— सत्यनारायण साहु —
अंतरराष्ट्रीय ख्याति की कई महिला पहलवानों ने, जिन्होंने ओलंपिक, कामनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में भारत को गौरवान्वित किया है, अपने पदक गंगा में बहाने का दुखद निर्णय लिया था। उन्होंने यह भी निश्चय किया था कि वे आमरण अनशन करेंगी, क्योंकि प्रधानमंत्री जब नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे थे तब उसके बाहर जाकर विरोध प्रदर्शन के प्रयास के दौरान उन पर पुलिस ने काफी जुल्म ढाया। लेकिन सरकार की तरफ से कोई उनसे मिलने नहीं गया। गंगा में अपने मेडल बहा देने का निर्णय उन्होंने पाँच दिन के लिए मुल्तवी कर दिया तो इसलिए कि इसके लिए किसान नेता राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने उन्हें काफी मनाया-समझाया।
विरोध जताने के अधिकार पर कुठाराघात
जब महिला पहलवानों ने नए संसद भवन के बाहर जाकर विरोध प्रदर्शन करने का प्रयास किया, तो उन्हें बड़ी बेरहमी से पीटा गया, घसीटा गया और जबरदस्ती थाने ले जाया गया। उनके खिलाफ एक एफआईआर, ‘दंगा करने’ के आरोप में, दर्ज की गयी। और सबसे बढ़कर यह कि, उन्होंने भाजपा सांसद व भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई के लिए महीने भर से ज्यादा समय से चल रहे अपने धरने को आगे चलाने के लिए जो टेंट, तिरपाल आदि जंतर मंतर पर लगाए थे वे सब दिल्ली पुलिस ने उखाड़ दिए। इनका कहना है कि बृजभूषण सिंह ने उनका यौन उत्पीड़न किया था, और पीड़ितों में एक नाबालिग भी थी।
पुलिस ने उनके प्रति बैरी-जैसा व्यवहार किया, जब उनसे कहा कि वे अब जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकतीं; और किसी अन्य स्थान पर विरोध प्रदर्शन के लिए उन्हें नए सिरे से अर्जी देनी होगी।
स्मरण रहे कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर तभी दर्ज हो पायी जब सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए निर्देश दिया, और पोक्सो (POCSO – Protection of Children from Sexual Offence) की भी धारा लगायी गयी, जो काफी सख्त है, जिसके तहत आरोपित की तुरंत गिरफ्तारी और जमानत न मिलने का प्रावधान है। लेकिन इतने दिन बाद भी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। प्रधानमंत्री तथा महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी समेत बीजेपी नेताओं ने चुभने वाली चुप्पी साध रखी है। यह बहुत त्रासद है कि आरोपित के खिलाफ कार्रवाई की माँग करते हुए महिला पहलवानों के विरोध प्रदर्शन तथा यौन उत्पीड़न के खिलाफ अपने सम्मान व अपनी गरिमा की रक्षा के उनके अधिकार को बुरी तरह कुचला गया है।
ये वही महिला पहलवान हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित अपने प्रदर्शन के बूते भारत का मान और गौरव बढ़ाया। लेकिन उन्हें अपमानित किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठायी है। उनके लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने उनके साथ जैसा बेरहम सलूक किया उसकी निंदा अब अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने भी की है।
मोदी जब लोकतंत्र की बात कर रहे थे, उनकी पुलिस लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला कर रही थी
ठीक उसी समय जब महिला पहलवान पुलिसिया हिंसा को बहादुरी से झेल रही थीं, प्रधानमंत्री लोकतंत्र के बारे में लच्छेदार डॉयलॉग बोल रहे थे और नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे थे। उन्होंने बड़े दावे और फख्र से कहा, “लोकतंत्र हमारे लिए सिर्फ एक सिस्टम नहीं है, बल्कि एक संस्कृति, एक विचार और एक परंपरा है।”उन्होंने कहा कि भारत “समृद्ध, मजबूत और विकसित भारत बनेगा, जो नीति, न्याय, सत्य, गरिमा और कर्तव्य के सिद्धांतों पर चलेगा।”
हमारी महिला पहलवानों को दिल्ली पुलिस के हाथों जो हिंसा और अपमान मिल रहा था, उसके संदर्भ में प्रधानमंत्री के उपर्युक्त शब्द कितने खोखले जान पड़ रहे थे! ध्यान रहे दिल्ली पुलिस सीधे मोदी सरकार के नियंत्रण और निगरानी में काम करती है। प्रदर्शनकारियों का यह नारा – जब जब मोदी डरता है, पुलिस को आगे करता है- उस खौफजदा वातावरण को व्यंजित कर रहा था जो पुलिस ने बना रखा था।
बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई
यह पहला मौका नहीं है कि जब मोदी महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा की बात कर रहे थे, उसी समय ठीक उससे उलटा काम कर रहे थे। 15 अगस्त 2022 को लाल किले की प्राचीर से दिए उनके स्वाधीनता दिवस के संबोधन को याद करें। उन्होंने कहा था, “हमारे व्यवहार में, हमारी संस्कृति में, और हमारे दैनंदिन जीवन में वह सब कुछ जो महिलाओं के लिए अपमानजनक है, उन्हें नीचा दिखाता है, क्या हम उसको तिलांजलि नहीं दे सकते?” लेकिन ठीक उसी दिन शाम होते-होते केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की हरी झंडी पाकर गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले में हत्या और बलात्कार के जुर्म में आजीवन कारावास भोग रहे ग्यारह कैदियों को रिहा कर दिया। वे कैदी 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ जघन्य अपराधों में सजायाफ्ता थे।
