— राजेन्द्र राजन —
यों तो कोतवाल के घर और दफ्तर
कुल मिलाकर आठ-दस कुत्ते ही रहे होंगे
पर कोतवाल के कुत्ते कहे जाने वाले
कुत्तों की कोई गिनती नहीं थी
वे शहर भर में फैले हुए थे
शहर में और भी कुत्ते थे
पर उनमें और कोतवाल के कुत्तों में
एक बड़ा फर्क था
अन्य कुत्ते
जहॉं सिर्फ कुत्ता-स्वभाव के कारण भौंकते थे
वहीं कोतवाल के कुत्ते
स्वभावगत विवशता के अलावा
एक लक्ष्य से भी प्रेरित थे
वे कोतवाल की नापसंद का खयाल करके भी
भौंकते थे और शायद इसीलिए
कोतवाल के कुत्ते कहे जाते थे
वे कोतवाल की भाषा तो नहीं समझते थे
लेकिन कोतवाल के इशारों और हाव-भाव से
उसकी पसंद-नापसंद जान गये थे
जैसे एक बार धरने पर बैठे लोगों पर
कोतवाल ने घोड़े दौड़ा दिये थे
जुलूस में जा रहे लोगों पर
लाठियॉं चलवा दी थीं
और एक आदमी को बुरी तरह हंटर से पीटा था
जो लाठीचार्ज के बाद
उससे जोर-जोर से बहस कर रहा था
तब से कहीं भी कोई धरना होता
कोई जुलूस जा रहा होता
कोई खुलकर बोल रहा होता
या सवाल पूछ रहा होता
कोतवाल के कुत्ते भौंकना शुरू कर देते
पूरी ताकत से भौंकते
और लगातार भौंक-भौंक कर
सारे वातावरण को खौफजदा कर देते
इस तरह
निषेधाज्ञा लगी हो या नहीं
धरना जुलूस सभा विरोध प्रदर्शन वगैरह
काफी कम होने लगे
कोतवाल के कुत्तों के डर से
यहॉं तक कि सड़क के किनारे
चाय की रेहड़ी पर होने वाली चर्चाएं भी
धीरे-धीरे बंद होती गईं
क्योंकि लोगों को डर लगा रहता
कहीं कोतवाल के कुत्ते न आ जाएं
कोतवाल के कुत्ते
चर्चाओं और बहसों की भाषा नहीं समझते थे
लेकिन वे यह ताड़ जाते थे
कि धरने पर बैठे लोग भी
इसी तरह के कपड़े पहने थे
जुलूस में शामिल लोग भी
कंधे पर इसी तरह के झोले लटकाए थे
और कइयों की तो शक्लें भी वही थीं
जिन पर कोतवाल का गुस्सा फूटा था
कोतवाल के कुत्तों के कारण
शहर में पत्रकारों की भी शामत आ गयी थी
हुआ यों कि एक बार
एक संवाददाता हाथ में कलम लिये
शहर की कानून व्यवस्था के बारे में
जैसे ही कुछ पूछने के लिए खड़ा हुआ
कोतवाल साहब उस पर झल्ला पड़े
तभी से कुत्ते समझ गये
जिसके हाथ में कलम होती है
या कोई भी जो सवाल करना चाहता है
उसे साहब पसंद नहीं करते
और वह इसी लायक है कि उस पर
जोर-जोर से भौंका जाए
उसका पीछा किया जाए
जिस तरह कोतवाल
पोशाक से ही समझ जाता था
कि किसे सलाम ठोंकना है और
किसकी पिटाई करनी है
किसे संदिग्ध सूची में रखना है
उसी तरह कोतवाल के कुत्ते भी
पोशाक से ही समझ जाते थे
कि किस आदमी का पीछा करना है
किसके आगे दुम हिलाना है
लकदक कपड़े पहने जो लोग
बड़ी-बड़ी गाड़ियों में आते
उन्हें कोतवाल साहब गेट तक छोड़ने जाते
मेहमान जब तक चले नहीं जाते थे तब तक
कोतवाल के कुछ कुत्ते गेट पर
और कुछ गेट के बाहर खड़े
दुम हिलाते रहते थे
दूसरी तरफ कोतवाल साहब
जिस तरह के लोगों को पसंद नहीं करते थे
वे अपने कपड़े की देखते और हर वक्त डरे रहते थे
कि कहीं कोतवाल के कुत्ते न घेर लें
कोतवाल के कुत्ते
शहर के बाकी कुत्तों से
बहुत ज्यादा सक्रिय और जोशीले थे
सब तरफ नजर रखते थे
उनमें से कोई अकेला भी
किसी को संदिग्ध कपड़ों में देख लेता
तो फौरन भौंकना शुरू कर देता
इस उम्मीद में कि वह जल्द ही संख्याबल जुटा लेगा
और होता भी यही था
संख्याबल आसानी से जुट जाता
फिर तो भौंकना आतंक का पर्याय हो जाता
जा रहा आदमी जल्दी ही पाता कि
कोतवाल के कुत्ते उसके पीछे पड़ गये हैं
अगर वह काटे जाने से बच जाता
तब भी यही निश्चय करता
कि आइंदा इधर नहीं आएगा
लेकिन समस्या यह थी
कि किस रास्ते जाओ किस रास्ते नहीं
कोतवाल के कुत्ते हर कहीं मिल जाते थे
कोई रास्ता निरापद नहीं बचा था
सारा शहर आतंकित रहने लगा था
हालत यह हो गयी थी कि शहर के लोग
कोतवाल से ज्यादा
कोतवाल के कुत्तों से डरते थे
