— ध्रुव शुक्ल —
आदिपुरुष नामक फिल्म के कुछ फूहड़ संवाद बदलने से कुछ नहीं होगा। फिल्म का ट्रेलर देखते ही लगा कि इसके दृश्यों को जैसे किसी काली धुंध में फिल्माया गया है। राम के मुखमण्डल पर करुणा का स्थायी भाव नहीं दीख रहा। ज्ञानवान रावण किसी अमर्यादित उग्रवादी जैसा लग रहा है। सीता के मुख पर राम की प्रतीक्षा के धीरज की झलक नहीं मिल रही। रामायण के गौरवर्णी हनुमान के मुख पर काले रंग की छाया उनके चरित के अनुरूप सौम्यता के भाव को प्रकट ही नहीं कर पा रही।
जब फिल्म निर्माता ने अज्ञानवश रामायण के प्रमुख पात्रों की यह दुर्दशा कर दी है तो कोई दर्शक इस फिल्म को देखकर अपना मन खिन्न क्यों करे। रामायण करुणरस का काव्य है। इस फिल्म में उसके महान नायक राम के मुख पर उनका वह करुणामय मृदु स्वभाव ही प्रकट नहीं हो रहा, जिसकी छाया में रामायण के सभी पात्र राम के प्रति कृतज्ञ होकर अपनी भूमिका निभाते हैं। तो फिर इस फिल्म को कोई क्यों देखे, घर बैठकर रामायण का पाठ करके आनंदित हो। लगता है कि यह फिल्म निर्माताओं के अज्ञान के ॲंधेरे में फिल्मायी गयी है जबकि रामायण तो जीवन में ज्ञानप्रकाश फैलाने वाली आदिकथा है।
सुख-दुख में काम आने वाले राम-नाम से परिचित जनता इस फिल्म की तीखी आलोचना कर रही है। चकित हूँ कि राम के नाम पर राजनीति करने वाले नेता कुछ बोल नहीं पा रहे! गोदी मीडिया चैनलों पर बैठे एंकरों के सवाल सुनकर लग रहा है कि वे बिना रामायण पढ़े फिल्म को प्रमोट कर रहे हैं।