इन दो फैसलों से भाजपा का ग्राफ नीचे गया है

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— शिवानंद तिवारी —

धर न्यायपालिका के दो फैसलों ने भाजपा और मोदी सरकार को बहुत पीछे ढकेल दिया है। बीते शुक्रवार को राहुल गांधी के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। मानहानि के मामले में दो वर्ष की सजा की वजह से लोकसभा की उनकी सदस्यता चली गयी थी। मानहानि के मामले में यह अधिकतम सजा है। जानकार बता रहे हैं कि आज तक अवमानना के किसी भी मामले में किसी को दो वर्ष की सजा नहीं मिली है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि इस मामले में सजा देने वाली अदालत ने अपने फैसले में यह नहीं बताया है कि अधिकतम सजा क्यों दी जा रही है। यहाँ तक कि गुजरात हाईकोर्ट ने अपने लंबे चौड़े फैसले में यह जानने की उत्सुकता नहीं दिखाई है कि सजा देने वाली अदालत ने अधिकतम सजा क्यों दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह सिर्फ राहुल गांधी को ही सजा नहीं है बल्कि उन मतदाताओं को भी सजा है जिन्होंने अपना मत देकर उनको अपना प्रतिनिधि चुना है।

इस सजा से राहुल गांधी की सिर्फ लोकसभा की सदस्यता ही नहीं गई बल्कि दो वर्ष की सजा के बाद कानूनी प्रावधान के मुताबिक उनको अगले छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से भी वंचित करने की कोशिश की गई। इन सबके बावजूद राहुल जी ने इस फैसले के बाद जिस धीरज और गरिमा के साथ अपने आप को पेश किया वह मौजूदा राजनीति में दुर्लभ है। आनन फानन में लोकसभा की उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। उनका सरकारी आवास खाली करा दिया गया। लेकिन वे लगातार यह कहते रहे कि उन्होंने व्यक्तियों पर आरोप लगाया है, किसी जाति विशेष को अपमानित नहीं किया है। इसलिए मैं माफी नहीं माँगूँगा।

इन गंभीर परिणामों को जानते समझते हुए भी उन्होंने अपना कदम पीछे नहीं हटाया। इससे राहुल गांधी की प्रतिष्ठा बढ़ी है।

लेकिन जिस प्रकार सजा के अगले ही दिन उनकी सदस्यता को समाप्त करा दिया गया, उनका घर खाली कराया गया, और अंततोगत्वा जिस प्रकार उनको संसदीय राजनीति से अलग थलग कर देने की साजिश की गई उससे मोदी जी की प्रतिष्ठा को बहुत आघात लगा है।

दूसरा फैसला पटना हाईकोर्ट का है। बिहार सरकार द्वारा जातीय सर्वेक्षण पर अपनी रोक को हाईकोर्ट ने हटा दिया है। जातीय सर्वेक्षण से पिछड़े वर्गों में काफी उत्साह था। काफी उम्मीद के साथ वे लोग इस फैसले का इंतजार कर रहे थे। दरअसल, हमारे समाज में व्याप्त जाति आधारित विषमता ने देश को गंभीर हानि पहुँचायी है। इसको दूर करने के लिए वंचित समाज को विशेष अवसर के सिद्धांत के मुताबिक आरक्षण की व्यवस्था की गई है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति को तो संविधान में ही सरकारी सेवा और चुनाव की राजनीति में आरक्षण व्यवस्था कर दी गई थी लेकिन पिछड़े वर्गों को केंद्रीय सरकार की नौकरियों तथा केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में मंडल कमीशन की अनुशंसा के आधार पर आरक्षण की व्यव्स्था की गई है। बिहार में कर्पूरी ठाकुर जी की सरकार ने पिछड़े वर्गों का वर्गीकरण कर पिछड़ों और अति पिछड़ों का अलग अलग कोटा तय कर दिया था। इसके अलावा अति पिछड़ों और महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण के लिए स्थानीय चुनावों में आरक्षण का प्रावधान किया गया। फिर नीतीश सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए तैंतीस प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है।

लंबे अनुभव से यह बात सामने आयी है कि आरक्षण का लाभ सभी पिछड़ी जातियों को समान रूप से नहीं मिल रहा है। दोनों वर्गों की मजबूत जातियाँ आरक्षण व्यवस्था का अधिकांश लाभ ले ले रही हैं। इस विसंगति को दूर करने का जातिगत सर्वेक्षण के अलावा अन्य क्या रास्ता है ! इसी नेक मकसद से नीतीश सरकार जातीय सर्वेक्षण करा रही है। इस सर्वेक्षण के पक्ष में बिहार की विधानसभा ने सर्वसम्मत प्रस्ताव भी पारित किया था। लेकिन जैसे ही सर्वेक्षण होने लगा वैसे ही विरोध में हो हल्ला शुरू हो गया।सबसे ज्यादा शोर भाजपा समर्थकों ने ही मचाया। दरअसल, समाज में जिनकी संख्या कम है लेकिन सरकारी संसाधनों पर जिनका कब्जा है और जहां जिनकी संख्या के अनुपात में कहीं ज्यादा स्थान है वही सबसे ज्यादा शोर मचा रहे हैं। इनमें प्रायः अधिकांश भाजपा के ही समर्थक हैं। यही लोग सर्वेक्षण को अवरुद्ध करने के लिए पटना हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने अब वह रोक हटा ली है।

इससे पिछड़े वर्गों में बहुत उत्साह है। पटना हाईकोर्ट के इस फैसले का प्रभाव बिहार तक सीमित नहीं रहेगा, क्योंकि देश भर में पिछड़े वर्ग के लोग जातीय सर्वेक्षण के लिए आवाज उठा रहे हैं। लेकिन सर्वेक्षण पर पटना हाईकोर्ट की रोक की वजह से अनिश्चितता का माहौल बना हुआ था। रोक हटने के बाद प्रायः सभी राज्यों में सर्वेक्षण की आवाज जोर से उठेगी।

राहुल गांधी के मामले में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत तथा गुजरात हाईकोर्ट के फैसलों को पलट दिया तथा पटना हाईकोर्ट ने बिहार के जातीय सर्वेक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया उससे भाजपा और मोदी सरकार द्वारा न्यायालयों के दुरुपयोग का षड्यंत्र उजागर हुआ है। इन फैसलों से इंडिया गठबंधन को काफी लाभ हुआ है और भाजपा का ग्राफ बहुत नीचे गया है।

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