावट के साथ सबसे खराब प्रदर्शन किया है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में 26 फीसदी, महाराष्ट्र में 8.5 फीसदी और तमिलनाडु में 8.1 फीसदी की गिरावट आई है। केरल एकमात्र ऐसा राज्य है, जहाँ मुसलमान शिक्षा के मामले में सबसे निचले पायदान पर नहीं हैं। यहाँ 43 फीसदी मुसलमानों ने उच्च शिक्षा के लिए अपना नामांकन कराया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 महामारी के कारण आंशिक रूप से हुई यह अभूतपूर्व गिरावट समुदाय की अपेक्षाकृत अधिक खराब आर्थिक हालात की ओर इशारा करती है, जो इसके प्रतिभाशाली छात्रों को ग्रेजुएशन के स्तर पर उच्चशिक्षा प्राप्त करने के बजाय रोजगार पूल में शामिल होने के लिए मजबूर करती है।
खास बात यह भी है, कि उच्चशिक्षा में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की भारी कमी के बावजूद कर्नाटक की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले मुसलमानों को दिए जा रहे 4 फीसदी आरक्षण को रद्द कर दिया था। दुनिया में 11 फीसदी से अधिक मुसलमान भारत में रहते हैं। वे देश की आबादी का 14.2 फीसदी हिस्सा हैं। यह एक राष्ट्रीय क्षति है, कि समाज का इतना बड़ा वर्ग हाशिए पर तथा अत्यधिक बहिष्कार और गहरे अभाव से ग्रस्त है।
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