भाजपा ने सिनेमा को बनाया सियासी हथियार

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— राणा अय्यूब —

ई हफ्तों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना उनकी अमरीका यात्रा के इर्दगिर्द होती रही है। प्रधानमंत्री और उनकी भारतीय जनता पार्टी पर लगता आ रहा यह आरोप सही है कि उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा को हवा दी है। लेकिन इस सारी चर्चा में यह बात ओझल रही है कि बीजेपी ने किस तरह पापुलर कल्चर को खासकर सिनेमा को अपने सियासी मंसूबों के लिए साधा है।

पिछले महीने रिलीज हुई फीचर फिल्म द केरला स्टोरी इस बड़े रुझान का एक प्रतीक है। यह फिल्म एक काल्पनिक परिघटना को नाटकीय शक्ल देती है। यह फिल्म एक हिंदू औरत की कहानी बताती है जिसने इस्लाम कबूल कर लिया है। इस्लाम में धर्मान्तरित होने के पीछे एकमात्र मकसद उग्रवादी बनना है और आखिरकार वह आतंकवादी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट) में भर्ती हो जाती है। फिल्म का ट्रेलर सनसनीखेज अंदाज में यह दिखाता है कि एक मुसलिम औरत अपनी सहेलियों को हिंदू धर्म छोड़ देने के लिए समझा रही है। ट्रेलर में एक मौलवी कुछ पुरुषों से कह रहा है कि वे हिंदू औरतों को फुसलाएँ, उन्हें गर्भवती बनाएँ, उन्हें उनके परिवारों से दूर करें और फिर उन्हें जिहाद के लिए भेजें।

यूट्यूब पर डाले गए ट्रेलर में फिल्म के निर्माताओं ने शुरू में ही यह कहा था कि फिल्म का मुख्य पात्र काल्पनिक है, जो बताता है कि 32,000 औरतों के साथ ऐसा ही हुआ है। ट्रेलर देखते देखते वायरल हो गया। प्रमुख हिन्दू-राष्ट्रवादी नेताओं ने अपने समर्थकों से कहा कि वे यह फिल्म जरूर देखें, यह समझने के लिए उनके देश में हो क्या रहा है।

बीजेपी ने दक्षिणी राज्य कर्नाटक में, इस फिल्म के जरिए खूब जोर-शोर से अपना चुनाव प्रचार चलाया, और बीस बड़ी रैलियाँ तथा आठ रोडशो किए। एक रैली में प्रधानमंत्री ने खुद लोगों को यह फिल्म देखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि यह फिल्म आतंकवाद का वास्तविक चेहरा दिखाती है, साथ ही उन्होंने विपक्ष पर आरोप मढ़ा कि वह इस फिल्म के रिलीज होने में अड़ंगा लगा रहा है।

वास्तव में, फिल्म की चौतरफा आलोचना उसके अवास्तविक और सनसनीखेज होने के कारण की जा रही थी। तथ्यों की जाँच करनेवाली वेबसाइट आल्ट न्यूज ने इस दावे की हवा निकाल दी कि दसियों हजार हिंदू औरतों को बहका-फुसलाकर आतंकवादी संगठनों में भर्ती किया गया है। इसने खुलासा किया कि 2021 में चार भारतीय औरतों को अफगानिस्तान में जेल की हवा खानी पड़ी, जब वे खुरासान प्रांत में अपने पतियों के आईएस में शामिल होने के बाद उनका अनुसरण कर रही थीं।

पश्चिम बंगाल की सरकार ने इस फिल्म का प्रदर्शन रोकने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करेगा और प्रतिबंध लगाने के आदेश को पलट दिया, लेकिन सुनवाई कर रहे जज ने इस पर अफसोस जताया कि फिल्म में भारत के एक समुदाय को लांछित किया गया है। अदालत ने फिल्म पर प्रतिबंध के आदेश को तो मंसूख कर दिया लेकिन फिल्म निर्माताओं से कहा कि वे इस आशय का डिसक्लेमर जरूर दिखाएँ कि 32,000 औरतों के धर्मान्तरण का कोई प्रामाणिक आँकड़ा नहीं है, और यह कि फिल्म, इसमें वर्णित घटनाओं का एक काल्पनिक वृत्तांत प्रस्तुत करती है।

लेकिन जो नुकसान होना था वह हो चुका था। फिल्म ने दुनिया भर से कुल लगभग 3.7 करोड़ डॉलर कमाए, जो कि 2023 में दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म है।

