विपक्षी एकता से भारतीय जनता पार्टी डर गयी है?

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— प्रभात कुमार —

त्ता का डर, सत्ता की बेचैनी और सत्ता प्रेम राजनीति का अहम हिस्सा रहा है। इसके कारण सारे नीति सिद्धांत और फैसले शिथिल पड़ जाते हैं। मार्च 2022 में जब भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पटना में आयोजित हुई थी तब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने छोटी पार्टियों को लेकर जो टिप्पणी की थी वह भले ही भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को याद न आए लेकिन कुछ लोगों को जरूर याद होगा।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि सब कुछ खत्म हो जाएगा…… रहेगी सिर्फ बीजेपी। उनका कहना था कि हम अपनी विचारधारा से चलते रहे तो देश से क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो जाएंगी। देश में अब भारतीय जनता पार्टी के विरोध में लड़ने वाली पार्टी नहीं बची है। हमारी असली लड़ाई परिवारवाद और वंशवाद से है। यह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है।

तब बिहार में भाजपा, जेडीयू के साथ, सरकार में शामिल थी। श्री नड्डा के बयान पर जेडीयू के प्रवक्ता ने अपनी आपत्ति भी जताई थी। यही नहीं, इस टिप्पणी के कुछ ही दिनों के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई थी। शिवसेना में एक बड़े विभाजन के कारण भाजपा महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी। इसके बाद बिहार में भी सत्ता परिवर्तन के खतरे को भांपते हुए नीतीश कुमार ने एक बार फिर से पाला बदल लिया था।

लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों को लेकर दिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयान के बाद पूरे देश में न सिर्फ तीखी प्रतिक्रिया सामने आई थी, बल्कि देशभर की क्षेत्रीय पार्टियों ने भाजपा के मंसूबे को भांपते हुए चिंतन-मनन शुरू कर दिया था। यही नहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश की तमाम विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात कर विपक्ष की एकता को लेकर पहल की। इस खिचड़ी को पकने में कोई एक साल लगे लेकिन परिणाम सामने आया।

इसी साल 23 जून को पटना में 16 विपक्षी दलों की एक बैठक हुई। जिसमें आंशिक मतभेदों के बावजूद आपसी एकता बनी रही। अब बेंगलुरु में हुई बैठक में एकजुट विपक्षी दलों की संख्या 16 से बढ़कर 26 पर पहुंच गई है। लेकिन इन दोनों बैठकों के बीच विपक्षियों को एक बड़ा राजनीतिक झटका झेलना पड़ा है। भाजपा ने एक बार फिर से महाराष्ट्र में शिवसेना को दो फाड़ कर दिया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इधर, बिहार में भी जेडीयू को तोड़ने की पुरजोर कोशिश जारी है। मालूम हो कि भाजपा की नजर लगातार महाराष्ट्र के बाद बिहार पर बनी हुई है। बिहार में भी लगातार राजनीतिक उठापटक जारी है। वैसे, इसकी शुरुआत तो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे पूर्व केंद्रीय इस्पात मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह से शुरू हुई। फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू से अलग हुए और अभी हाल में ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी नीतीश सरकार से अलग हुई। वीआईपी के मुकेश साहनी को पहले भाजपा फिर एनडीए में शामिल करने की कोशिश जारी है।

अगर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के एक साल पहले के बयान पर गौर करें, तो सवाल यह उठता है कि आखिर अचानक क्षेत्रीय पार्टियों को लेकर भाजपा की मोहब्बत क्यों उमड़ पड़ी। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को क्षेत्रीय दलों से सांठगांठ क्यों करनी पड़ रही है? अचानक एनडीए के पुराने, बीते दिनों साथियों के साथ तालमेल की जरूरत क्यों आन पड़ी है।

इसी वर्ष जून महीने में जब नए संसद भवन का उदघाटन हुआ, कई विपक्षी पार्टियों के द्वारा संसद के उदघाटन का बहिष्कार करने के फैसले के बाद अचानक छोटी पार्टियों को एकत्र कर विपक्ष के सामने एक बड़ी रेखा खींचने की कोशिश की गई और अब जब बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों के एकत्र होने की खबर आई तब भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में 36 पार्टियों के साथ एनडीए की बैठक करने का फैसला लिया। कई पार्टियां एनडीए का हिस्सा बनने वाली हैं। विपक्षी एकता का जवाब देने की रणनीति बनाई जा रही है। अब यह तय हो गया है कि 2024 में देश की सत्ता के लिए दो महागठबंधनों के बीच मुकाबला होगा।

कोई एक साल के घटनाक्रम को देखने पर यह साफ पता चलता है कि भाजपा बैकफुट पर आ गई है। वह अब एक बड़ी रेखा के सामने उससे भी बड़ी रेखा खींचना चाहती है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में बिहार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इतना तो तय है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता के लिए पहल कर तमाम नेताओं को एक मंच पर एकत्र किया है। जिसके कारण एक बार फिर से बिहार ने 1977 और 1989 की याद दिला दी है। यह पहला मौका है जब देशभर में भाजपा के बैकफुट पर जाने की चर्चा हो रही है।

एक सवाल और बनता है कि परिवारवाद और वंशवाद के खिलाफ भाजपा की लड़ाई का क्या हुआ। वैसे तमाम राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए यह साफ है कि भाजपा भीतर से डरी हुई है। देश भर में कुर्सी का खेल खेलने वाली यह पार्टी अब अपनी कुर्सी को लेकर चिंता में है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार विपक्षी एकता पर प्रहार कर रहे हैं।

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