भागवत जी संघ के 100 साल पूरे होने के अवसर पर जल्दी में है!

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Mohan Bhagwat

— जागृति राही —

भागवत जी ने कहा कि उन्हें आजादी 21 जनवरी 24 को राम मन्दिर की स्थापना के दिन मिली है इसलिए वो 26 जनवरी को रिप्लेस कर के उसी दिन को जनता के बीच गणतंत्र दिवस से ज्यादा स्वीकार्यता दिलाना चाहते हैं. उनका बयान इसीलिए आया है. चलिए थोड़ा इनका इतिहास समझे देश प्रेम में डूबे हुए इस विचार का आजादी को झूठा कह कर नेहरू संघ की प्रचार मशीनरी के द्वारा गांधीजी और कांग्रेस को अक्सर पाकिस्तान बनाने भारत विभाजन मुसलमानों के प्रति पक्षपात का दोषी ठहराया जाता है l

सच ये है कि 1941-42 में श्यामाप्रसाद मुखर्जी की हिन्दू महासभा ने फ़ज़ल-उल-हक़ की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई गई थी. सफाई में उनके द्वारा कहा जाता है कि हक़ कृषक प्रजा पार्टी में थे मुस्लिम लीग में नहीं।

सच य़ह है कि फ़ज़ल-उल-हक़ वह व्यक्ति थे जिन्होंने 1940 में मुस्लिम लीग की लाहौर कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तान का प्रस्ताव रखा था। वायसराय की डिफेंस काउंसिल से निकलने के जिन्ना का आदेश न मानने पर उन्हें लीग से निकाला गया तो नई पार्टी बनाई लेकिन वो पूरी तरह विभाजन के पक्ष में रहे।

यानी सावरकर और मुखर्जी की पार्टी ने विभाजन का प्रस्ताव पेश करने वाले फ़ज़ल-उल-हक़ के साथ बंगाल प्रान्त में सरकार बनाई थी और उस दौरान दंगों के द्वारा विभाजन के लिए दबाव बनाया था कॉंग्रेस के नेताओं पर।

फिर किस मुंह से बात करते हैं अखंड भारत की? पाखंडी हैं क्योंकि सावरकर मुखर्जी गोलवलकर और उनके तमाम साथी हिन्दू मुस्लमान को दो अलग राष्ट्र मानने की विचारधारा को लेकर लगातार काम कर रहे थे, देश में मुस्लिम लीग की तर्ज पर ही उनसे भी पहले से. वो अलग धर्म संस्कृति वाले अंग्रेज़ी राज से लड़ाई में भी भारत की जनता की एकता के खिलाफ ही नहीं थे बल्कि अंग्रेजो की फुट डालो राज करो की नीति से सीख कर उसे ही लागू करने में देशमें तब से आज तक निरन्तर लगे हुए हैं.

यह भी बता दूँ कि जिनके साथ सरकार चलाई श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने वो फजलू हक बँटवारे के बाद पाकिस्तान में 5 साल पूर्वी पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल रहे और फिर मुख्यमंत्री। हिटलर और moosolini की यहूदी रक्त शुद्धता के मॉडल और तानाशाही सोच से उनकी सेना की कार्यप्रणाली से प्रभावित होकर ही संगठनों को बनाया और बच ऑफ thoghts लिखी गई जिसमें हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना स्थापित कर दी गईl जिसमें दूसरे धर्म के लोगों को दुश्मन माना गया था और हिन्दू एकता को जाति व्यवस्था के साथ साथ ही चलना था. य़ह कोई धर्म की सत्ता स्थापना का विश्वास नहीं था बल्कि साफ साफ लिखा गया है कि हिन्दुत्व एक राजनीतिक आर्थिक मॉडल है. जो केंद्रीकृत सत्ता में विश्वास रखता है.

सच य़ह है कि य़ह विचार अपने मूल् में सनातनी मूल्य के बिल्कुल खिलाफ है. संतो की वाणी के विरुद्ध है बल्कि तालिबानी है इसीलिए इनको फ़र्जी ढोंगी बाबाओं की जरूरत पड़ती है उनकी फौज बनानी पड़ी है जो भगवा पहन कर सत्ता की राजनीति करने का काम कर रहे हैं. सम्पत्ति पर क़ब्ज़ा करने वाले धर्म की स्थापना कैसे करेंगे . सनातनी धर्म तो त्याग सिखाता है न.

इसी विदेशी आयातित कट्टरपन से भरी वैचारिक राजनीतिक परम्परा को आगे बढ़ाने वाले मोहन भागवत ने वही कहा जो उनके दिल दिमाग में था क्योंकि हमारा संविधान उसमें भरोसा करने वाले भारतीय नागरिक उसके मूल्य सनातन धर्म की आध्यात्मिक बुनियाद उनके रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है.

15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिली तो हिन्दू महासभा के लोगों ने तिरंगा नहीं फहराया था। RSS के मुख्यालय में 52 साल तक इन लोगों ने तिरंगा नहीं फ़हराया। उन्होंने तिरंगे को अशुभ माना और भगवा झंडा के लक्ष्य को पूरा करने में लगे हुए हैं जबकि भगवा रंग की भी पवित्रता शहादत त्याग को उससे अलग कर दिया है. राम मन्दिर अयोध्या हो या कुम्भ भ्रष्टाचार की खबरों पर भागवत कभी दुखी नहीं होते.

हर जगह इनका दुहरापन विचारो में भ्रम दिखता है, 26 जनवरी-49 को संविधान के द्वारा जो लोकतान्त्रिक देश बना उसमें मज़बूरी है इनकी कि जिस आज़ादी को नक़ली समझते हैं उसकी बधाई देते हैं अब हर साल और तिरंगा यात्रा निकालते हैं. इसे देख कर गलतफहमी में मत आइए इनके इरादे बदले नहीं है 100 सालों से और विभाजनकारी नियत के साथ साथ आजादी की लड़ाई के नायकों को बदनाम करने में ये आज भी लगे रहते हैं आजादी के संघर्ष को उस दौर के नायकों के आपस के रिश्तों को उनकी साझा कुर्बानी को लेकर भ्रम फैलाते हैं झूठ के सहारे.

मोहन भागवत हिन्दू धर्म की रक्षा की नहीं गैर बराबरी के सिद्धांत के आधार पर सत्ता पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. उनके संगठन और पार्टी का विचार लोकतान्त्रिक मूल्यों और संविधान के अनुसार जनता को मिले समता बंधुत्व न्याय की स्थापना के खिलाफ है. राष्ट्र की एकता के खिलाफ है. भारतीयता के खिलाफ है. गांधी के राम राज के खिलाफ है. आदिवासियों अल्पसंख्यक दलित पिछड़ी जातियों औरतों की बराबरी के खिलाफ है. उनकी एकजुटता के खिलाफ है . इस देश की विविधता पूर्ण साझा संस्कृति और गौरव पूर्ण इतिहास के खिलाफ है. आपको चुनाव करना है कि आप प्रेम और बराबरी चाहते हैं आजादी चाहते हैं शांति और सद्भावना चाहते हैं या राम के नाम पर देश की पूंजी की लूट दंगे और नफरत से भरा हुआ ढोंगी समाज चाहते हैं.

26 जनवरी को अपनी छत पर तिरंगा फहराने के साथ हम भारत के लोग….संविधान की प्रस्तावना का पाठ करें क्योंकि यह श्लोक ही भारतीयता को स्थापित कर्ता है.

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