— डॉ .सुरेश खैरनार —
आज जयप्रकाश नारायण जी को हमारे बीच से जानेको लेकर 46 साल हो रहे हैं ! वे भारत की आजादी के आंदोलन मे जान की बाजी लगाने वाले लोगों में से एक थे ! वैसेही समाजवादी पार्टी के संस्थापकों में से एक थे ! और सर्वोदय आन्दोलन में आचार्य विनोबा भावे जी के बाद दूसरे स्थान पर रहे हैं !
77 साल के जीवन में के शूरू के 20-25 साल, अपनी शिक्षाके अलावा अन्य 50-55 साल के जीवन के हर एक क्षण, भारत की विभिन्न समस्याओ के समाधान की खोज और विभिन्न प्रयोग करने मे गये हैं ! उसमें का 1947 तक याने 20 से 25 साल स्वतंत्रता आंदोलन, उसके बाद समाजवादी पार्टी के लिए ! और कुछ मतभिन्नता के कारण सर्वोदय के काम मे लग गए थे ! उसमे भी सम्पूर्ण बिहार दान तक अपने अथक प्रयास से करा दिया था !
लेकिन इन सब उपलब्धियो के आलावा, भारत के जनतांत्रिक प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए, जनतांत्रिक समाज ( CFD ) का गठन कर के ! बाकायदा हमारी चुनाव प्रणालि से लेकर, सत्ताके विकेंद्रीकरण, तथा शिक्षा,ऊत्तरपूर्व के प्रदेशोकी समस्या से, कश्मीर की समस्या तक अपने अथक प्रयास से ! ऊन सब पर उपाय खोजनेमे सतत प्रयास करते रहे ! उसपर उन विषयों के विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श करने का काम करते रहे हैं ! और मेरा देश के इन दोनों क्षेत्रों में जेपिकी प्रेरणा से, उनके मृत्यु के बाद लगातार संम्पर्क जारी है ! और दोनो जगह के लोग कहते हैं, “कि जेपीजी भारत की भुमिसे आखिरी नेता थे !
जिन्हे हमारे दुख-दर्द के बारे में कुछ लेना देना था ! लेकिन ऊनके जानेके बाद हम अपने आप को बहुत ही असहाय महसूस करते हैं ! और वर्तमान समय में मणिपुर की स्थिति को देखते हुए जयप्रकाश नारायण की याद और बरबस आ रही है ! लगता है कि वर्तमान सरकारने तय कर लिया है कि मणिपुर के लोगों ने आपस में ही गृहयुद्ध करते हुए खत्म हो जाने के लिए ही मणिपुर को जलता हुआ छोड रखा है ! कोई पत्र नहीं जा सकते हैं और कोई बड़ी मुश्किल से गया भी तो उसको मणिपुर को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जा रहा है या उसके ऊपर सरकार मामले दर्ज कर रही है ! काश आज जेपी होते !
और सबसे बड़ी बात महात्मा गाँधीजीके जैसा किसिभी सत्ता के पद पर ना जाते हुए ! आचार्य जावडेकर और विनोबा जी की कल्पनाके आचार्य, जो हमारे देश तथा समाज को तटस्थता से सोच विचार कर उचित मार्गदर्शन करें ! जयप्रकाश नारायण जी उस कडिके आखिरी आचार्य हो गये हैं ! 1977 के चुनाव के बाद किसी की भी रोक – टोक नही थी वह प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति किसी भी पदपर गए होते तो कौन रोक सकता था ? लेकिन जब कम उम्र के रहे हैं तब जवाहरलाल नेहरू ने खुद ही कहा था कि मेरे बाद आपको ही इस देश की बागडोर सम्हालनी है ! लेकिन जेपी को रत्तीभर का भी मोह नहीं हुआ था ! उन्होंने सुनकर अनदेखी की और 1977 की जनता पार्टी की स्थापना से लेकर उसे बहुमत से चुनकर लाने के लिए उन्होंने अपने बीघडी हुई तबीयत की परवाह किए बगैर चुनाव प्रचार किया है ! और इंदिरा गाँधी तथा संजय गांधी तक को हराकर कांग्रेस के इतिहास में पहली बार कांग्रेस के लोकसभा में सव्वा सौ के आसपास सदस्य चुनकर आए थे और आजादी के बाद पहली बार दिल्ली के तख्तापलट करके गैरकांग्रेसी सरकार को सत्ताधारी बनाया है !
