इस अनित्य संसार में जीवन-मरण के कालचक्र से कोई बाहर नहीं है। लेकिन कुछ लोग अपने जीवनकाल में दूसरे लोगों का सहारा बन जाते हैं। उनका महाप्रस्थान असहनीय दुख देता है। विधिवेत्ता भाई रविकिरण जैन के देहांत की खबर से इलाहाबाद और उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश के नागरिक समाज में शोक फैल गया है।
उनका सार्वजनिक जीवन लोकतंत्र के संवर्धन के लिए समर्पित था। वह भारत को एक आदर्श लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने की पहल से जुड़े रहे। उनको देश की आजादी खतरे में फंसी लगती थी। इसलिए वह पूरी क्षमता से आज़ादी बचाओ आंदोलन से लेकर लोक स्वातंत्र्य संगठन और जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय मंच के साथ जुड़े रहे। जनहित याचिका दायर करने से लेकर न्याय के लिए संघर्षरत व्यक्तियों और संगठनों के कानूनी मोर्चे का संचालन करने तक उनके योगदान का दायरा लगातार विस्तृत होता गया।
लोक स्वातंत्र्य संगठन ने उन्हें अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। आजादी बचाओ आंदोलन के वह सलाहकार थे। बंधुआ मुक्ति मोर्चा से लेकर गांधी -विनोबा-जेपी विरासत बचाओ आंदोलन की बुनियाद में रविकिरण जी का मार्गदर्शन था। उनका सार्वजनिक जीवन १९६८-६९ में बुलंदशहर के एक कालेज के छात्रसंघ अध्यक्ष के पद पर समाजवादी युवजन सभा के उम्मीदवार के रुप में विजयी होने से शुरू हुआ था। इसका श्रेय वह समाजवादी नौजवान नेता सतपाल मलिक को देते हैं। फिर कानून की पढ़ाई पूरी करके इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे। जेपी आन्दोलन की आंधी आयी। इमरजेंसी लगी। जनता पार्टी का राज बना और बिखरा। कांग्रेस दुबारा सत्ता में आई और नया दौर शुरू हो गया। मंडल -कमंडल -भूमंडलीकरण के त्रिकोणीय दबाव में नये आंदोलन और संगठनों का उद्भव हुआ। जनतंत्र को नयी बुनियाद देने के लिए देशभर में एक नागरिक विमर्श उभरा। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद इसका केंद्र बना। इलाहाबाद में न्यायमूर्ति राम भूषण मेहरोत्रा, प्रोफेसर बनवारी लाल शर्मा और रविकिरण जैन की त्रिमूर्ति ने सरोकारी नागरिकों को नेतृत्व प्रदान किया ।
कोई सार्वजनिक कार्यक्रम बिना इनके योगदान के पूरा नहीं माना जाता था।उनका दरवाजा सबके लिए हमेशा खुला रहता था इसलिए हर छोटे-बड़े व्यक्ति को उनके सहयोग पर भरोसा था। यहां तक कि श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की प्रधानमंत्री बनने की कहानी का पहला अध्याय भी उनके घर को चुनाव कार्यालय बनाने से शुरू हुआ। लेकिन उन्होंने कभी सत्ता की राह नहीं पकड़ी। आत्मप्रचार नहीं किया। कुर्सी परिक्रमा से दूर रहे। उनका दायरा सर्वदलीय रहा और उनकी पहचान निर्दलीय हो चली।
इधर स्वास्थ्य की समस्या और गर्दन की चोट के कारण अदालती काम बंद कर दिया था। लेकिन सार्वजनिक जीवन से सरोकार बना रहा। जन-संवाद में फेसबुक और व्हाट्स एप के जरिए दैनिक योगदान करते थे। यात्रा में असमर्थ थे। फिर भी सघन संपर्क बनाए रखा। गांधी विचार पर हमले के खिलाफ मेधा पाटकर की पहल पर पिछले साल एक यात्रा राजघाट – दिल्ली से राजघाट -बनारस के लिए निकाली गई और इलाहाबाद में दो दिन का पड़ाव था। इलाहाबाद में दिनभर का नागरिक धरना प्रदर्शन किया गया और रवि किरण जी अस्वस्थता के बावजूद पूरे समय अभिभावक भाव से शामिल रहे। आज उनके निधन से इलाहाबाद की और देश की दशकों से जल रही मशाल एकाएक बुझ गई है। सादर नमन। विनम्र श्रद्धांजलि।