इलाज का खर्च उठाने के लिए देश की एक बड़ी आबादी बन रही कर्जदार

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19 जून। भारत की एक बड़ी आबादी को इलाज पर होने वाला खर्च गरीब बना रहा है, खासकर अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में ग्रामीण और शहरी परिवार कर्जदार बन रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज के लिए अस्पताल में होने वाली करीब 14 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 8.5 फीसदी भर्तियों के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। भारत के 14 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल में होने वाली हर 10 में से एक भर्ती के लिए कर्ज लेना पड़ता है। यह प्रवृत्ति आंध्र प्रदेश में सर्वाधिक 28.2 फीसदी है। उसके बाद कर्नाटक का स्थान है, जहाँ 23 फीसदी अस्पतालों की भर्तियां कर्ज लेकर हो रही हैं।

उत्तर पूर्व के ग्रामीण क्षेत्र इस मामले में बेहतर स्थिति में हैं। अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 0.7 फीसदी, असम में 4.6 फीसदी, मणिपुर में 1.7 फीसदी, मेघालय में 1.7 फीसदी, मिजोरम में 0.6 फीसदी, नागालैंड में 8.5 फीसदी, सिक्किम में 2.2 फीसदी और त्रिपुरा में 7.2 फीसदी अस्पतालों की भर्तियों के लिए कर्ज लेना पड़ता है। ग्रामीण भारत के राष्ट्रीय औसत 13.4 प्रतिशत से अधिक उधारी वाले राज्यों की सूची में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के अलावा बिहार, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।

अगर शहरी क्षेत्रों में होने वाली अस्पतालों की भर्तियों पर नजर डालें, तो उधारी के बूते इलाज करवाने वाले राज्यों की सूची में तमिलनाडु अव्वल है। इस राज्य के शहरी क्षेत्रों में होने वाली 16.9 फीसदी भर्तियों के लिए इलाज की आवश्यकता पड़ती है। दूसरे स्थान पर आंध्र प्रदेश है, जहाँ 16 फीसदी भर्तियां कर्ज के सहारे होती हैं। शहरी क्षेत्रों के राष्ट्रीय औसत 8.5 फीसदी से अधिक उधारी वाले राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पुदुच्चेरी शामिल हैं।

(‘डाउन टु अर्थ’ से साभार)

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