— रणधीर गौतम —
प्रोफेसर आनंद कुमार जी ने प्रोफेसर रमेश तिवारी जी को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी लंबी जीवन यात्रा में कई लोगों को समाजशास्त्री बनाया, बौद्ध विचारों से परिचित कराया, तिब्बत का मित्र बनाया, और स्वयं अपने जीवन में लगातार एक शोधकर्ता बने रहे।
उन्होंने जो विरासत छोड़ी है, वह एक आदर्श नागरिक, समर्पित शिक्षक, प्रतिबद्ध समाजशास्त्री, अनुकरणीय समाजवादी, और प्रसन्नचित्त बौद्ध विमर्श के विद्वान के रूप में मूल्यवान है।
उन्हें दीर्घायु प्राप्त हुई, और इस जीवन यात्रा में उनकी जीवन संगिनी श्रीमती तिवारी का अभूतपूर्व सहयोग मिला। उनका जीवन ऐसा था कि वे लगातार बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों के सत्संग के लाभ से संपन्न होते रहे।
विद्यार्थी जीवन में, इंटर पास करने के बाद, वे नेपाल में जनतंत्र की लड़ाई के लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथ दिल्ली सत्याग्रह में शामिल हुए। वहीं, लोहिया जी ने उनका मार्गदर्शन किया और कहा कि आगे की पढ़ाई के लिए आपको आचार्य नरेंद्र देव के मार्गदर्शन का लाभ उठाना चाहिए, और इसके लिए आपको लखनऊ जाना चाहिए। लखनऊ आने के बाद, उनका जीवन पूरी तरह से विद्या साधना में समर्पित हो गया, और जीवन के आखिरी दिनों तक वे नेपाल से लेकर तिब्बत तक व्यापक एशिया के प्रति सजग रहे।
उन्होंने भारत-तिब्बत मैत्री संघ को केवल एक मार्गदर्शक के रूप में नहीं देखा, बल्कि हमें प्रशिक्षण भी दिया। उन्होंने लखनऊ में एक बड़ा राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया था, जिसे आज भी बहुत लोग याद करते हैं। वह सम्मेलन सबकी यादों का हिस्सा बना हुआ है।
जब बनारस में काशी विद्यापीठ में उत्तर प्रदेश के साथियों ने परम पावन दलाई लामा को आमंत्रित किया, तब रमेश जी ने हम सभी की ओर से अविस्मरणीय स्वागत भाषण दिया। जो भी उनसे मिलता था, वह उनकी विनम्रता, ज्ञान, और प्रेरणा से हमेशा प्रभावित होता था। वे अजातशत्रु थे। मैंने उन्हें 1962 से जाना है, जब वे बनारस में पढ़ने आए थे। वे हमारे मार्गदर्शक थे, लेकिन हमने उन्हें कभी किसी की निंदा करते हुए नहीं सुना। जब भी उनसे मिलने का अवसर मिला, हमें केवल ज्ञान, आदर्श, और प्रेरणा ही प्राप्त हुई।
इसके बाद, भारत-तिब्बत मैत्री संघ के कई साथियों ने अपनी-अपनी श्रद्धांजलि और प्रोफेसर रमेश चंद्र जी से जुड़ी स्मृतियाँ साझा कीं।
उसके बाद, डॉ. मनोज कुमार, जिन्हें विद्यार्थी जीवन में प्रोफेसर रमेश चंद्र जी का लगातार मार्गदर्शन मिलता रहा, ने श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें प्रो. रमेश तिवारी जी के साथ हिमालय संस्कृति बौद्ध विश्वकोष के निर्माण में संपादन कार्य करने का अवसर मिला। साथ ही, लेह-लद्दाख से बनारस और कालिम्पोंग, सिक्किम, सालुगाड़ा, और दार्जिलिंग की यात्रा करने का अवसर मिला, जिससे उन्हें समाज, भारत, और बौद्ध संस्कृति के बारे में बहुत सारी जानकारियाँ मिलीं और उन पर उन्होंने प्रो. तिवारी जी और प्रो. कृष्णनाथ जी के मार्गदर्शन में कार्य किया।
प्रो. तिवारी जी सरल स्वभाव के, मृदुभाषी, और सकारात्मक विचारों के व्यक्ति थे, जिसके कारण बौद्धिक के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन में भी काफी कुछ सीखने को मिला। मनोज कुमार जी ने कहा कि यह उनका सौभाग्य था कि प्रो. रमेश तिवारी जी ने उन्हें अपने कई कार्यों में सहयोगी बनाया और अपना मार्गदर्शन भी देते रहे। उन्होंने कहा कि इस शोक की घड़ी को सहन करने की शक्ति परमात्मा उन्हें, प्रो. तिवारी जी के परिवारों, और शुभचिंतकों को दे। उन्होंने उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