प्रधानमंत्री ने उन कैदियों की रिहाई के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा, जिन्हें रिहा किये जाने के बाद मिठाई खिलाकर उनका स्वागत किया गया था। कुछ बीजेपी नेताओं ने रिहाई के उस निर्णय को यह कहकर सही ठहराया कि वे ब्राह्मण जाति से हैं और इसलिए उनके संस्कार अच्छे हैं। आखिरकार यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है जहाँ वह विचाराधीन है। लेकिन इस मामले में प्रधानमंत्री की खामोशी हैरान करती है।
ठीक इसी तरह से, महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के मसले पर भी प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं कहा। न्याय के लिए महिला पहलवानों का संघर्ष अभी जारी है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का खोखला नारा
कैसी विडंबना है कि मोदी सरकार जिसने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दिया और खेलो इंडिया जैसी पहल की, वह बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपों पर आँख-कान-मुँह बंद किये हुए है। यह भी कम दुखद नहीं कि सरकार ने महिला पहलवानों से यह अपील करने तक की जरूरत नहीं समझी कि वे अपने मेडल गंगा में न बहाएँ।
कानून का शासन
खेल एवं युवा मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर के इस चलताऊ बयान से महिला पहलवानों को कोई उम्मीद नहीं हो सकती थी कि कानून अपना काम करेगा इसलिए उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें धैर्यपूर्वक इंतजार करना चाहिए। इससे पक्के तौर पर यही धारणा बनी है कि सरकार आरोपित के साथ खड़ी है। बृजभूषण शरण सिंह ने, स्तब्ध करते हुए, अनुराग ठाकुर के बयान की हवा निकाल दी, यह कहकर कि पोक्सो एक्ट का काफी दुरुपयोग हो रहा है इसलिए सरकार को इसमें संशोधन करना चाहिए। खबरों के मुताबिक उनका आशय यह था कि इस अधिनियम (पोक्सो) में जमानत न मिलने का प्रावधान काफी कठोर है और इसे हटा दिया जाना चाहिए। अब उनके इस बयान को प्रधानमंत्री के 28 मई के भाषण के साथ मिलाकर देखें, कि जो कानून यहाँ बनेंगे वे युवाओं और महिलाओं के लिए नए अवसरों का सृजन करेंगे!
प्रधानमंत्री की खामोशी, अनुराग ठाकुर का रस्मी बयान कि, कानून अपना काम करेगा, और बृजभूषण शरण सिंह का यह कहना कि वे सरकार पर पोक्सो में फेरबदल के लिए दबाव डालेंगे- ये सब कुल मिलाकर यही संकेत देते हैं कि मोदी सरकार महिला पहलवानों, और सामान्यतः महिलाओं के दुख-दर्द से बेपरवाह है।
महिला पहलवानों ने दिल्ली पुलिस के पास जो एफआईआर दर्ज कराए थे, अब उनका ब्योरा इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित होकर सबके सामने आ गया है। अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सात शिकायतकर्ताओं ने गलत ढंग से छूने, जबरदस्ती आलिंगन करने और पीछा करने जैसे कम से कम दस आरोप बृजभूषण शरण सिंह पर लगाए हैं।
महिला पहलवानों की शिकायतों को दबाना और उनकी माँगों से पिंड छुड़ाना सरकार के लिए लगातार कठिन से कठिनतर होता जा रहा है, क्योंकि उन्हें समाज के हर तबके से समर्थन मिल रहा है। समर्थन करनेवालों में अब बीजेपी के कुछ नेता तक शामिल हैं। महाराष्ट्र से बीजेपी सांसद प्रीतम मुंडे ने कहा है कि उनकी पार्टी को महिला पहलवानों के आरोपों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हरियाणा के, जहाँ से ये महिला पहलवान आती हैं, बीजेपी नेताओं ने केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाये हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी महिला पहलवानों के लिए न्याय की माँग को लेकर हुए मोमबत्ती मार्च में शामिल हुईं और किसानों ने शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई की माँग को लेकर 1 जून को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में महापंचायत आयोजित की। उन्होंने कहा कि अगर सरकार अब भी हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है तो इस सप्ताह के आखीर में और बड़ी महापंचायत हरियाणा में की जाएगी।
2 जून को आयी ताजा खबरों के मुताबिक बृजभूषण शरण सिंह ने अपने समर्थन में 5 जून को अयोध्या में जो रैली की योजना बनायी थी उसे स्थगित करना पड़ा; स्थानीय प्रशासन ने विश्व पर्यावरण दिवस का हवाला देकर रैली की इजाजत देने से मना कर दिया। ये सारी बातें इसी ओर इशारा करती हैं कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने तथा आंदोलन के लिए विवश महिला पहलवानों को राहत देने की जरूरत है।
जब इन महिला पहलवानों ने कड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में पदक जीते थे तब प्रधानमंत्री ने उनकी खूब सराहना की थी और उन्हें अपने परिवार का हिस्सा बताया था। यह दुखद है कि वही प्रधानमंत्री आज उनके साथ नहीं खड़े हैं जब वे कह रही हैं कि उनका यौन उत्पीड़न हुआ है, और वे न्याय के लिए लड़ रही हैं। प्रधानमंत्री को दलगत गुणा-भाग से ऊपर उठकर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के अपने नारे को चरितार्थ करना चाहिए। वह अपराधियों के खिलाफ कानून को सख्ती से लागू करके ऐसा कर सकते हैं, ताकि महिला पहलवानों के सम्मान की रक्षा हो, महिलाओं को त्वरित न्याय मिले, देश की प्रतिष्ठा अक्षुण्ण रहे और हमारे गणतंत्र की शान में लोगों का भरोसा कायम रहे।
(लेखक राष्ट्रपति केआर नारायणन के प्रेस सचिव रह चुके हैं।)
अनुवाद : राजेन्द्र राजन