द केरला स्टोरी, इससे पहले आयी इस तरह की फिल्म काकहीं ज्यादा रणनीतिक संस्करण है। पिछले साल मैंने द कश्मीर फाइल्स के बारे में लिखा था। यह फिल्म मुसलमानों के बारे में इतना विष-वमन करती है कि अपनी सुरक्षा का खयाल करके मैं, फिल्म खत्म होने से पहले ही, सिनेमा हॉल से उठकर चली आयी थी। द कश्मीर फाइल्स को भी बॉक्स आफिस पर जबर्दस्त कामयाबी मिली थी, कोविड के बावजूद दर्शक उमड़ पड़े थे। फिल्म उद्योग से संबंधित एक दिलचस्प रिपोर्ट के मुताबिक, कश्मीर फाइल्स के 60 फीसद से ज्यादा दर्शक, नियमित रूप से फिल्म देखनेवाले दर्शक नहीं थे, और बहुतेरे दर्शक भाजपा के मुँहामुँही प्रचार अभियान के असर में खिंचकर फिल्म देखने चले गए थे।

प्रख्यात फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने मुझे बताया कि फिल्म निर्माताओं से कहा जा रहा है कि वे ऐसी फिल्म बनाएँ जो सरकार के एजेंडे के मुताबिक हो। आरएसएस जैसे शक्तिशाली हिन्दू-राष्ट्रवादी ग्रुप, निर्माताओं से मुलाकात कर रहे हैं और उन्हें बता रहे हैं कि किस तरह की फिल्म वे बनाएँ ताकि सरकार के एजेंडे को ताकत मिले।

इससे भी बुरी बात यह है कि पिछले दो साल में कई निर्माताओं ने पाया कि उनकी फिल्म स्ट्रीमिंग प्लेटफार्मों ने हटा दी है। एक अन्य प्रमुख निर्देशक दीपांकर बनर्जी का कहना है कि उनकी फिल्म टीज, जो कि भेदभाव झेल रहे एक मुसलिम परिवार की कहानी दर्शाती है, नेटफ्लिक्स द्वारा, लोक-लिहाज की परवाह करते हुए, हटा दी गयी। बकौल बनर्जी, नेटफ्लिक्स ने उनसे कहा कि इस फिल्म के रिलीज किए जाने का यह सही वक्त नहीं है। उन्हें अंदाजा हो गया कि राजनीतिक झटका खाने की आशंका से नेटफ्लिक्स डर गया था।

इस बीच कई और फिल्में घोषित हुई हैं जिनमें स्वातंत्र्य वीर सावरकर भी है जो हिंदुत्व की राजनीतिक विचारधारा के संस्थापक की बायोपिक (जीवन पर आधारित फिल्म) होगी। फिल्म गोधरा का फोकस 2002 में गुजरात में ट्रेन में आग लगने की घटना पर होगा जिसमें 60 कारसेवक मारे गए थे। इसी घटना के बाद गुजरात में तीन दिन तक मुसलिम विरोधी दंगे हुए थे जिनमें एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे (तब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे)। फिल्म हम दो हमारे बारहके प्रचार का एक पोस्टर देखने में आया है, एक ऐसी फिल्म जो भारत में जनसंख्या विस्फोट के विवादास्पद विषय को उठाती है। पोस्टर में एक मुसलिम व्यक्ति है, साथ में हिजाब लगाए उसकी गर्भवती बीवी है और 11 बच्चे हैं। और फिल्म 72 हूरेंके एक टीजर (उत्सुकता जगाने के लिए बना एक छोटा विज्ञापन) में यह दावा किया गया है कि इसमें इस्लाम का वास्तविक चेहरा देखने को मिलेगा। टीजर में ज्ञात आतंकवादियों से संबंधित दृश्यों (विजुअल्स) का भी इस्तेमाल किया गया है।

ये सारी फिल्में संभवतः 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले रिलीज होंगी। द केरला स्टोरी की सफलता को देखते हुए, उन्हें भरपूर श्रोता मिलने की संभावना है- और वे फिल्में भाजपा के चुनाव प्रचार को और भी नफरती बनाएँगी।

गनीमत यह है कि दुनिया अब इस बात का संज्ञान ले रही है कि मोदी और उनका दल भारत में सांप्रदायिकता भड़काने के लिए क्या-क्या कर रहे हैं। दुनिया को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए कि अपने असहिष्णु विजन की तरफ लोगों को खींचने के लिए वे किन साधनों और किन तरीकों का उपयोग कर रहे हैं।

(washingtonpost. com से साभार)

अनुवाद : राजेन्द्र राजन

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