लेकिन जयप्रकाश नारायण भले ही राजनीति में सक्रिय रहे थे ! लेकिन काया – मन – वचन से संत के जैसे निर्मोही थे ! वह सत्ता से हमेशा दूर रहे और आचार्य की भूमिका में सरकारों को मार्गदर्शन करते रहें ! बिहार आंदोलन के दो साल पूर्व बंगला देश मुक्ति संघर्ष की भूमिका को लेकर भारत सरकार की तरफ से विश्व के विभिन्न देशों में उन्हें भेजा गया है कि बंगला देश का पाकिस्तान से अलग होना कैसा न्यायसंगत है ! लेकिन श्रीमती इंदिरा गाँधी दो साल बाद भूल कर उन्हें सीआई ए के दलाल आरोप लगाया है ! क्योंकि 1974-75 का आंदोलन की वजह से इंदिरा गाँधी ने अपना संतुलन खो दिया था ! जैसे अभी वर्तमान प्रधानमंत्री 1975 मे की इंदिरा गांधी के जैसे ही विरोधी दलों से लेकर पत्रकारों के साथ वैसा ही बर्ताव कर रहे हैं ! इंदिरा गाँधी भी अपने और सरकार के उपर हो रही आलोचना को बर्दाश्त नहीं करने की वजह से 25 जून 1975 में आपातकाल की घोषणा कर दी थी !
लेकिन नरेंद्र मोदी उनसे ज्यादा शातिर होने की वजह से उन्होंने न ही आपातकाल की घोषणा की और न ही सेंसरशिप लगाने की उसके बगैर ही वह मिडिया की नकेल कसने में और ईडी, सीबीआई, आईबी जैसे जांच एजेंसियों के द्वारा विरोधी लोगों के उपर बदले की भावना से काम कर रहे हैं ! और जैसा इंदिरा गाँधी ने जेपी को सीआईए के एजेंट करार दिया था वैसे ही किसी को चिन या पाकिस्तानी या राष्ट्रद्रोही करार देते हुए उनपर कारवाई की जा रही है ! इसलिए 25 जून 1975 की आधी रात को सोते हुए दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में जयप्रकाश नारायण को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार करते हुए कहा कि श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी है और आपके अलावा देश के सभी विरोधी लोगों को जेलों में बंद करने का निर्णय लिया है ! तब जेपी के मुंह से अनायास निकल गया कि “विनाशकाले विपरीत बुद्धी”! आज उनके पुण्यस्मरण के बहाने मुझे यह सब कुछ याद आ रहा है !
उनके जाने के 46 सालों के दौरान हमारे देश के दुसरा आचार्य नहीं दिख रहा है ! और आज जो विलक्षण शून्यता का आलम जारी है ! और उसीका परिणाम वर्तमान समय में केंद्र से लेकर विभिन्न राज्यो मे जो अराजक जैसी स्थिति बनी हुई है ! यह सब उसिका कारण है !
वह आजहिके दिन 46 साल पहले जेपी हमें छोड़कर गये हैं ! और बिल्कुल उनके पश्चात घोर सांप्रदाईक राजनितिकी शुरुआत हुई है ! हालांकि बहुत लोग उन्हिके ऊपर यह आरोप लगाते हैं ! कि इन घोर सांप्रदाईक लोगों को उन्होने अपने बिहार आंदोलन के दौरान राजनितिक संजीवनी देनेका काम किया है ! अन्यथा गाँधी हत्या के बाद यह सभी हिंदूत्ववादी मुह छुपाकर चलनेवाले लोग ! आज मुहजोर होकर पूरे देश को सांप्रदायिक राजनितिके आगमे डाल दिया है !
