जी-20 के नई दिल्ली शिखर सम्मेलन से क्या हासिल हुआ?

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— प्रवीण मल्होत्रा —

भारत की मेजबानी में नईदिल्ली में आयोजित G-20 समिट (9-10 सितंबर 2023) की चार बड़ी उपलब्धियां रही हैं :

1. यूक्रेन युद्ध के संबंध में रूस का नाम लिये बिना उसके शांतिपूर्ण हल के लिए आम सहमति बनना तथा यूक्रेन युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के प्रयास को घोषणापत्र में, जिसमें रूस और चीन भी शामिल हैं, पारित कर शामिल किया जाना। सर्वानुमति से स्वीकार किये गए दिल्ली घोषणापत्र में क्षेत्रीय अखंडता और सम्प्रभुता सहित अंतरराष्ट्रीय कानूनों को बनाये रखने का आह्वान किया गया और यूक्रेन में शांति का माहौल कायम करने की वकालत की गई। “दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लेरेशन” में स्पष्ट रूप से कहा गया कि आज का युग युद्ध का नहीं है तथा परमाणु युद्ध की धमकी देना अस्वीकार्य है।

सर्वानुमति से स्वीकार किये गए दिल्ली डिक्लेरेशन के लिए भारत के विदेशमंत्री एस. जयशंकर और शेरपा अमिताभ कांत को निश्चितरूप से पूर्ण श्रेय मिलना चाहिए कि उन्होंने घोषणापत्र की शब्दावली को इतना नरम बना दिया कि उस पर रूस और चीन को भी आपत्ति करने का अवसर नहीं मिला और अमेरिका सहित रूस विरोधी यूरोपीय लॉबी की बात भी घोषणापत्र में शामिल हो गयी यद्यपि यूरोपीय लॉबी को इस मुद्दे पर बाली (इंडोनेशिया) समिट की दृष्टि से एक कदम पीछे हटना पड़ा है। बाली में यूरोपीय लॉबी यूक्रेन युद्ध के लिए रूस को आक्रमणकारी घोषित कर उसकी निंदा करना चाहती थी। जिसे रूस और चीन किसी भी हालत में स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। इस कारण बाली में साझा घोषणापत्र पारित नहीं हो पाया था।

2. सम्मेलन की दूसरी बड़ी उपलब्धि यह है कि भारत से मध्य पूर्व होकर यूरोप तक एक आर्थिक गलियारे के निर्माण पर सहमति बनी है। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प बताया जा रहा है। लेकिन इस कॉरिडोर के निर्माण पर कितना खर्च आएगा और उसे कौन कौन से राष्ट्र वहन करेंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है।

3. समिट की तीसरी बड़ी उपलब्धि यह है G-20 के सदस्य राष्ट्रों में अब अफ्रीकी यूनियन को भी शामिल कर लिया गया है। यूरोपियन यूनियन के बाद यह दूसरा संगठन है जिसे G-20 में शामिल किया गया है। अफ्रीकी यूनियन के सदस्य राष्ट्रों की संख्या 55 है। अफ्रीकी यूनियन के शामिल होने के बाद अब इस ग्रुप का नाम G-21 हो जाएगा। यानी अगले समिट में, जो कि ब्राज़ील में होना है, अफ्रीकी यूनियन भी सदस्य के रूप में भागीदारी करेगा।

4. इस सम्मेलन की चौथी और अंतिम बड़ी उपलब्धि भारत और अमेरिका के बीच कई सैन्य और तकनीकी सहयोग के समझौतों पर सहमति बनना है। यद्यपि यह प्रक्रिया पहले से ही चल रही थी लेकिन G-20 समिट के दौरान इसे अंतिम रूप दिया गया है।

लेकिन इस समिट के कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं :

# G-20 एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन था तथा इसमें लगभग 29 (आमंत्रित राष्ट्रों समेत) राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया। लेकिन पूरे राजधानी क्षेत्र में और सम्मेलन स्थल पर सिर्फ मेजबान देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के ही पोस्टर और बैनर लगाए गए। पूरी दिल्ली को एक प्रकार से मोदी जी के पोस्टरों और होर्डिंग्स से पाट दिया गया। जबकि मेहमान राष्ट्राध्यक्षों/प्रधानमंत्रियों के पोस्टर भी लगाए जाना चाहिए थे। हमारी ‘अतिथि देवो भव’ की सनातन परंपरा रही है। इस परंपरा का पालन नहीं करने से गलत संदेश गया है। विशेषकर विदेशी मीडिया ने इसपर काफी टीका-टिप्पणी की है।

# अमेरिका के प्रेसिडेंट जो बाइडेन अपने ग्रुप के साथ आए पत्रकारों के सवालों के जवाब देना चाहते थे। लेकिन भारत सरकार ने इस पत्रकार वार्ता के लिए सहमति नहीं दी। राष्ट्रपति की प्रेस सेक्रेटरी ने इसके लिए बहुत प्रयास किये। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अपने भारतीय समकक्ष अजित डोभाल से तथा शेरपा अमिताभ कांत से भी चर्चा कर अनुरोध किया। लेकिन उनके अनुरोध को भी स्वीकार नहीं किया गया। अंत में निराश होकर राष्ट्रपति की प्रेस सेक्रेटरी को यह कहना पड़ा कि अब प्रेस वार्ता वियतनाम की राजधानी हनोई में होगी वही हमारे लिए सुविधाजनक होगी। इस पूरे घटनाक्रम से अंतराष्ट्रीय मीडिया में बहुत नकारात्मक संदेश गया और भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की शोचनीय स्थिति एक बार पुनः उजागर हो गयी।

# रही-सही कसर 9 सितंबर की रात को दिल्ली में हुई बारिश ने पूरी कर दी। करोड़ों रुपये खर्च कर सम्मेलन के लिए विशेषरूप से बनाये गए ‘भारत मंडपम’ में बारिश का पानी घुस गया और इससे तथाकथित विकास की पोल खुल गयी। निश्चितरूप से आयोजकों के लिए यह निराशाजनक और शर्मनाक घटना है।

# दिल्ली के एक बड़े हिस्से में जिसमें कनॉट प्लेस भी शामिल है, सुरक्षा के नाम पर अघोषित कर्फ्यू जैसी स्थिति निर्मित करना। समिट के दौरान सभी शासकीय कार्यालय, निजी कंपनियों के दफ्तर, बैंक, स्कूल इत्यादि बंद रखे गए तथा दिल्ली के नागरिकों को घरों में ही रहने की हिदायत दी गयी। इस तरह के निर्देश एक लोकतांत्रिक समाज की दृष्टि से उचित नहीं कहे जा सकते हैं। अधिक से अधिक सम्मेलन के आसपास के स्थल तथा जहां विशिष्ट अतिथि ठहराए गये थे, सुरक्षा के पुख्ता प्रबन्ध किये जा सकते थे, लेकिन कर्फ्यू जैसी स्थिति निर्मित करना तो गलत और अनावश्यक ही कहा जाएगा।

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