२६ नवंबर १९४९ की संविधान की मूल प्रति पर कुछ चित्र अंकित हैं , इस पर संविधान सभा के अध्यक्ष और सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं । इसका विवरण १२ जनवरी १९९३ के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ था। ये चित्र राष्ट्र और लोकतंत्र के सम्बंध में संविधान सभा की अवधारणा को अभिव्यक्त करते हैं।
संविधान की इस प्रति [२६ नवंबर १९४९ को संविधान की मूल प्रति] के पहले पन्ने पर अशोक की त्रिमूर्ति का चित्र है। नीचे लिखा है- सत्यमेव जयते। दूसरे पन्ने पर मुअन जो दाड़ो वाले वृषभ का रेखांकन है। इसी प्रकार प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में एक रेखाचित्र है। कुल १८ चित्र हैं। आख़िर के ३ अध्याय हिमालय,मरुभूमि और समुद्र के रेखाचित्र से सज्जित हैं। तीसरे अध्याय में राम-लक्ष्मण लंका पर विजय के बाद सीता को मुक्त करा रहे हैं। चौथे अध्याय में कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हैं। पाँचवें में ध्यानी- बुद्ध का चित्र है। छटे अध्याय में तीर्थंकर महावीर का चित्र है। इसी क्रम में अशोक का बौद्ध धर्म का संदेश और प्रसार,नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमादित्य का दरबार, नटराज, स्वस्तिक, महाबलिपुरम, गंगावतरण, अकबर, मुग़ल शिल्प ,शिवाजी तथा गुरु गोबिंद सिंह के चित्र हैं। टीपू सुल्तान, महारानी लक्ष्मीबाई, तथा इसके आगे गांधी की दांडी यात्रा और नोआखली में महात्मागांधी का चित्र है। आगे सुभाष चंद्र बोस के साथ आज़ाद हिंद फ़ौज का रेखांकन है। ये सभी चित्र शान्तिनिकेतन के नंदलाल वसु और उनके साथियों के द्वारा रचित हैं ।
इसमें तनिक भी संशय नहीं है कि राष्ट्रीय दर्शन या राष्ट्रीय संस्कृति की जो अवधारणा या जो विचार शब्दों में कहने से रह गया था, संविधानसभा ने वह विचार इन चित्रों के द्वारा अभिव्यक्त किया था ।
संविधान के मुद्रण और प्रकाशन के समय इनकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए ,ताकि कोई अनर्गल व्याख्या न की जा सके।