कुछ हद तक यह बात सही भी है ! लेकिन आधी सही है ! क्योकिं 1974-75 के दौरान कॉ. श्रीपाद अमृत डांगेजी और उनके साथियों ने जिस तरह से इस आंदोलन के खिलाफ काम किया ! बिल्कुल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में भी, कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों ने अंग्रेजोका साथ दिया था ! और स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण दौर में दगाबाजी की थी ! और बादमे एतिहासिक भूल की थी ! यह कन्फेशन किया है !
और उसी तरह 1962 के चीन युद्घ के समय, कुछ कम्युनिस्ट पार्टी के लोग चीनी आक्रमण को भारत की मुक्ति का आक्रमण लग रहा था ! और उसी समय सी पी एम और सी पी आई दो भागों में विभाजित हो गई थी ! अब चीन जैसे साम्राज्यवादी देश को ! भारतीय भूमि पर रहनेवाले कीसी भी व्यक्ति को भारतीय बोलेंगे ?
और वही भूल तीसरी बार कॉम्रेड श्रीपाद अमृत डांगे ने श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के, वन वुमन पार्टी के तानाशाही के दौर में ! और संजय गांधी जैसा बिगडेल लडकेका, किसिभी संविधानीक अधिकार ना रहते ! हुए वह जिस तरह से, केंद्र सरकार से लेकर, राज्य सरकारों के, काममे दखलंदाजी करता था ! वह अत्यंत गैरकानूनी तरीके से, और संविधान की परवाह किए बिना !
उपर से बेतरतीब भ्रष्टाचार, चरम सीमा पर महंगाई, और बेरोजगार युवकों के अंदर गुस्सा बढते जा रहा था ! जिसे जेपिने अपना नेतृत्व प्रदान करने के बाद ! कई शर्तो के साथ, उनके द्वारा शूरू किये गये, आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करने के लिए, तैयार हुये ! और उसके पहले उन्होंने श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को प्रिय इंदू सम्बोधन करते हुए दर्जनो चिठ्ठीया लिखी है ! और हमारे देश में क्या चल रहा है ? इसकी तरफ ध्यान खींचा है ! लेकिन मेड्म ने उनके एक भी खत को एक्नोलेज तक नहीं किया ! और यह सब उनके पर्सनल स्टाफ़ के आई ए एस अफसर बिशन टंडन ने अपनी पुस्तक में लिखा है !
74-75 के आंदोलन को सीआईए के द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन बोलने की भूल करने की वजह से कॉम्रेड डांगे साहब को पार्टी से अलग कर के ! अलग पार्टी बनाने का फैसला किया है ! लेकिन उसके बावजूद कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ लोग आज भी जेपिके ऊपर दोषारोपण करते रहते हैं !
किसिभी जन आंदोलन में आप यह नहीं कह सकते ! कि फलना नहीं आयेगा और वलनाही आयेगा ! अगर जेपी आंदोलन मे भाग ना लेने की गलती कम्यूनिस्टो ने नहीं कि होती ! और उसमे श्यामील हुये होते ! तो क्या जनसंघ की हिम्मत हुई होती ? अपने आप वो बाहर रहे होते ! और जेपी आंदोलनमे शामिल होने के कारणही आज उन्हें जो राजनितिक उपलब्धी प्राप्त हुई होती सो अलग ! लेकिन पहले गलती करना फिर भुल हो गई कहनेवाले, कम्युनिस्ट आज मुझियम के पिस बन कर रह गये हैं ! इसका सबसे बड़ा कारण सतत गलत निर्णय लेने से आज पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए मौका दिया है !
कॉंग्रेस से भी अधिक तीखे तेवर आपात्काल में कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं का रहा है ! तथाकथित फासिस्ट संमेलन करते हुए ! और जेपिको गाली देते हुए, मैंने खुद ( 1975-76 ) देखा सुना है ! उल्टा उन्हिके साथ एक ही मंच पर उपस्थित कांग्रेस वाले लोग काफी ठीक-ठाक बोलते थे ! और कुछ कांग्रेस के लोगों को मैने माडम इंन्दिराजी गलत कर रही है ! और जेपी के साथ डॉयलॉग करना चाहिए ! यह भुमिका लेते हुए देखा है !
