महात्मा गांधी और फिलिस्तीन

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Mahatma Gandhi and Palestine

— कुमार कलानंद मणी —

ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को फिर से यहूदियों का घर बनाने का आंदोलन करने वाले यहूदीवादियों (जिआनिस्टो) से वादे कर रखे हैं। स्वभावत: यहूदीवादी इस स्थान से एक पवित्र भावना से बंधे हुए हैं। कहते हैं कि जबतक फिलीस्तीन पर यहूदियों का प्रभुत्व नहीं हो जाता तब तक वे बेघरबार, खानाबदोश ही बने रहेंगे।

मुझे तो कुल इतना ही कहना है कि छल-कपट से और नैतिकता के बंधनों को तोड़कर फिलिस्तीन यहूदियों के हाथों में नहीं दिया जा सकता।

फिलिस्तीन यहूदियों का तीर्थ स्थल है इसलिए उनके लिए यह एक ऐसी भावना की चीज है जिसका आदर करना चाहिए और अगर मुसलमान आदर्शवादी यहूदियों को उतनी ही स्वतंत्रता से पूजन आदि नहीं करने देते, जितने स्वतंत्रता से स्वयं करते हैं तो यहूदियों का शिकायत करना उचित होगा।

इसलिए नैतिकता या युद्ध के किसी भी नियम के अनुसार इस युद्ध के परिणाम स्वरुप फिलिस्तीन यहूदियों को नहीं सौंपा जा सकता। या तो यहूदीवादियों को फिलिस्तीन के संबंध में अपने आदर्श में परिवर्तन करना चाहिए या अगर यहूदीधर्म में युद्ध से किसी सवाल का निर्णय करने की छूट हो तो उन्हें मुसलमान के विरुद्ध ‘धर्मयुद्ध’ छेड़ना चाहिए जिसमें उन्हें ईसाइयों का समर्थन प्राप्त होगा। लेकिन आशा यही करनी चाहिए कि विश्व जनमत का जो रुख है उसके कारण धर्मयुद्ध एक असंभव बात बन जाएगी और धार्मिक सवालों तथा मतभेदों का समाधान अधिकाधिक शांतिपूर्ण ढंग से तथा कठोरतम नैतिक मान्यताओं का आधार पर होने लगेगा । लेकिन वह शुभ दिन आए या ना आए, यह बात दिन के प्रकाश के समान स्पष्ट है कि अगर खिलाफत के सवाल का न्यायसम्मत निपटारा होता है तो जजीरत -उल -अरब को खलीफा की धार्मिक प्रभुसत्ता के अधीन पूरी तरह से मुसलमान के नियंत्रण में ही देना होगा

स्त्रोत: संपूर्ण गांधी वांग्मय, खंड: १९, २३ फरवरी १९२१

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