— अफ़लातून —
सपा के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लोकनायक जयप्रकाश को श्रद्धांजलि देने के लिए भाजपा शासन में दीवाल लांघनी पड़ी थी।अंग्रेजी राज में जेपी ने भी जेल की दीवाल फांदी थी।नीचे का किस्सा भाजपा के गठन के पहले का है।हाफ पैंटी तब भी थे- 1974 के पहले की बात है ,संभवतया 1969 की। पठानकोट में तरुण शान्ति सेना का प्रशिक्षण शिबिर हुआ था । जेपी मौजूद थे।शिबिर के बाद जेपी की आम सभा का प्रसंग है। ’लोकनायक’ बनने के पहले का।
कश्मीर, नागालैण्ड,तिब्बत जैसे मसलों पर जयप्रकाश के विचार, रवैया और कार्यक्रम काँग्रेस,जनसंघ या भाकपा से अलग होते थे। शेरे कश्मीर शेख अब्दुल्लह को नेहरू सरकार ने बरसों जेल में रखा था । विभाजन के तुरन्त बाद सरहद पार से हुए कबीलाई आक्रमण का मुकाबला करने तथा भारत में विलय का विरोध करने वाले जम्मू नरेश हरि सिंह के विरोध में नेशनल कॉन्फ्रेन्स की भूमिका सराहनीय थी। जिन दलों का जिक्र किया गया है वे सभी ’मजबूत-केन्द्र’ के पक्षधर रहे और हैं ।जयप्रकाश ने अपने सहयोगियों को शेरे कश्मीर से संवाद के लिए भेजा था।
जेपी की पहल पर नागालैण्ड शान्ति मिशन की स्थापना हुई और इस अ-सरकारी प्रयास से पहली बार युद्ध विराम हुआ।
तिब्बत की निर्वासित जनता के हकों के बारे में जेपी को चिन्ता थी। ’६२ के हमले में देश की हजारों वर्ग मील जमीन पर चीन के कब्जे का मामला संसद में लोहिया,मधु लिमये, किशन पटनायक उठाते थे । संसद के बाहर तिब्बती इन्सान की आत्मा का स्वर जेपी द्वारा मुखरित होता था ।
बहरहाल, पठानकोट की जनसभा में मु्ष्टिमेय गणवेश धारियों ने नारे लगाये, ’जयप्रकाश गद्दार है ’। लाहौर किले में दस दिन तक अंग्रेजो द्वारा जागा कर रखे गये अगस्त क्रान्ति के नायक जयप्रकाश ने अत्यन्र शान्त किन्तु दृढ़ आवाज में कहा , ’ जिस दिन जयप्रकाश गद्दार हो जाएगा,इस देश में कोई देश भक्त नहीं बचेगा ।’ जनता ने करतल ध्वनि से स्वागत किया । जेपी की आवाज फिर सुनाई दी , ’तालियाँ मत बजाइये’ । गणवेशधारियों ने माहौल देख कर धीरे से खिसक लेना बेहतर समझा