और वह लोग बादमे आपात्काल में जेल भी गए हैं ! चंद्रशेखर,मोहन धारिया,कृष्ण कान्त,लक्ष्मी कान्तमा,और आखिर में जगजीवन राम,हेमवती नंदन बहुगुणा,और उनके भी बाद यशवंतराव चह्वाण इत्यादि लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों को बार-बार जेपिको गालियाँ देते हुए देखता हूँ ! और इसी मुद्दे पर कम्युनिस्ट पार्टी में, फिर से एक बार फुट होकर, जिस आदमी ने कानपुर में 1925 में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी ! उस श्रीपाद अमृत डांगे को पार्टी से निकाले जाने का फैसला ! मेजॉरीटी कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों को लेना पड़ा ! और श्रीपाद अमृत डांगे गर्दिश की जींदगी में इस दुनिया से कब चल बसे इसका तक ढंग से पता नही चलता है !
2017 के इसी अक्तूबर महीनेमे मुझे बिहार प्रदेश कम्युनिस्ट पार्टी ने, अक्तूबर क्रांति के 100 साल पूरे होने पर एक वक्ता के रूप में पटना बुलाया था ! और ऊसी सभा में एक कम्युनिस्ट पार्टी के एक विद्वान ने जिनका उस कार्यक्रम पत्रिकामे कही नाम नहीं था ! और नांहि कार्यक्रम संचालक ने उन्हे स्टेजपर बुलाया था ! लेकिन ओ जबरदस्ती आकर खुर्चि ना रहते हुए ! संचालक जब संचालन के लिए माईक पर खड़े थे ! तो यह महाशय उनकी खुर्चि पर जम गये थे ! और उन्होंने कहा कि “मुझे खैरनार साहब ने, बिहार के मेरे नेता जेपी बोलकर अपने भाषण कि शुरुआत की है ! इसलिये मै कुछ बोलना चाहता हूँ !”
और वो प्रोफेसर जेपी के बारे में काफी कुछ अनर्गल बोला था ! मै तो सिर्फ सभा की मर्यादा का पालन करने के लिए उनके द्वारा दिया गया भाषण को अनदेखा कर दिया ! अन्यथा मै आया था, रूस की अक्तूबर क्रांति के 100 साल पर बोलने ! और दूसरे दिन अखबारों में हमारे बीच की जुगलबंदी की खबर छपी होती !
आज 1974-75 से भी बदतर दौर से हमारा देश गुजर रहा है ! उस समय एक व्यक्ति की तानाशाही की बात थी ! आज एक केडर बेस पार्टी और उसके मातृसंघटनकी सिर्फ तानाशाही ही नहीं बल्कि आजसे 100 साल पहले के जर्मनी के और इटली जैसा फासिस्ट दौर से गुजर रहे हैं ! 74-75 से भी बदतर हमारी सभी संवैधानिक संस्थाये जिसमे सर्व प्रथम मीडिया, न्यायालय, कार्यपालिका और रिजर्व बैक, सी बी आई, ई डी, आई बी, पुलिस, पैरा मिलिटरी और मिलिटरी भी सभी दहशत में है ! और इसीलिये लोग अपने आप को बहुत ही असहाय महसूस कर रहे हैं ! और यह देश के स्वास्थ के लिए बहुत ही चिंता की बात है ! और इसिलिए आज जेपी के 46 वे पुण्य तिथि पर बरबस याद आ रही है ! कि आज अलख जगाने वाले आखिरी आचार्य हमारे बीच नहीं हैं !
और उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करनेका मतलब कोई भी कर्मकांड के बजाय 25 जून 1975 को उन्होने जो नारा दिया था ! “कि सिहासन खालि करो कि जनता आती है !” का नारा बुलंद करते हुए वर्तमान स्तिथी के खिलाफ सभी प्रगतिशील ताकतों को इकठ्ठा कर के बाकायदा रस्ते पर उतरकर आंदोलन करना यही सही श्रद्धांजली हो सकती ! किसान,मजदूर,विद्यार्थियो ने शुरुआत कर दी है ! अब आप और हम सभी ने उनको साथ देने हेतु उतरना यही जेपी के प्रती सही श्रद्धांजली होगी !
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