अर्थव्यवस्था के लिए बड़े खतरे की आहट

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— डॉ. लखन चौधरी —

भारतीय परिवारिक घरेलू बचत घटकर पिछले 50 साल के निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। परिवारों के लगातार बढ़ते घरेलू खर्चे, महंगाई, पारिवारिक देनदारियां इसकी मुख्य वजह हैं जो अर्थव्यवस्था की चुनौतियां बढ़ा रही हैं। इसका मतलब है कि लोग उपभोग एवं जीवनयापन के लिए ज्यादा कर्ज लेने लगे हैं। घरेलू सामान खरीद रहे हैं या जमीन, मकान, दुकान आदि खरीद रहे हैं। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद यह दूसरा मौका है, जब लोगों की वित्तीय देनदारियां इतनी तेजी से बढ़ीं और लगातार बढ़ रही हैं। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से यह चिंताजनक संकेत मिल रहा है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों की वित्तीय देनदारी तेजी से बढ़ी हैं। साल 2022-23 में यह तेजी से बढ़ते हुए जीडीपी के 5.8 फीसदी तक पहुंच गई है। इससे पहले साल 2006-07 में यह दर 6.7 फीसद थी। सरकार भलेे ही दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दम भरती रहे लेकिन हकीकत यह है कि भारतीय परिवारों की आर्थिक माली-हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है।

भारतीय परिवारों की शुद्ध बचत दर तेजी से घटी और लगातार घट रही है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार साल 2022-23 में देश की शुद्ध घरेलु बचत दर में भारी कमी दर्ज हुई है। एक साल पहले के मुकाबले इसमें 19 फीसदी कमी आई है। यही नहीं, भारतीयों पर कर्ज का बोझ भी तेजी से बढ़ा है। लोगों की आर्थिक देनदारियां तेजी से बढ़ रही हैं। मोदी सरकार इस बात को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसके कार्यकाल के दौरान भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, और देश के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 2014-15 के मुकाबले 2022-23 में दोगुनी होकर 1,72,000 रुपये हो चुकी है। इधर आरबीआई के ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारतीयों की घरेलू बचत में लगातार गिरावट आ रही है, और यह 50 सालों के निचले स्तर पर जा पहुंची है।

सितंबर में जारी रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार लोगों की घरेलू बचत दर 2020-21 में जीडीपी के 11.5 फीसद के मुकाबले में 2022-23 में घटकर 5.1 फीसद पर आ गई है। सरकार आए दिन दावा करती है कि भारत में कमाने वाले तेजी से बढ़ रहे हैं। लोगों की आमदनी तेजी से बढ़ रही है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि आम आदमी जो भी कमा रहा है, उसे खर्च कर रहा है, उड़ा रहा है, लिहाजा बचत लगातार घटती जा रही है। आज स्थिति यह है कि भारत की घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर आ गयी है।

रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022-23 के दौरान शुद्ध घरेलू बचत दर गिर कर 5.1 फीसदी रह गई है। जीडीपी के हिसाब से देखें तो इस साल भारत की शुद्ध बचत गिर कर 13.77 लाख करोड़ रुपये रह गई है। यह बीते 50 साल का न्यूनतम स्तर है। इससे एक साल पहले ही यह 7.2 फीसद थी। इससे यही कयास लगाए जा रहे हैं कि लोगों की आमदनी में भारी कमी आई है। साथ ही कोरोना काल के बाद लोगों की उपभोग वृत्ति में भी बढ़ोतरी हुई है। लोग बचाने के बजाय खर्च ज्यादा करने लगे हैं।

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से एक चिंताजनक संकेत भी मिल रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों की वित्तीय देनदारी तेजी से बढ़ी है। साल 2022-23 में यह तेजी से बढ़ते हुए जीडीपी के 5.8 फीसदी तक पहुंच गई है, जबकि एक साल पहले यह महज 3.8 फीसद थी। इसका मतलब है कि लोग उपभोग के लिए ज्यादा कर्ज लेने लगे हैं। घरेलू सामान खरीद रहे हैं या जमीन, मकान, दुकान आदि खरीद रहे हैं। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद यह दूसरा मौका है जबकि लोगों की वित्तीय देनदारियां इतनी तेजी से बढ़ी हैं। इससे पहले साल 2006-07 में यह दर 6.7 फीसदी थी।

आरबीआई के अनुसार साल 2020-21 के मुकाबले 2022-23 के दौरान शुद्ध घरेलु संपत्ति में भारी गिरावट आई है। साल 2020-21 के दौरान शुद्ध घरेलू संपत्ति 22.8 लाख करोड़ रुपये की थी, जो कि साल 2021-22 में तेजी से घटते हुए 16.96 लाख करोड़ रुपये तक गिर गई है। साल 2022-23 में तो यह और घट कर 13.76 लाख करोड़ रुपये ही रह गई है। इसके उलट वित्तीय देनदारी या आर्थिक दायित्व की बात करें तो घरेलू कर्ज में बढ़ोतरी ही हो रही है। साल 2021-22 में यह जीडीपी के 36.9 फीसदी थी जो कि साल 2022-23 में बढ़ कर 37.6 फीसदी तक पहुंच गई है।

महॅंगाई ने डाला बचत पर डाका

भारतीय परिवारों की घरेलू बचत के 50 साल के निचले स्तर पर आने की मुख्य वजह महंगाई को माना जा रहा है। बीते दो साल से लगातार महंगाई में बढ़ोतरी देखने को मिली है। रिपोर्ट से साफ है कि कमरतोड़ महंगाई लोगों की बचत पर डाका डाल रहा है। रिपोर्ट पर गौर करें तो बचत घटने और कर्ज बढ़ने के पीछे बढ़ती महंगाई का बड़ा हाथ है। रिजर्व बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह अर्थव्यवस्था की तत्काल विकास क्षमता के बारे में चिंता पैदा करते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि निजी उपभोग से वृद्धि यानी ग्रोथ को मिलने वाला समर्थन अनुमान से कमज़ोर हो सकता है। सार यह है कि सरकार पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था का राग अलापती रही और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने के बारे में चुप रही तो स्थिति दिनोदिन खराब होती जाएगी। इसलिए अब समय रहते सरकार को सचेत होने की दरकार है।

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