— ध्रुव शुक्ल —
वे कितने सुंदर बच्चे
छिपे हुए बंकर में
उनकी आंखों से ओझल
नीला आसमान
वे छिपे हुए हैं किससे बचकर
किससे बचा रहे हैं अपनी जान?
अभी वे कहां जानते
कैसे मिट जायेगा जीवन
जो अभी मिला है उनको
वे चले आ रहे
हमारे पीछे-पीछे
हमारी कोई अंगुली खोज रहे हैं
छूट रही फिर पकड़ रहे हैं
कई खिलौने उनके साथ
उनकी प्यारी बिल्ली
रखे हुए हैं उसे छिपाकर बड़े जतन से
वे नहीं जानते
कोई कैसे होता दूर वतन से
बिलख रहे हैं भूखे-प्यासे
लिपट-लिपट जाते हैं मां से
हो जाते हैं कभी रुआंसे
वे रोते-रोते हॅंसने लगते हैं
वे हॅंसते-हॅंसते रोने लगते हैं
वे किस दुनिया को पा कर
किस दुनिया को खोने लगते हैं?