कोटा में छात्रों के खुदकुशी करने की घटनाएं बढ़ रही हैं, इसके लिए जिम्मेवार कौन है?

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6 सितंबर। कोटा (राजस्थान) अपने कोचिंग संस्थानों के लिए प्रसिद्ध है जहां पूरे उत्तर और पूरबी भारत के कस्बों, शहरों से इंजीनियरिंग और मेडिकल में प्रवेश के लिए कोचिंग करने मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे हजारों की संख्या में हर साल आते हैं। पिछले कुछ सालों से यहां से लगातार छात्रों के आत्महत्या करने की खबरें भी आती रही हैं। अधिकारी और राजनेता इन दुखद घटनाओं की जिम्मेवारी मृतक छात्रों और उनके अभिभावकों पर डालकर अपना पल्ला झाड़ ले रहे हैं। क्या इन आत्महत्याओं का नीतियों और सिस्टम से कोई संबंध नहीं है? हमारे अति शिक्षित प्रधानमंत्री ने तो Exam Warriors नामक एक किताब लिखकर तनाव न लेने की सलाह भी दे डाली। लेकिन हमें इस समस्या के मूल में जाने के लिए शहरी मध्यवर्ग के उन अभिभावकों की मानसिकता को समझना होगा (जिसमें मेरे और आपके जैसे अभिभावक भी शामिल हैं) कि यदि बच्चे का दाखिला किसी मेडिकल कालेज या अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में नहीं हुआ तो वह 10,000 रुपया प्रतिमाह कमाने लायक भी नहीं होगा। फिर सारी जिंदगी माँ-बाप पर बोझ बनेगा और उनके बुढ़ापे को नर्क बना देगा।

पिछले दो दशकों में हमारे देश में रोजगार और जीविकोपार्जन के अवसर इतने कम हुए हैं और लगातार कम होते जा रहे हैं कि नौजवानों, किसानों और छोटे व्यापारियों में आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और बढ़ेंगी। ये सच है कि समय पर मनोवैज्ञानिक सलाह और मनोचिकित्सा उपलब्ध कराने से बहुत सारी जानें बच जाएंगी लेकिन इस बाबत भी समाज में चेतना और सुविधा नगण्य के बराबर है।

ऐसी स्थिति में जब एक सरकारी अफसर या सत्ताधारी दल का नेता, जिसने भ्रष्टाचार के जरिए सैकड़ों करोड़ जमा कर अपने परिवारजनों का भविष्य सुरक्षित कर लिया है, ज्ञान देता है तो गुस्से के साथ घिन भी आती है। हमें देश के सभी नागरिकों के जीवनयापन के लिए सम्मानजनक रोजगार के लिए लड़ना होगा। लोकतंत्र और संविधान हमें यह अधिकार देता है जिसे लागू करवाना सुधी और जानकार नागरिकों का कर्तव्य है वर्ना आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।

– भारत भूषण चौधरी

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