— चंचल —
संघ अपना एजेंडा चलाने में सफल रहा है। वह विषयांतर का माहिर है। सरकार में आने के लिए उसने “अतीत“ का सहारा लिया, क्योंकि उसके पास वर्तमान की दिशाहीनता शुरू से रही और भविष्य का कोई खाका नहीं सिवाय सत्ता तक पहुँचने की। राम से शुरू हुए राणा तक आ गए। अब उसने बहुत ही बारीकी से गांधी को उलझाना चाहती है, इसके लिए उसने कुछ छद्म नामों व शातिर संगठनों के ज़रिए “गांधी“ के घराने में आपसी मनमुटाव और विवेकहीन टकराहट उठा कर फिर विषयांतर करने की कोशिश को अंजाम देना शुरू कर दिया है। संघ का नया एजेंडा है “गांधी“ को गांधी से ही भिड़ाया जाय। दो तीन दिन से सोशल मीडिया में यह टकराव देखने को मिल रहा है। गांधी बनाम गांधी को खंगाला जाय तो गांधी बखरी में तीन पट्टीदार बैठे गांधी कायनात को थामे हुए हैं, बकौल डॉ लोहिया – “कुल तीन तरह के गांधीवादी है एक – सरकारी गांधीवादी, इसमें सत्ता पर बैठी हुई पण्डित नेहरू की कांग्रेस, दूसरे है – मठी गांधीवादी इसमें विनोबा भावे आते है और तीसरे हैं कुजात गांधीवादी जिसमें डॉ लोहिया ख़ुद को रखते है ।
इन दिनों सोशल मीडिया पर नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं – पहले कांग्रेस के प्रचार – प्रसार में नए तेवर के साथ उतरेंगे, लगेगा कांग्रेस इन्ही के मजबूत कंधे पर टिकी है, खूब चीखेंगे, चिल्लायेंगे और जब कांग्रेसी होने की मुहर लग जाएगी तो एक दिन अपने घर चड्ढी पहन कर चले जाएंगे। अनगिनत नाम हैं। कांग्रेस का यह पुराना मर्ज है। आज से नहीं, बहुत पहले से है। ये जाते जाते कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करने में बाज नहीं आयेंगे।
संघ अब दूसरा व्यूह रच रहा है, यह आख़िरी भी है – कांग्रेस के “सहोदरों “ को आपस में लड़ा दो, ये एक न होने पायें। इसका ताजा उदाहरण है, “संघ काले, भारत खंडे“ में कुछ नए रंगरूट तलाशे जायँ, उन्हें उड़ान भरने का मौक़ा दिया जाय, उन्हें स्थापित (?) किया जाय फिर उनके ज़रिए गांधीवाद पर प्रहार किया जाय। इसकी बानगी देखिए – इस संघ काल में संघ को अब भी बेचैनी होती है गांधी से, उन्हें मालूम है उनकी आख़िरी जंग गांधी से ही होनी है। आज जब देश में कांग्रेस और उसका सहोदर समाजवादी एक होने की तैयारी में है तो नए उपक्रम के तहत, नई रणनीति बनाई गई है, समाजवादी आंदोलन के पुरखों पर बेतुकी बहस चलायी जाय। शुरुआत हो रही है डॉ लोहिया और जे पी को “खलनायक“ बनाने से। इस काम के लिए मित्र कुर्बान अली को डेप्यूट किया गया है। दो तीन साल से वे इस काम में बड़े मन से लगे हैं। अभी कल उनको पुरस्कार भी मिला (बधाई क़ुर्बान भाई )
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