गांधी को लिखा नहीं जा सकता

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— मेधा —

पिछले दिनों, गांधी जी के जीवन के आख़िरी सालों की डायरी के पन्नों को पढ़ने का अवसर मिला। “बापू के आशीर्वाद“ ( रोज़ के विचार ) पुस्तक की शक्ल में ये उपलब्ध है। गांधी की इस पुस्तक की प्रसिद्धि उनकी और पुस्तकों की तुलना में बहुत कम है , लेकिन मुझे सौभाग्यवश किन्हीं पुण्यआत्मा से उपहार स्वरूप यह पुस्तक मिली।

जिस गांधी पर अकादमिक जगत , राजनीतिक और सामाजिक दायरों में बात होती है , उससे बिल्कुल अलग गांधी से मिलना हुआ। सत्य और अहिंसा , पारदर्शिता और सेवा कैसे एक व्यक्ति को गहन अकेलेपन और मुश्किलों के बीच भी निर्बैरी और निर्भयी होकर मनुष्यत्व के चरम पर पहुँचा देता – इसकी झलक मिली उस पुस्तक को पढ़ते हुए । सत्य और प्रेम वो आभूषण हैं , जिन्हें पहन कर व्यक्ति अपनी सर्वोत्तम संभावना , सर्वोच्च शिखर तक पहुँच सकता है – गांधी का जीवन इसी की मिसाल है और उनकी ये पुस्तक सूत्र वाक्यों में उस मार्ग पर बढ़ने की रोशनी देती है ।

सोचा था कि इस तीस जनवरी गांधी पर कुछ लिखूँगी। “मेरा गांधी”, जो हर मुश्किल में बाल सुलभ हँसी के साथ सामने आकर खड़ा हो जाता है और कहता है – “ मैं हूँ तुम्हारे साथ , बस चलती रह। रुकना नहीं । “

इस गांधी को लिखा नहीं जा सकता । अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में जितना हो सके, उसे जीने की कोशिश की जा सकती है । गांधी कहीं गए नहीं । वो अब भी दुनिया भर के असंख्य लोगों के हृदय में सेवा , सत्य और रचनात्मक प्रेम बन कर धड़क रहे हैं । मैं उन्हें अपने साथ चलते हुए महसूस कर सकती हूँ …

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