कोतवाल के कुछ करीबी भी यह मानते थे
कि कोतवाल के कुत्तों का आतंक बहुत बढ़ गया है
लेकिन वह इस बात को कहते नहीं थे
इस डर से कि पता नहीं कोतवाल साहब क्या सोचेंगे
कहीं इसे लोगों की शिकायत की
पुष्टि करना न मान लिया जाए
या शायद वे जानते थे कि कहने से कोई फायदा नहीं
कोतवाल साहब एक कान से सुनकर
दूसरे कान से निकाल देंगे
या कहेंगे आप अपना काम कीजिए
कुत्तों को अपना काम करने दीजिए
शहर भर में
कोतवाल के इतने कुत्ते क्यों थे
इस बारे में अलग-अलग अनुमान थे
कोई कहता कि इन कुत्तों को
कोतवाल साहब की तरफ से
नियमित रूप से कुछ खाने को मिलता था
को कहता कि सामान्य कुत्तों को ही प्रशिक्षण देकर
इस तरह का बना दिया जाता था
बहरहाल, तमाम आतंक मचाने के बावजूद
ऐसा भी मत समझिए कि कोतवाल के कुत्तों से
न डरने वाला कोई बचा नहीं था
जैसे कि एक दिन एक हाथी
ऐन उधर से ही गुजरा जिधर
कोतवाल के बहुत से कुत्ते जमा थे
हाथी को देखते ही भौं भौं शुरू हो गयी
कुत्तों को लग रहा था कि हाथी डरकर वापस
उधर ही चला जाएगा जिधर से आया था
हाथी लेकिन पीछे नहीं मुड़ा
सूंड़ हिलाता आगे ही बढ़ता रहा
जब वह नजदीक आ गया कुत्ते ही दुबकने लगे
हालांकि कुत्तों का भौंकना जारी रहा
मगर वे काफी पीछे हट गए थे
जब हाथी सूॅंड़ हिलाता शान से चला गया
तब कुत्तों में उसे भगा देने का श्रेय लेने की
होड़ मच गयी
और चंद मिनट पहले जो हाथी पर भौंक रहे थे
वे अब एक-दूसरे पर भौंकने लगे
कुछ देर बाद
एक दूसरा हाथी आता हुआ दिखाई दिया
अब फिर से सारे कुत्ते
एक होकर हाथी पर भौंकने लगे
फिर वही हुआ जो पहले हुआ था
हाथी नजदीक आया तो कुत्ते पीछे दुबक गये
और यह दूसरा हाथी भी बेपरवाह
अपने रास्ते चला गया
हाथी को जैसे इस बात से कोई मतलब ही न हो
कि ये कहां के या किसके कुत्ते हैं
इस बेपरवाही और शान के कारण
कोतवाल भी मन-ही-मन
अपने कुत्तों से ज्यादा
हाथी की कद्र करता था
अलबत्ता यह बात उसके कुत्तों को मालूम नहीं थी
कोतवाल अपनी सेहत का खयाल रखता
और काफी समय से
उसे रोज सुबह टहलने की आदत थी
टहलते वक्त वह कई बार अपनी चाल धीमी कर देता
और यह सोच कर खुश होता कि वह मस्ती से
हाथी की तरह चल रहा है
उसके चाल धीमी करते ही आगे-आगे चल रहे
उसके कुत्ते पीछे मुड़कर देखने लगते
तब वह आश्वासन देने के अंदाज में कहता
डोंट वरी आई फालो यू
हालॉंकि पार्क में कुत्तों को लाना मना था
लेकिन यह नियम कोतवाल पर लागू नहीं होता था
वह रोज कुत्तों के काफिले के साथ आता
शायद यह आदत के साथ-साथ
रौब गॉंठने का उसका एक तरीका भी था
लेकिन इसके चलते कई लोगों ने
अपने टहलने का वक्त बदल दिया था
कई शाम को टहलने लगे थे
कइयों ने आना ही बंद कर दिया था
इस तरह होते-होते यह हुआ
कि कोतवाल जब पार्क में होता
तब आदमी कम कुत्ते ज्यादा नजर आते
और एक दिन ऐसा हुआ कि कोतवाल को लगा
पार्क में इस छोर से उस छोर तक
कोई आदमी नहीं दीख रहा
सारे पार्क में हर तरफ केवल कुत्ते घूम रहे हैं
कोई कुत्ता उसकी तरफ मुंह करके भौंक नहीं रहा था
बल्कि जो उसकी तरफ देखता वह चुपचाप
दुम हिलाने लगता
कई उसके आगे आगे चल रहे थे
मानो रास्ता साफ करते जा रहे हों
फिर भी पहली बार कोतवाल को कुत्तों से डर लगा
उसे समझ नहीं आ रहा था
कि वह कहॉं चला आया है
जहॉं दूर-दूर तक कोई इंसान नहीं
घबराहट में वह पार्क से बाहर निकल आया
पार्क के बाहर की सड़क पर भी कुत्ते ही कुत्ते थे
डर के मारे वह एक दूसरी सड़क की तरफ मुड़ा
उधर भी दूर तक
सिर्फ कुत्ते दीख रहे थे
अब वह जाए तो किधर जाए!
उसकी सॉंस फूल रही थी
वह पसीने से लथपथ हो चला था
कुत्तों से बचने के लिए
हार मानकर वह एक पेड़ पर चढ़ने लगा
तभी उसकी नींद टूट गयी
अगले ही पल उसे अजान की आवाज सुनाई दी
उसने पसीना पोंछा और राहत की सॉंस ली।