प्रो. विकास नारायण उपाध्याय जी ने बिहार को याद करते हुए प्रोफेसर रमेश चंद्र जी की समाजशास्त्रीय और राजनीतिक दृष्टि के बारे में बताया। लखनऊ में 2000 में आयोजित भारत-तिब्बत मैत्री संघ के सम्मेलन को याद करते हुए, प्रो. उपाध्याय जी ने प्रो. रमेश चंद्र जी के अथक प्रयासों का उल्लेख किया और बताया कि कैसे उन्होंने भारतीय सहयोग से तिब्बत मुक्ति संघर्ष को आगे बढ़ाने का कार्य किया।
उन्होंने प्रो. रमेश चंद्र जी की बौद्ध संस्कृति और धर्म के प्रति गहरी समझ का भी उल्लेख किया। इस संवेदना की घड़ी में, उनके परिवार को शोक सहने की शक्ति मिले।
चंद्रभूषण जी ने प्रो. रमेश चंद्र जी को याद करते हुए कहा कि हमने तिब्बत मुक्ति संघर्ष के एक समर्पित सिपाही को खो दिया है, जिसका हमें गहरा दुख है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें प्रो. रमेश चंद्र जी के आदर्शों और उनके दिखाए हुए रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए, और उनके अधूरे प्रयासों को पूरा करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।
प्रभात कुमार, बिहार ने भी प्रोफेसर रमेश चंद्र जी को याद किया। सुरेंद्र कुमार जी ने बताया कि प्रोफेसर रमेश चंद्र जी भारत-तिब्बत मैत्री संघ के एक महत्वपूर्ण स्तंभ थे। वे बौद्ध शास्त्र के अध्येता थे और साथ ही साथ सामाजिक कार्यों में पूरे समर्पण के साथ काम करते थे। भारत-तिब्बत मैत्री संघ को जब भी किसी भी तरह की मदद की जरूरत होती थी, तो वे हमेशा सहायता के लिए तत्पर रहते थे। उन्होंने यह भी कहा कि भारत-तिब्बत मैत्री संघ की यात्रा को आगे बढ़ाना और तिब्बत की आजादी की लड़ाई लड़ना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मुरकानी जी ने गहरा अफसोस जताया कि वे प्रोफेसर रमेश चंद्र जी से आखिरी बार मिल नहीं सके। उन्होंने प्रोफेसर रमेश चंद्र जी को याद करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने शरण जी के साथ मिलकर प्रोफेसर रमेश चंद्र जी के शोध कार्यों में महत्वपूर्ण मदद की थी।
श्री अजय श्रीवास्तव जी ने बताया कि किस तरह प्रोफेसर रमेश चंद्र जी ने श्री कुमार स्वामी फाउंडेशन के निर्माण में, जो प्रोफेसर एक शरण जी के सहयोग से स्थापित किया गया था, अहम भूमिका निभाई। उन्होंने यह भी बताया कि प्रोफेसर रमेश चंद्र जी ने प्रोफेसर एक शरण जी की पुस्तकों के संपादन में बड़ी भूमिका निभाई। बाद में सारनाथ इंस्टिट्यूट से जुड़कर उन्होंने जो मार्गदर्शन दिया, वह भी अभूतपूर्व था।
श्रीमती चारु नेनतानी ने प्रोफेसर रमेश चंद्र जी को याद करते हुए बचपन की यादों को साझा किया। उन्होंने बताया कि प्रोफेसर जी को दुनिया की हर चीज की गहरी जानकारी थी और वे एक ज्ञानवान व्यक्ति थे।
डॉ. आनंद प्रकाश तिवारी जी ने प्रोफेसर रमेश चंद्र जी के बौद्ध दर्शन, समाजशास्त्रीय, और समाजवादी विचारों को आगे बढ़ाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्हें याद किया।
इस सभा में प्रोफेसर रमेश चंद्र जी के पुत्र मनीषी चंद्र तिवारी, उनकी पुत्रवधु श्रीमती माधुरी तिवारी, जापान से मोरकमा जी, डॉ. आनंद प्रकाश जी, एस. के. पांडे, दिवाकर चौधरी, शैलजा, संध्या सिंह, ओम तिवारी, रणधीर गौतम, श्रीकुमार अजय जी, मध्यप्रदेश से श्री अजय खरे, एडवोकेट श्री अशोक कुमार, जबलपुर से ब्रजेश पाठक एवं गीता पाठक, सागर से एम. डी. त्रिपाठी, अम्बेडकर भवन भोपाल से श्री पाटलि, गांधी भवन भोपाल से श्री नामदेव जी, गुजरात से संदीप ज्योतिकर, महाराष्ट्र से अमृत बंसोड एवं सचिन रामटेके, राजस्थान से रेशम बाला, छत्तीसगढ़ से श्री राकेश द्विवेदी, राजीव मोहन, वीरकानी जी और अन्य साथियों ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की।