‘बाबा साहब’ डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर जी की 135वीं जयंती

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— प्रो. (डॉ.) राहुल पटेल —

“बाबा” के सपनवा के कइसे पूरा करबा, 

जबतक अपसई में लड़बा।

भारत के जतियन के कइसे हक़ देवइबा,

जबतक  “जात-पात” करबा।

देसवा के बहिनियन के कइसे जय करइबा, 

जब “गिद्ध” बनि जाबा।

आपन अधिकरवा कइसे तू समझबा,

जबतक “वोट-बैंक” रहबा।

बाबा के सलहिया के कइसे मान रखबा,

 जबतक “शिक्षित” न होइबा।

“इंडिया” के नमवा के “भारत” कइसे करबा,

 जे ‘संविधनवा’ न पूजबा।

“संविधनवा” के लजिया कइसे तू रखबा,

अगर “भारतीय” न बनबा।।

“अम्बेडकर” के सपनवा के कइसे पूरा करबा, 

जे तू ‘मानुष’ न होइबा।

3 COMMENTS

  1. बहुत सुंदर sir 👏

    वर्तमान सामाजिक स्थिति को कविता के माध्यम से रूबरू कराया है 👍🙏

  2. प्रस्तुत काव्य अभिव्यक्ति , बहुत ही सारगर्भित है ।
    जो ” गगर में सागर ” युक्ति को चरितार्थ करती है ।
    जिसमें आचार्यश्री के द्वारा , बाबा साहब के वैचारिक चिंतन को सामाजिक न्याय , समता और संवैधानिक उपचारों के अनुरूप सामाजिक विकास को गति देने के लिए प्रेरित किया गया है ।
    जहां बाबा साहब के विचारों से स्त्री , जाति, बंधुत्व , राजनैतिक चेतना , संवैधानिक उपायों के अनुरूप सामाजिक विकास को राष्ट्रीय मुद्दों को आज की आवश्यकता के अनुरूप लोक भाषा अर्थात सामान्यजन की भाषा में अभिव्यक्त किया गया है ।
    सादर अभिनंदन आचार्य श्री राहुल पटेल सर
    विभागाध्यक्ष , मानवविज्ञान विभाग
    इलाहाबाद विश्वविद्यालय , प्रयागराज ।

  3. बहुत सुंदर sir 👏

    वर्तमान सामाजिक स्थिति को कविता के माध्यम से रूबरू कराया गया है l

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