— विनोद कोचर —
यह सच है कि आज़ादी के दौरान तिरंगा स्वीकार किया गया। लेकिन ध्वज के मुद्दे पर, आरएसएस अलग ही राग अलापता है दूसरों से बात-बात पर देश-प्रेम, संविधान प्रेम और तिरंगा प्रेम का प्रमाण मांगने वाले संघ ने खुद क्या कभी तिरंगे झण्डे को अपनाया? जब आज़ादी की लड़ाई के दौरान 26 जनवरी 1930 को तिरंगा झंडा फहराने का निर्णय लिया गया तब आरएसएस प्रमुख डॉ. हेडगेवार ने एक आदेश पत्र जारी कर तमाम शाखाओं पर भगवा झंडा फहराने का निर्देश दिया।
आरएसएस ने अपने अंग्रेज़ी पत्र ऑर्गनाइज़र में 14 अगस्त 1947 वाले अंक में लिखा-
“वे लोग जो किस्मत के दांव से सत्ता तक पहुंचे हैं वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगा थमा दें, लेकिन हिंदुओं द्वारा ना इसे कभी सम्मानित किया जा सकेगा और ना ही अपनाया जा सकेगा। तीन का आंकड़ा अपने आप में अशुभ है और एक ऐसा झंडा जिसमें तीन रंग हो वह बेहद खराब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुकसानदेह होगा।”
गोलवलकर ने अपने लेख में आगे कहा है-
“कौन कह सकता है कि यह एक शुद्ध तथा स्वस्थ राष्ट्रीय दृष्टिकोण है? यह तो केवल राजनीतिक, कामचलाऊ और तात्कालिक उपाय था। यह किसी राष्ट्रीय दृष्टिकोण अथवा राष्ट्रीय इतिहास तथा परंपरा पर आधारित किसी सत्य से प्रेरित नहीं था। वही ध्वज आज कुछ छोटे से परिवर्तनों के साथ राज्य ध्वज के रूप में अपना लिया गया है। हमारा राष्ट्र एक प्राचीन तथा महान राष्ट्र है जिसका गौरवशाली इतिहास है। तब क्या हमारा कोई अपना ध्वज नहीं था? क्या सहस्त्र वर्षों में हमारा कोई राष्ट्रीय चिन्ह नहीं था? निःसन्देह, वह था। तब हमारे दिमाग में यह शून्यतापूर्ण रिक्तता क्यों?”
(एम. एस. गोलवलकर, विचार नवनीत, पृष्ठ- 237)
यह तो गनीमत रही कि पिछले लोकसभा चुनावों के प्रचार अभियान के दौरान भाजपा रूपी अपने राजनीतिक मुखौटे के जरिये भारत के संविधान को आमूलचूल बदल देने के मंसूबे से ‘अबकी बार चार सौ पार’ का सपना दिखाकर, मतदाताओं को भरमाने की आरएसएस की साजिश को मतदाताओं ने न केवल विफल कर दिया बल्कि उसे 303 के पुराने रिकार्ड से भी नीचे गिराकर महज 240 सीटों के अल्पमत पर लाकर पटक दिया।
वर्ना न केवल राष्ट्रध्वज तिरंगे की जगह सनातनधर्मी भगवा ध्वज भारत का राष्ट्रध्वज बना दिया जाता अपितु स्वतंत्रता के लिए दी गई कुर्बानियों से हासिल धर्मनिरपेक्षता, समता, लोकतंत्र और स्वतंत्रता के सर्वोच्च मानवीय जीवन मूल्यों की भी हत्या हो गई होती।
इन संघियों की मतदाताओं से अपील तो यही थी कि इन्हें मतदाता मदद करें लेकिन मतदाताओं ने कह दिया कि चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिये!