मनरेगा को धीरे-धीरे खत्म कर रही सरकार

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27 अगस्त। देश के अलग-अलग राज्यों से मनरेगा के तहत काम कर रहे मजदूरों के जॉब कार्ड और उनके नाम लिस्ट से हटाए जाने की खबरें लगातार आ रही हैं।

ह्यूमेन राइट्स फोरम(HRF) और LIB टेक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) के तहत देश के सुदूर ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे लोगों के जॉब कार्ड और काम करने वाले मजदूरों के नामों में भारी कटौती की जा रही है।

आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम मनयाम जिले के गांवों में ह्यूमन राइट्स फोरम और LIB टेक की तीन सदस्यीय टीम ने मनरेगा से हटाए जा रहे जॉब कार्ड एवं नामों की जांच करने के लिए दौरा किया।

LIB टेक जोकि शोधकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक ग्रुप है, द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि आंध्र प्रदेश के साथ-साथ देश के अलग-अलग राज्यों में मनरेगा से मजदूरों के नाम भारी संख्या में हटाए जा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार अकेले आंध्र प्रदेश से वर्ष 2022 -23 के दौरान 77.9 लाख मजदूरों के जॉब कार्ड और नामों को निरस्त कर दिया गया है, जो कि मजदूरों की कुल संख्या 1.22 करोड़ का 59.6 % है।

गांवों के दौरे पर गई टीम के सदस्यों ने बताया कि हमने तीन गांवों के उन 30 मजदूरों से बात की जिनके नाम काम करने वालों की लिस्ट से हटा दिए गए है। उनके नाम मनरेगा के कामगारों की लिस्ट से हटाए जाने के पीछे का कारण ‘काम न करने की इच्छा’, ’व्यक्ति की मृत्यु’ और ‘पंचायत में उसका न पाया जाना’ बताया गया है। जबकि LIB टेक के सदस्यों ने मात्र 5 लोगों के मामले में इन कारणों को सच पाया, बाकी 25 लोगों के मामले में ये पूरी तरह से झूठ पाया गया।

चिंतालापाडु गांव के 29 वर्षीय मजदूर कोलक रंगाराव ने बताया कि “मेरा नाम भी लिस्ट से हटा दिया गया है। जब मैंने कारण पूछा तो बोला गया कि इस नाम के व्यक्ति की मृत्यु को चुकी है।”

आरिका चुक्कामा जो दूरबील गांव के रहने वाले हैं ने बताया कि उनको काम की बहुत जरूरत है, लेकिन उनका नाम भी लिस्ट से हटा दिया गया है, और बोला गया कि ये व्यक्ति अब मनरेगा के तहत काम नहीं करना चाहता।

रिपोर्ट बताती है कि जब उन्होंने मजदूरों और मनरेगा पर्यवेक्षकों से इस मसले पर बात की तो पता चला कि नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर(NIC) जोकि केंद्र सरकार के डाटा बेस को संभालती हैं, ने जब से आधार बेस्ड पेमेंट शुरू किया है तब से लगातार नाम हटाए जाने की घटनाएं बढ़ गई है।

दौरे पर गए टीम के सदस्यों का कहना है कि नेशनल पेमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया(NPCI) की मैपिंग मजदूरों से ये अपेक्षा रखती है कि उनके राशन कार्ड, जॉब कार्ड और आधार कार्ड के सारे डिटेल्स आपस में मैच करते हों।

आदिवासी इलाके जहाँ बैंक और आधार सेंटर की सर्विस बहुत अच्छी नहीं है, वहां मजदूरों के डिटेल्स में थोड़ी भी चूक उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती है। राशन, आधार और जॉब कार्ड की सही जानकारी के लिए उन्हें लगातार बैंक और आधार सेंटर के चक्कर काटने पड़ते हैं।

मनरेगा पदाधिकारियों का काम है कि वो मजदूरों के जॉब कार्ड और बैंक के साथ NPCI मैपिंग में उनकी मदद करें।
लेकिन सही प्रशिक्षण की कमी और सख्त समय सीमा की वजह से मजदूरों के नाम लिस्ट से हटा दिए जा रहे हैं।

नतीजतन मनरेगा के तहत उनके काम का अधिकार उनसे छीना जा रहा है। कई मजदूरों को उनकी मजदूरी भी नहीं मिल रही है।

सदस्यों का कहना है कि “हम मनरेगा जैसी योजना को धीरे-धीरे खत्म होते देख रहे हैं। ऐसे में मजदूरों के लिए डिजिटलाइजेशन के नाम पर एक भूलभुलैया बना दिया गया है। समाज के आखिरी पायदान पर खड़े जरूरतमंदों के काम के अधिकार का केंद्र सरकार हनन कर रही है। आदिवासी इलाकों में इसका और ज्यादा असर देखने को मिल रहा है, जहाँ इंफ्रास्ट्रकचर की कमी और तकनीकी जानकारी का अभाव और बुरे हालात बना दे रही है।”

# रघु (HRF), अनुराधा (HRF), किशोर – (LIB टेक) की
प्रेस रिलीज के आधार पर

# workerunity. com में 21 अगस्त 23 को प्रकाशित अभिनव कुमार की रिपोर्ट; साभार

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