भारतीय मूल की इतिहासकार शैलजा पाइक (Shailaja Paik) ने इतिहास रच दिया है. प्रोफेसर शैलजा पाइक को मैकआर्थर फाउंडेशन ने “जीनियस ग्रांट” से नवाजा है. इसके तहत अध्ययन करने के लिए उन्हें 800,000 डॉलर (लगभग 6.5 करोड़ रुपये) की राशि मिलेगी. आधुनिक भारत में दलित अध्ययन, जेंडर और यौनिकता पर अपने काम के लिए मशहूर प्रोफेसर शैलजा पाइक मैकआर्थर फेलोशिप हासिल करने वाली पहली दलित हैं. शैलजा सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. वह दलित महिलाओं पर रिसर्च कर चुकी हैं और कई किताबें भी लिख चुकी हैं.
मैकआर्थर फाउंडेशन का “जीनियस ग्रांट” हर साल शिक्षा, विज्ञान, कला जैसे क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने या प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है. प्रोफेसर शैलजा पाइक (Shailaja Paik) के महाराष्ट्र के येरवड़ा में एक स्लम से लेकर सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद तक पहुंचने की कहानी दिलचस्प है. प्रोफेसर शैलजा पाइक का परिवार मूल रूप से महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का रहने वाला है. 1990 के आसपास वहां से पलायन कर पुणे आ गया, क्योंकि गांव में उन्हें जातिगत भेदभाव झेलना पड़ा था.
एक इंटरव्यू में शैलजा पाइक (Shailaja Paik) अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि एक बार जब वह अपनी दादी के साथ एक ऊंची जाति के परिवार से मिलने गईं तो उन्हें जमीन पर बैठने को कहा गया और मिट्टी के कप में चाय दी गई. जबकि ऊंची जाति की महिला कुर्सी पर बैठी थी. इससे उन्होंने अपमानित महसूस किया.
शैलजा पाइक का परिवार पुणे के येरवड़ा आ गया और झुग्गी बस्ती में 20 फिट के कमरे हने लगा. प्रोफेसर पाइक यहीं तीन बहनों के साथ पली-बढ़ीं. शैलजा पाइक ने साल 1994 में पुणे की सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी से बीए किया था और उसके बाद 1996 में एमए की डिग्री हासिल की थी. फिर 2007 में उन्होंने वारविक यूनिवर्सिटी से पीएचडी भी की और उसके बाद 2005 में वह एमोरी यूनिवर्सिटी से फेलोशिप पर अमेरिका चली गईं और कॉलेजों में पढ़ाना शुरू किया. उन्होंने यहां के यूनियन कॉलेज में साल 2008 से 2010 तक इतिहास की विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम किया और उसके बाद 2012 से 2013 तक येल यूनिवर्सिटी में भी विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में किया. फिलहाल वह सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में रिसर्च प्रोफेसर के तौर पर काम कर रही हैं.
उनकी किताब ‘दलित वूमेन्स एजुकेशन इन मॉडर्न इंडिया: डबल डिस्क्रिमिनेशन’ खासी चर्चित रही है. इसमें महाराष्ट्र में दलित महिलाओं के संघर्ष का विस्तार से जिक्र है. इसके अलावा vulgarity of caste भी खासी चर्चित किताब है.